महाभारत के युद्ध में द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके जगत में हलचल मचा दी थी। कौरवों की ओर से लड़ रहे द्रोण, भीष्म, अश्वत्थामा और जयद्रथ को मारना तो लगभग नामुमकीन था, परंतु श्रीकृष्ण जिसके साथ हो वहां सबकुछ संभव हो सकता है। कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंत के बाद द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने जो अस्त्र छोड़ा था वह भयंकर था। आओ जानते हैं कि क्यों और किस तरह यह अस्त्र छोड़ा गया था।
क्यों : कुरुक्षेत्र के युद्ध में जब गुरु द्रोणाचार्य से यह झूठ बोला किया कि अश्वत्थामा मारा गया है तो गुरु द्रोण को पहले तो ये विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उनका पुत्र तो अजर अमर है जिसे कोई मार नहीं सकता तब उन्होंने युधिष्ठिर से इसकी पुष्टि करना चाहिए। युधिष्ठिर को पता था कि अश्वत्थामा नहीं मारा गया है बल्कि इसी नाम का एक हाथी भीम द्वारा मार गिराया गया है। चूंकि युधिष्ठिर हाथी को भी मरते या मारते हुए नहीं देखा था अत: वह झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। द्रोणाचार्य के पूछते पर उन्होंने कहा कि हां अश्वत्थामा मारा गया है।..युधिष्ठिर के इतना कहने पर ही श्रीकृष्ण अपना शंख बजा देते हैं जिसके शोर में द्रोणाचार्य युधिष्ठिर द्वारा कही गई आगे की बात नहीं सुन पाते हैं कि.. परंतु वह हाथी था या ओर कोई यह मैं नहीं जानता।
गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। जब यह बात अश्वत्थामा को पता चली की मेरे पिता को छल से मारा गया है तो उसने क्रोधित होकर पांडवों के समूल नाश की शपथ ली।
अपने पिता के मारे जाने के बाद अश्चत्थामा बदले की आग में जल रहा था। उसने पांडवों का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा ली और चुपके से पांडवों के शिविर में पहुंचा और कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से उसने पांडवों के बचे हुए वीर महारथियों को मार डाला। केवल यही नहीं, उसने पांडवों के पांचों पुत्रों के सिर भी काट डाले।
पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगी। उसने पांडवों से कहा कि जिस मणि के कारण वह अजर अमर है उस मणि को उसके मस्तक पर से उतार लो। अर्जुन ने जब यह भयंकर दृश्य देखा तो उसका भी दिल दहल गया। उसने अश्वत्थामा के सिर को काटने की प्रतिज्ञा ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर अश्वत्थामा वहां से भाग निकला। भीम को जब यह पता चला तो वह अश्वत्थामा को मारने के लिए उसे ढूढंने निकल पड़े। उनके पीछे युधिष्ठिर भी निकल पड़े। बाद में श्रीकृष्ण और अर्जुन भी अपने रथ पर सवार होकर निकल पड़े।
किस तरह : पांडवों से बचने के लिए अश्वत्थामा उस वक्त धृत लगाकर कुश के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर बैठा था। वहां वेद व्यासजी के साथ अन्य ऋषि भी थे। यह भी कहा जाता है कि उसे जब यह पता चला कि अर्जुन और श्रीकृष्ण उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे आ रहे हैं तो वह वेदव्यासजी के आश्रम में पहुंच गया। तभी वहां पर अर्जुन और श्रीकृष्ण पहुंच जाते हैं। उन्हें देखकर अश्वत्थामा एक कुश को निकालकर मंत्र पढ़ने लगता है और उस कुश को ही ब्रह्मास्त्र बनाकर उसे अर्जुन पर छोड़ देता है। यह देखकर श्रीकृष्ण और वेद व्यासजी अचंभित हो जाते हैं। तब तक्षण श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है।
यह देखकर वेदव्यासजी घबरा जाते हैं और वह अपने बल से दोनों के ब्रह्मास्त्र को बीच में ही रोककर कहते हैं कि अपने अपने ब्रह्मास्त्र को वापस लो अन्यथा विनाश हो जाएगा। अर्जुन तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लेता है परंतु अश्वत्थामा कहता है कि मैं ऐसा करने में असमर्थ हूं तब वह उस ब्रह्मास्त्र का रुख अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक पर छोड़ देता है। यह देखकर सभी अचंभित और क्रोधित हो जाते हैं।
यह देखकर कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा- 'उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र तो होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवित कर दूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ 3,000 वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' वेद व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया।
तब अश्वत्थामा ने कहा, 'हे श्रीकृष्ण! यदि ऐसा ही है तो आप मुझे वह मनुष्यों में केवल व्यास मुनि के साथ रहने का वरदान दीजिए, क्योंकि मैं सिर्फ उनके साथ ही रहना चाहता हूं।' जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।
कहते हैं कि गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था जिसके चलते इतना जोर का धमाका हुआ था कि गर्भ में पल रहे शिशुओं तक की मौत हो गई थे। मोहन जोदड़ो में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे जिसमें रेडिएशन का असर होने की बात कही जा रही थी। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। यह परिणाम ऐसे ही हैं जैसा कि वर्तमान में परमाणु अस्त्र छोड़े जाने के बाद घटित होते हैं। हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3 नवंबर 5563-64 वर्ष पूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र परमाणु बम ही था?
महाभारत में इसका वर्णन मिलता है- ''तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।।'' ''सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम। चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।।'' 8 ।। 10 ।।14।।- महाभारत
अर्थात : ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने के बाद भयंकर वायु जोरदार तमाचे मारने लगी। सहस्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे। भूतमातरा को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया। आकाश में बड़ा शब्द हुआ। आकाश जलाने लगा पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई।