धृतराष्ट्र आंखों से ही नहीं मन और बुद्धि से भी अंधे थे। उन्होंने अपने जीवन में वैसे तो कई पाप किए थे लेकिन यहां जानिए उनके द्वारा किए गए 5 पापों के बारे में।
1.गांधारी के साथ धोखा : भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से कर दिया। गांधारी को जब यह पता चला कि मेरे पति अंधा है तो उसने भी आंखों पर पट्टी बांध ली। गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है अत: इसका पहला विवाह किसी ओर से कर दीजिए, फिर धृतराष्ट्र से करें। इसके लिए ज्योतिषियों के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।
गांधारी एक विधवा थीं, जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया। धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबाल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया।
कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार को भूखे मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। और वह था शकुनि। यह भी कहा जाता है कि विवाह के समय गांधारी के साथ उनका भाई शकुनि और आयु में बड़ी उनकी एक सखी हस्तिनापुर आई थीं और दोनों ही यहीं रह गए थे।
2.दासी के साथ सहवास : गांधारी के पुत्रों को कौरव पुत्र कहा गया लेकिन उनमें से एक भी कौरववंशी नहीं था। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया था। इस वरदान के चलते ही गांधारी को 99 पुत्र और एक पुत्री मिली थीं। उक्त सभी संतानों की उत्पत्ति 2 वर्ष बाद कुंडों से हुई थी। गांधारी की बेटी का नाम दु:शला था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए।
3.पुत्र के मोह में करवाया युद्ध : पुत्रमोह में धृतराष्ट्र पांडवों के साथ अन्याय कर रहे थे लेकिन राजा और राज सिंहासन के प्रति निष्ठा के चलते भीष्म उनके साथ बने रहे। धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र-मोह में सारे वंश और देश का सर्वनाश करा दिया। धृतराष्ट्र चाहते तो वे अपने पुत्र के हठ और अपराध पर लगाम लगा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और दुर्योधन को गलती पर गलती करने की अप्रत्यक्ष रूप से छूट दे दी। पांडवों के साथ हुए अति अन्याय के चलते ही महाभारत युद्ध हुआ। राज सिंहासन पर बैठे धृतराष्ट्र यदि न्यायकर्ता होते तो यह युद्ध टाला जा सकता था। विदुर ने कई बार धृतराष्ट्र को नीति और अनीति के बारे में बताया लेकिन धृतराष्ट्र ने जानबूझकर विदुर की बातों को नजरअंदाज किया।
4.चीर हरण के समय धृतराष्ट्र का चुप रहना : द्रौपदी के चीर हरण के समय भी भीष्म और धृतराष्ट्र चुप रहे और इसी के चलते भगवान कृष्ण को महाभारत युद्ध में कौरवों के खिलाफ खड़े होने का फैसला करना पड़ा। चीर हरण महाभारत की ऐसी घटना थी जिसके चलते पांडवों के मन में कौरवों के प्रति नफरत का भाव स्थायी हो गया। यह एक ऐसी घटना थी जिसके चलते प्रतिशोध की आग में सभी चल रहे थे।
5. पूर्व जन्म का पाप : कहते हैं कि पूर्व जन्म में किए पाप के कारण धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे और उनके सभी पुत्र मारे गए। दरअसल, अपने पूर्व जन्म में धृतराष्ट्र एक बहुत ही निर्दयी एवं क्रूर राजा थे। एक दिन जब वे अपने सैनिकों के साथ राज्य भ्रमण को निकले तो उनकी नजर एक तालाब में अपने बच्चों के साथ आराम करते हंस पर पड़ी। उन्होंने सैनिकों को तुरंत आदेश दिया की उस हंस की आंखे निकाल ली जाए। सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन किया। दर्द से बिलखते उस हंस की आंखों को निकालकर राजा अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़ गया। उस हंस की असहनीय पीड़ा के कारण मृत्यु हो गई। इस घटना को देखकर उसके बच्चे भी मृत्यु को प्राप्त हो गए। मरते वक्त हंस ने राजा को शाप दिया था की मेरी ही तरह तुम्हारी भी यही दुर्दशा होगी। इसी शाप के कारण अगले जन्म में धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए तथा उनके पुत्र उसी तरह मृत्यु के प्राप्त हुए जिस तरह हंस के।
परिचय : सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। चित्रांगद गन्धर्वों से युद्ध करते हुए मारा गया। विचित्रवीर्य की दो पत्नियां थीं अम्बिका और अम्बालिका। विचित्रवीर्य की कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। सत्यवती के कहने पर वेदव्यास ने अम्बिका से नियोग किया लेकिन अम्बिका ने आंखें बंद कर ली थी तो उसको अंधा पुत्र उत्न्न हुआ जिसका नाम धृतराष्ट्र रखा गया। इकसे बाद वेद व्यास को छोटी रानी अम्बालिका के पास भेजा। अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई जिसके कारण पांडु रोग से ग्रसित पुत्र हुआ।
यह देखकर सत्यवती ने एक बार फिर अम्बिका को वेद व्यास के पास भेजा। अम्बिका ने खुद ना जाकर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी ने आनन्दपूर्वक वेदव्यास के साथ रमण किया जिसके चलते दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ। तीनों का पालन भीष्म ने राजपुत्रों की तरह ही किया। धृतराष्ट्र अंधे तो तो पांडु को उत्तराधिकारी बनाया गया। एक श्राप के चलते पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ जंगल चले गए तो धृतराष्ट्र को सिंहासन पर बिठाया गया।