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महाभारत के 9 ऐसे श्राप जिन्होंने बदल दिया पूरा इतिहास

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024 (13:47 IST)
महाभारत के श्राप: महाभारत काल में वरदानों ने जितना घटनाक्रम को संचालित किया उससे कहीं ज्यादा श्रापों ने भविष्य में होने वाली घटनाओं को संचालित किया। आज हम आपको बताएंगे ऐसे प्रमुख 9 श्रापों या शापों के संबंध में जिनकी चर्चा खूब होती है और जिनके कारण इतिहास में घटनाक्रमों की एक श्रंखला ही निर्मित हो गई।ALSO READ: Mahabharat : महाभारत के युद्ध के बाद एक रात में सभी योद्धा जिंदा क्यों हो गए थे?
 
1. गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप : महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम्हारे बंधु-बांधवों भी नष्ट हो जाएंगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे।
 
2. श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप: महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया और अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा। महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी। यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।ALSO READ: Mahabharat : महाभारत की 5 गुमनाम महिलाएं, जिनकी नहीं होती कभी चर्चा
 
3. द्रौपदी का घटोत्कच को श्राप: मान्यता अनुसार जब घटोत्कच पहली बार अपने पिता भीम के राज्य में आया तो अपनी मां (हिडिम्बा) की आज्ञा के अनुसार उसने द्रौपदी को कोई सम्मान नहीं दिया। द्रौपदी को अपमान महसूस हुआ और उसे बहुत गुस्सा आया। वह उस पर चिल्लाई कि वह एक विशिष्ट स्त्री है, वह युधिष्ठिर की रानी है, वह ब्राह्मण राजा की पुत्री है तथा उसकी प्रतिष्ठा पांडवों से कहीं अधिक है। और उसने अपनी दुष्ट राक्षसी मां के कहने पर बड़ों, ऋषियों और राजाओं से भरी सभा में उसका अपमान किया है। जा दुष्‍ट तेरा जीवन बहुत छोटा होगा तथा तू बिना किसी लड़ाई के मारा जाएगा। यदि यह श्राप नहीं होता तो घटोत्कच अकेला ही कौरव सेना का नाश कर देता।
 
4. अम्बा का शाप: सत्यवती शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य के युवा होने पर भीष्म ने बलपूर्वक काशीराज की 3 पुत्रियों का हरण कर लिया और वे उसका विवाह विचित्रवीर्य से करना चाहते थे, क्योंकि भीष्म चाहते थे कि किसी भी तरह अपने पिता शांतनु का कुल बढ़े। लेकिन बाद में बड़ी राजकुमारी अम्बा को छोड़ दिया गया, क्योंकि वह शाल्वराज को चाहती थी, लेकिन शाल्वराज के पास जाने के बाद अम्बा को शाल्वराज ने स्वीकार करने से मना कर दिया। अम्बा को परशुराम भी न्याय नहीं दिला पाए। बाद अंबा ने अपनी देह त्यागते वक्त बहुत ही द्रवित होकर भीष्म को कहा कि 'तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया और अब मुझसे विवाह करने से भी मना कर रहे हो। मैं निस्सहाय स्त्री हूं और तुम शक्तिशाली। तुमने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन मैं पुरुष के रूप में दोबारा जन्म लूंगी और तब तुम्हारे अंत का कारण बनूंगी।' गौरतलब है कि यही अम्बा प्राण त्यागकर शिखंडी के रूप में जन्म लेती है और ‍भीष्म की मृत्यु का कारण बन जाती है।
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5. पांडु को दिया ऋषि ने शाप: भीष्म की प्रतिज्ञा के बाद कुरुवंश का इतिहास बदल गया। धृतराष्ट्र के अंधे होने के कारण पांडु को हस्तिनापुर का शासक बनाया गया। एक बार राजा पांडु अपनी दोनों रानियों कुंती और माद्री के साथ आखेट कर रहे थे कि तभी उन्होंने मृग होने के भ्रम में बाण चला दिया, जो एक ऋषि को जाकर लगा। उस समय वह ऋषि अपनी पत्नी के साथ सहवास कर रहे थे और उसी अवस्था में उन्हें बाण लग गया इसलिए उन्होंने पांडु को श्राप दे दिया कि जिस अवस्था में उनकी मृत्यु हो रही है उसी प्रकार जब भी पांडु अपनी पत्नियों के साथ सहवासरत होंगे तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी। उस समय पांडु की कोई संतान नहीं थी। अब उनके लिए यह संकट की बात हो गई थी। जब उन्होंने यह बात कुंती को बताई तो कुंती ने उन्हें ऋषि दुर्वासा द्वारा उनको मिले वरदान की बात कही। इस वरदान से कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर उन्हें बुलाकर उनके साथ 'नियोग' कर सकती थी। विवाह पूर्व उन्होंने सूर्यदेव का आवाहन किया था जिसके चलते 'कर्ण' का जन्म हुआ था लेकिन कुंती ने लोक-लज्जा के कारण उसे नदी में बहा दिया था।... पांडु मान गए तब कुंती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाहन किया। इस प्रकार माद्री ने भी देवताओं का आवाहन किया। तब कुंती को तीन और माद्री को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनमें युधिष्ठिर सबसे ज्येष्ठ थे। कुंती के अन्य पुत्र थे भीम और अर्जुन तथा माद्री के पुत्र थे नकुल व सहदेव। कुंती ने धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता का आवाहन किया था तो माद्री ने अश्विन कुमारों का। बाद में पांडु ने जब अपनी पत्नियों से सहवास किया तो वे मृत्यु को प्राप्त हो गए। फिर धृतराष्ट्र को सिंहासन मिला।ALSO READ: महाभारत के 2 दासी पुत्र भी राजकुमार और कौरव क्यों कहलाए और क्यों नहीं लड़ा कुरुक्षेत्र का युद्ध
 
6. कर्ण को मिला शाप: जब द्रोणाचार्य ने कर्ण को ब्रह्मास्त्र विद्या सिखाने से इनकार कर दिया, तब वे परशुराम के पास पहुंच गए। परशुराम ने प्रण लिया था कि वे इस विद्या को किसी ब्राह्मण को ही सिखाएंगे, क्योंकि इस विद्या के दुरुपयोग का खतरा बढ़ गया था। उस काल में तापस, कुशाग्र, विनम्र, ब्रह्मज्ञाता और विद्यावान लोगों को ही ब्राह्मण कहा जाता था। कर्ण यह सीखना चाहता था तो उसने परशुराम के पास पहुंचकर खुद को ब्राह्मण का पुत्र बताया और उनसे यह विद्या सीख ली। परशुराम ने ब्रह्मास्त्र के अलावा कर्ण को अन्य सभी अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी थी। बाद में जब परशुराम को इस विश्‍वासघात का पता चला हो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि  तुमने मुझसे जो भी विद्या सीखी है वह झूठ बोलकर सीखी है इसलिए जब भी तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तभी तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे। 
 
7. अर्जुन को मिला शाप: अर्जुन सशरीर इन्द्र-सभा में गया तो उसके स्वागत में उर्वशी, रंभा आदि अप्सराओं ने नृत्य किए। अर्जुन के रूप सौंदर्य पर मोहित हो उर्वशी उसके निवास स्थान पर गई और प्रणय निवेदन किया, साथ ही 'इसमें कोई दोष नहीं लगता' इसके पक्ष में अनेक दलीलें भी दीं, किंतु अर्जुन ने अपने दृढ़ इन्द्रिय-संयम का परिचय दिया। उर्वशी अपने कामुक प्रदर्शन और तर्क देकर अपनी काम-वासना तृप्त करने में असफल रही तो क्रोधित होकर उसने अर्जुन को 1 वर्ष तक नपुंसक होने का शाप दे दिया। अर्जुन ने उर्वशी से शापित होना स्वीकार किया, परंतु संयम नहीं तोड़ा। जब यह बात उनके पिता इन्द्र को पता चली तो उन्होंने अर्जुन से कहा, 'हे पुत्र! तुमने तो अपने इन्द्रिय संयम द्वारा ऋषियों को भी पराजित कर दिया। तुम जैसे पुत्र को पाकर कुंती वास्तव में श्रेष्ठ पुत्र वाली है। उर्वशी का शाप तुम्हें वरदान रूप सिद्ध होगा। भूतल पर वनवास के 13वें वर्ष में तुम्हें अज्ञातवास करना पड़ेगा, उस समय यह सहायक होगा। उसके बाद तुम अपना पुरुषत्व फिर से प्राप्त कर लोगे।' इस शाप के चलते अज्ञातवास के समय अर्जुन ने विराट के महल में नर्तक वेश में रहकर विराट की राजकुमारी को संगीत और नृत्य विद्या सिखाई थी, तत्पश्चात वे शापमुक्त हो गए थे।
 
8. दुर्योधन को मिला शाप: एक बार धृतराष्ट्र के दरबार में महर्षि मैत्रेय उपस्थित हुए। मैत्रेयजी ने कहा कि राजन, तीर्थयात्रा करते हुए वहां संयोगवश काम्यक वन में युधिष्ठिर से मेरी भेंट हो गई। वे आजकल तपोवन में रहते हैं। उनके दर्शन के लिए वहां बहुत से ऋषि-मुनि आते हैं। मैंने वहीं यह सुना कि तुम्हारे पुत्रों ने पाण्डवों को जुए में धोखे से हराकर वन भेज दिया। वहां से मैं तुम्हारे पास आया हूं। उन्होंने धृतराष्ट्र से इतना कहकर पीछे मुड़ते हुए दुर्योधन से कहा, तुम जानते हो पाण्डव कितने वीर और शक्तिशाली हैं। तुम्हें उनकी शक्ति का अंदाजा नहीं है शायद इसलिए तुम ऐसी बात कर रहे हो इसलिए तुम्हें उनके साथ मेल कर लेना चाहिए मेरी बात मान लो। गुस्से में ऐसा अनर्थ मत करो।ALSO READ: महाभारत के राजा शांतनु में थीं ये 2 शक्तियां, जानकर चौंक जाएंगे
 
महर्षि मैत्रेय की बात सुनकर दुर्योधन को क्रोध आ गया और वह व्यंग्यपूर्ण मुस्कुराते हए पैर से जमीन कुरेदने लगा और हद तो तब हो गई, जब उसने अपनी जांघ पर हाथ से ताल ठोंक दी। दुर्योधन की यह उद्दण्डता देखकर महर्षि को क्रोध आया। तब उन्होंने दुर्योधन को शाप दिया। तू मेरा तिरस्कार करता है, मेरी बात शांतिपूर्वक सुन नहीं सकता। जा उद्दण्डी जिस जंघा पर तू ताल ठोंक रहा है, उस जंघा को भीम अपनी गदा से तोड़ देगा। बाद में कौरव और पांडवों का घोर युद्ध हुआ और भीम ने दुर्योधन की जंघा पर वार कर अंत में उसकी जंघा उखाड़ फेंकी।
 
9. श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप: पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां मौन अवस्था में शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन मौन और ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया। ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।

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