महाभारत में मामाओं के बड़े जलवे रहे हैं। एक ओर मामाओं ने लुटिया डुबोई है तो दूसरी ओर पार लगाया है। महाभारत में जब मामाश्री की बात होती है तो सबसे पहले शकुनी का नाम ही सामने आता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की शकुनी के अलावा भी ऐसे कई मामा थे जिनकी महाभारत में चर्चा होती है। तो आओ जानते हैं उन्हीं में से पांच मामाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1.कंस मामा : महाभारत और पुराणों में जरासंध की बहुत चर्चा होती है। वह उस काल के सबसे शक्तिशाली जनपद मगध का सम्राट था। जरासंध का दामाद था कंस जो भगवान श्रीकृष्ण के मामा था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को राजपद से हटाकर जेल में डाल दिया था और स्वयं शूरसेन जनपद का राजा बन बैठा था। शूरसेन जनपद के अंतर्गत ही मथुरा आता है। कंस के काका शूरसेन का मथुरा पर राज था। कंस ने मथुरा को भी अपने शासन के अधीन कर लिया था और वह प्रजा को अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा था। श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल का झुकाव भी कंस की ओर था।
कंस अपने पूर्व जन्म में 'कालनेमि' नामक असुर था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। कंस के बारे में यह भविष्यवाणी कही गई थी कि उनकी बहन देवकी एक पुत्र ही उसे मारेगा। बस इसी भविष्यवाणी के कारण वह दहशत में रहने लाग था। कंस ने अपनी बहन देवकी और जीजा वसुदेव को जेल में डाल दिया था। जेल में देवकी और वसुदेव के जो भी पुत्र होते कंस उनको मार देता था। आठवें पुत्र भगवान श्रीकृष्ण जब रात में हुए तो जेल के सभी सैनिक सो गए और दरवाजे किसी चमत्कार से खुल गए। वसुदेव अपने पुत्र श्रीकृष्ण को रातोरात ही अपने नंद के घर छोड़कर आ गए। जहां माता यशोदा ने उन्हें पाल-पोसकर बढ़ा किया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई राक्षसों को भेजा लेकिन उसके सभी उपाय असफल सिद्ध हुए। तब उसने एक बार मल्ल युद्ध का आयोजन रखा और उसमें सभी योद्धाओं के साथ श्रीकृष्ण और बलराम को भी आमंत्रित किया। कंस चाहता था कि वह दोनों को यहां बुलवाकर अपने योद्धाओं द्वारा दोनों का वध करवा दे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उस आयोजन में श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम ने मिलकर योद्धाओं सहित अपने मामा कंस का वध भी कर दिया और अपने माता-मिता को जेल से मुक्त भी कराया था।
2.शकुनी मामा : गांधारी के भाई और दुर्योधन के मामा शकुनि को कौन नहीं जानता? कौरवों को छल व कपट की राह सिखाने वाले शकुनि उन्हें पांडवों का विनाश करने में पग-पग पर मदद करते थे, लेकिन कहते हैं कि उनके मन में कौरवों के लिए केवल बदले की भावना थी। कहते हैं कि भीष्म ने शकुनी की बहन गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से जबरन करवाया था। बाद में धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता और दोनों पुत्र को आजीवन जेल में डाल दिया था।
कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार को भूखे मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। यह भोजन शकुनी को मिलता था। एक-एक कर सभी मरने लगे। मृत्यु से पहले सुबाल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की, जो धृतराष्ट्र ने मान ली थी। शकुनी के सामने ही उसके माता, पिता और भाई भूख से मारे गए। शकुनी के दिमाग में यह बात घर कर गई थी।
जेल से बाहर आने के बाद शकुनी के पास दो विकल्प थे। अपने देश वापस लौट जाए या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखे। शकुनी ने हस्तिनापुर में ही रहना तय किया। धीरे-धीरे शकुनि ने हस्तिनापुर मैं सबका विश्वास जीत लिया और 100 कौरवों का अभिवावक बन बैठा। अपने विश्वासपूर्ण कार्यों के चलते दुर्योधन ने शकुनि को अपना मंत्री नियुक्त कर लिया। फिर धीरे-धीरे शकुनि ने दुर्योधन को अपनी बुद्धि के मोहपाश में बांध लिया। शकुनि ने न केवल दुर्योधन को युधिष्ठिर के खिलाफ भड़काया बल्कि महाभारत के युद्ध की नींव भी रखी।
शकुनी की युक्ति के ही चलते जुआ खेला गया था और उसके छलपूर्ण पासे के चलते ही पांडव अपना सबकुछ हार बैठे थे। शकुनी ने ही पांडवों को मरवाने के लिए लक्ष्यागृह की योजना बनाई थी। शकुनी के एक नहीं कई कारनामे हैं। शकुनि जितनी नफरत कौरवों से करता था उतनी ही पांडवों से, क्योंकि उसे दोनों की ओर से दुख मिला था। पांडवों को शकुनि ने अनेक कष्ट दिए। भीम ने इसे अनेक अवसरों पर परेशान किया। महाभारत युद्ध में सहदेव ने शकुनि का इसके पुत्र सहित वध कर दिया था।
3.शल्य मामा : रघुवंश के शल्य पांडवों के मामाश्री थे। लेकिन कौरव भी उन्हें मामा मानकर आदर और सम्मान देते थे। पांडु पत्नी माद्री के भाई अर्थात नकुल और सहदेव के सगे मामा शल्य के पास विशाल सेना थी। जब युद्ध की घोषणा हुई तो नकुल और सहदेव को तो यह सौ प्रतिशत विश्वास ही था कि मामाश्री हमारी ओर से ही लड़ाई लड़ेंगे। एक दिन शल्य अपने भांजों से मिलने के लिए अपनी सेना सहित हस्तिनापुर के लिए निकले। रास्ते में जहां भी उन्होंने और उनकी सेना ने पड़ाव डाला वहां पर उनके रहने, पीने और खाने की उन्हें भरपूर व्यवस्था मिली। यह व्यवस्था देखकर वे प्रसन्न हुए। वे मन ही मन युद्धिष्ठिर को धन्यवाद देने लगे।
हस्तिनापुर के पास पहुंचने पर उन्होंने वृहद विश्राम स्थल देखे और सेना के लिए भोजन की उत्तम व्यवस्था देखी। यह देखकर शल्य ने पूछा, 'युधिष्ठिर के किन कर्मचारियों ने यह उत्मम व्यवस्था की है। उन्हें सामने ले आओ में मैं उन्हें पुरस्कार देना चाहता हूं।' यह सुनकर छुपा हुआ दुर्योधन सामने प्रकट हुआ और हाथ जोड़कर कहने लगा, मामाश्री यह सभी व्यवस्था मैंने आपके लिए ही की है, ताकि आपको किसी भी प्रकार का कष्ट न हो।'
यह सुनकर शल्य के मन में दुर्योधन के लिए प्रेम उमड़ आया और भावना में बहकर कहा, 'मांगों आज तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते तो। मैं तुम्हारी इस सेवा से अतिप्रसन्न हुआ हूं।'... यह सुनकर दुर्योधन के कहा, 'आप सेना के साथ युद्ध में मेरा साथ दें और मेरी सेना का संचालन करें।' यह सुनकर शल्य कुछ देर के लिए चुप रहा गए। चूंकि वे वचन से बंधे हुए थे अत: उनको दुर्योधन का यह प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा। लेकिन शर्त यह रखी कि युद्ध में पूरा साथ दूंगा, जो बोलोगे वह करूंगा, परन्तु मेरी जुबान पर मेरा ही अधिकार होगा। दुर्योधन को इस शर्त में कोई खास बात नजर नहीं आई। शल्य बहुत बड़े रथी थे। रथी अर्थात रथ चलाने वाले। उन्हें कर्ण का सारथी बनाया गया था। वे अपनी जुबान से कर्ण को हतोत्साहित करते रहते थे। यही नहीं प्रतिदिन के युद्ध समाप्ति के बार वे जब शिविर में होते थे तब भी कौरवों को हतोत्साहित करने का कार्य करते रहते थे।
4.कृपाचार्य : कृपाचार्य चीरंजीवी है। अर्थात वे अभी भी जीवित है। गौतम ऋषि के पुत्र शरद्वान और शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और वह जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। कृपाचार्य की माता का नाम था नामपदी था जो एक देवकन्या थी। कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोण के साथ हुआ था। कृपि का पुत्र का नाम था- अश्वत्थामा। अर्थात अश्वत्थामा के वे मामाश्री थे। मामा और भांजे की जोड़ी ने युद्ध में कोहराम मचा रखा था।
कृप भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत हुए। भीष्म ने इन्हीं कृप को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिए नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुए। कुरुक्षेत्र के युद्ध में ये कौरवों के साथ थे और कौरवों के नष्ट हो जाने पर ये पांडवों के पास आ गए। बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई।
युद्ध में कर्ण के वधोपरांत उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किए हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं। युद्ध में मारे जाने के सिवा अब कोई भी चारा उसके लिए शेष नहीं है। युद्ध में द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और अश्वत्थामा तीनों ही भयंकर योद्धा था। तीनों ही ही अपने युद्ध कौशल के बल पर पांडवों की सेना का संहार कर दिया था।
महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कृपाचार्य के बीच भयानक युद्ध हुआ। जब अश्वत्थामा द्रौपदी के सोते हुए पांचों पुत्रों का वध कर देते हैं तब गांधारी कृपाचार्य से कहती है कि अश्वत्थामा ने जो पाप किया है उस पाप के भागीदार आप भी हैं। आप चाहते तो उसे ऐसा करने से रोक सकते थे। आपने अश्वत्थामा का साथ दिया। आप हमारे कुलगुरु हैं। आप धर्म और अधर्म को अच्छी तरह समझते हैं। आपने यह पाप क्यों होने दिया? कृपाचार्य को इस बात का पछतावा भी हुआ था।
5.श्रीकृष्ण मामा : भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के मामा थे। वे सबकुछ जानते थे फिर भी उन्होंने अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने के लिए क्यूं भेजा? अभिमन्यु के चक्रव्यूह में जाने के बाद उन्हें चारों ओर से घेर लिया गया। घेरकर उनकी जयद्रथ सहित 7 योद्धाओं द्वारा निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई, जो कि युद्ध के नियमों के विरुद्ध था। कहते हैं कि श्रीकृष्ण यही चाहते थे। जब नियम एक बार एक पक्ष तोड़ देता है, तो दूसरे पक्ष को भी इसे तोड़ने का मौका मिलता है।
भगवान श्रीकृष्ण ही थे जिनके कारण दुर्योधन की जंघा कमजोर रह गई। कर्ण का कवच कुंडल नहीं रहा। बर्बरीक का शीश कट गया। कर्ण का एकमात्र अमोघ अस्त्री उन्हीं की चाल से घटोत्चक पर चला दिया गया। उन्हीं की चाल के चलते ही भीष्म, द्रोण और जयद्रथ का वध हुआ। महाभारत के युद्ध में जो कुछ भी हुआ वह श्रीकृष्ण की इच्छा से ही हुआ।
इस तरह हमने देखा कि उपरोक्त पांच मामाओं के कारनामे के कारण ही महाभारत का संपूर्ण कथाक्रम रचा गया। हां एक ओर मामा थे जिनका नाम धृष्टद्युम्न था। यह द्रोपदी के भाई और द्रोपदी के पुत्रों के मामा थे। द्रोण के हाथों द्रुपद अपने तीन पौत्रों तथा विराट सहित मारे गए। तब भीम ने आकर धृष्टद्युम्न को युद्ध के लिए प्रोत्साहित किया तथा दोनों द्रोण की सेना में घुस गए। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से पांडवों ने द्रोण तक यह झूठा समाचार पहुंचाया कि अश्वत्थामा मारा गया है। फलस्वरूप द्रोण ने अस्त्र शस्त्र त्याग दिए। अवसर का लाभ उठाकर धृष्टद्युम्न ने द्रोण के बाल पकड़कर उनका सिर काट डाला था। लेकिन यह धृष्टद्युम्न अंत में अपने भांजे को नहीं बचा पाया था क्योंकि अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न का वध कर दिया था।