अर्जुन और नागकन्या उलूपी के मिलन से अर्जुन को एक वीरवार पुत्र मिला जिसका नाम इरावान रखा गया। भीष्म पर्व के 90वें अध्याय में संजय धृतराष्ट्र को इरावान का परिचय देते हुए बताते हैं कि इरावान नागराज कौरव्य की पुत्री उलूपी के गर्भ से अर्जुन द्वारा उत्पन्न किया गया था। नागराज की वह पुत्री उलूपी संतानहीन थी। उसके मनोनीत पति को गरूड़ ने मार डाला था, जिससे वह अत्यंत दीन एवं दयनीय हो रही थी। ऐरावतवंशी कौरव्य नाग ने उसे अर्जुन को अर्पित किया और अर्जुन ने उस नागकन्या को भार्या रूप में ग्रहण किया था। इस प्रकार अर्जुन पुत्र उत्पन्न हुआ था। इरावान सदा मातृकुल में रहा। वह नागलोक में ही माता उलूपी द्वारा पाल-पोसकर बड़ा किया गया और सब प्रकार से वहीं उसकी रक्षा की गयी थी। इरावान भी अपने पिता अर्जुन की भांति रूपवान, बलवान, गुणवान और सत्य पराक्रमी था।
श्रीकृष्ण इरावन का विवाह : एक मान्यता के अनुसार अर्जुन के बेटे इरावन ने अपने पिता की जीत के लिए युद्ध में खुद की बलि दी थी। बलि देने से पहले उसकी अंतमि इच्छा थी कि वह मरने से पहले शादी कर ले। मगर इस शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार नहीं थी क्योंकि शादी के तुरंत बाद उसके पति को मरना था। इस स्थिति में भगवान कृष्ण ने मोहिनी का रूप लिया और इरावन से न केवल शादी की बल्कि एक पत्नी की तरह उसे विदा करते हुए रोए भी।
परंतु महाभारत के भीष्म पर्व के 83वें अध्याय के अनुसार महाभारत के युद्ध के सातवें दिन अर्जुन और उलूपी के पुत्र इरावान का अवंती के राजकुमार विंद और अनुविंद से अत्यंत भयंकर युद्ध हुआ। इरावान ने दोनों भाइयों से एक साथ युद्ध करते हुए अपने पराक्रम से दोनों को पराजित कर दिया और फिर कौरव सेना का संहार आरंभ कर दिया।
भीष्म पर्व के 91वें अध्याय के अनुसार आठवें दिन जब सुबलपुत्र शकुनि और कृतवर्मा ने पांडवों की सेना पर आक्रमण किया, तब अनेक सुंदर घोड़े और बहुत बड़ी सेना द्वारा सब ओर से घिरे हुए शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन के बलवान पुत्र इरावान ने हर्ष में भरकर रणभूमि में कौरवों की सेना पर आक्रमण कर प्रत्युत्तर दिया। इरावान द्वारा किए गए इस अत्यंत भयानक युद्ध में कौरवों की घुड़सवार सेना नष्ट हो गयी और शकुनि के छहों पुत्रों का उसने वध कर दिया। यह देख दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह भागा हुआ राक्षस ऋष्यश्रृंग के पुत्र अलम्बुष के पास गया, जो पूर्वकाल में किए गए बकासुर वध के कारण भीमसेन का शत्रु बन बैठा था। ऐसे में अल्बुष ने इरावस से युद्ध किया। दोनों का घोर मायावी युद्ध हुआ और अंत में अल्बुष ने इरावन का वध कर दिया।
इरावान को युद्धभूमि में मारा गया देख भीमसेन का पुत्र राक्षस घटोत्कच बड़े जोर से सिंहनाद करने लगा। उसने भीषण रूप धारण कर प्रज्वलित त्रिशूल हाथ में लेकर भांति-भांति के अस्त्र-शस्त्रों से संपन्न बड़े-बड़े राक्षसों के साथ आकर कौरव सेना का संहार आरंभ कर दिया। उसने दुर्योधन और द्रोणाचार्य से भीषण युद्ध किया। घटोत्कच और भीमसेन ने भयानक युद्ध किया और क्रुद्ध भीमसेन ने उसी दिन धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध कर इरावान की मृत्यु का प्रतिशोध ले लिया।
किन्नरों के देवता इरावन : वर्तमान में कुछ क्षेत्रों में किन्नरों द्वारा इरावन की पूजा की जाती है। वर्ष में एक दिन ऐसा भी आता जब किन्नर रंग-बिरंगी साड़ियां पहन कर और अपने जूड़े को चमेली के फूलों से सजाकर इरावन से शादी करती है। हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है। अगले दिन इरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। मान्यता है कि इसी दिन इरावन की महाभारत के युद्ध में मौत हो गई थी। इसकी याद में हजारों किन्नर तमिलनाडु के कूवागम गांव में एकत्रित होते हैं। जहां वे अपनी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण दिन वार्षिक शादी समारोह में शिरकत करते हैं।
पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान कृष्ण ने औरत का रूप धारण कर नाग राजकुमार इरावन से शादी की थी। विल्लूपुरम जिले के इस गांव में इरावन की पूजा कूथांदवार के रूप में होती है। हजारों किन्नर इरावन की दुल्हन के रूप में शादी समारोह में शिरकत करती हैं और मंदिर के पुजारी ने उनकी गर्दन में कलावा बांधवाती हैं।
मान्यता अनुसार महाभारत युद्ध में एक समय ऐसा आता है जब पांडवों को अपनी जीत के लिए मां काली के चरणों में स्वेच्छिकरूप से किसी पुरुष की बलि हेतु एक राजकुमार की जरूरत पड़ती है। जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता है तो इरावन खुद को इसके लिए प्रस्तुत कर देता है, लेकिन वह इसके साथ ही एक शर्त भी रख देता है कि वह अविवाहित नहीं मरेगा। इस शर्त के कारण यह संकट उत्पन्न हो जाता है कि यदि किसी राजा की बेटी या सामान्य स्त्री से उसका विवाह किया जाता है कि वह तुरंत ही विधवा हो जाएगा। ऐसे में कोई भी पिता इरावन से अपनी बेटी के विवाह के लिए तैयार नहीं होता है। तब भगवान कृष्ण स्वयं मोहिनी रूप में इरावन से विवाह करते हैं। इसके बाद इरावन अपने हाथों से अपना शीश मां काली के चरणों में अर्पित कर देता है। इरावन की मृत्यु के पश्चात कृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक उसकी मृत्यु का विलाप भी करते हैं। अब चुकी कृष्ण पुरुष होते हुए स्त्री रूप में इरावन से शादी रचाते हैं इसलिए किन्नर, जोकि स्त्री रूप में पुरुष माने जाते हैं, वह भी इरावन से एक रात की शादी रचाते हैं और उन्हें अपना आराध्य देव मानते हैं। लेकिन यह कथा कितनी सच है यह कोई नहीं जानता, क्योंकि महाभारत में तो इरावन की मौत के राज कुछ और ही है।
इरावन का मंदिर : नागराज कौरव्य की पुत्री नागकन्या उलूपी और अर्जुन का पुत्र इरावन था। देशभर के किन्नर इसको देवता मानकर पूजते हैं। इसकी याद में हजारों किन्नर तमिलनाडु के कूवागम गांव में एकत्रित होते हैं। यहां उनका एक मंदिर भी है।