सुखी जीवन चाहते हैं तो पहले सुख को चाहना होगा। दु:ख पर ध्यान दोगे तो दु:ख बढ़ेगा और सुख पर ध्यान दोगे तो सुख बढ़ेगा। कई लोग दूसरे के सुख से दु:खी होते हैं और कई लोग खुद की एवं दूसरी की खामियां ही ढूंढते रहते हैं। यह भी दु:ख का एक कारण बनता है।
बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि मेरे दु:ख का कारण मैं नहीं कोई और है। व्यक्ति अपने दु:ख का कारण खुद ही होता है। ऐसे भी लोग हैं जिन्हें दु:खी होने में आनंद मिलता है क्योंकि इससे उनकी पूछ-परख बढ़ जाती होगी या उन्हें किसी की सहानुभूति हासिल करना होती होगी? खैर..
हिन्दू ग्रंथ महाभारत में मनुष्य के विचार और व्यवहार को सही और संतुलित करने के लिए अनेक सूत्र बताए गए हैं। जिनसे हर व्यक्ति अपने दु:ख के कारण जानकर सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है। महाभारत में स्वभाव से जुड़ी बहुत-सी ऐसी बातें बताई गई हैं, जिनके कारण कोई व्यक्ति दु:खी होता रहता है। इनमें से कुछ बातों को जानकर उनके दोषों को दूर कर व्यक्ति व्यावहारिक जीवन में बेहतर बदलाव ला सकता है।
महाभारत में लिखा है -
ईर्ष्या घृणो न संतुष्ट: क्रोधनो नित्यशङ्कित:।
परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदु:खिता:।।
अर्थात ईष्या, घृणा, असंतोष, क्रोध, शंका रखने वाले, दूसरे के भाग्य पर जीवन जीने वाले या दूसरों पर आश्रित रहने वाले लोग सदा दु:खी ही रहते हैं। इसका मतलब यह कि यदि आपमें उक्त छह गुण हैं तो आप दु:खी ही रहेंगे।
अपने इन दुर्गुणों को पहचान कर आप सुखी हो सकते हैं। अत: सबसे पहले यह कि आप दूसरों पर आश्रित रहना छोड़ें। अपना भाग्य खुद निर्माण करें। ऐसा करते वक्त आप किसी से ईर्ष्या और घृणा न रखें। अपने लक्ष्य पर ही ध्यान दें। फिर कभी क्रोध न करें बल्कि लोगों से प्रेम करें और उन्हें फायदा पहुंचाते रहें। अंत में यह कि लोगों पर विश्वास करना सीखें। इसके लिए आपको श्रद्धा और सबुरी रखना होगी। यदि यह गुण आप अपना लेते हैं तो निश्चित ही सफल हो जाएंगे।