हिंदू धर्म की सभी विचारधारा या संप्रदाय वेद से निकले हैं। वेदों में ईश्वर, परमेश्वर या ब्रह्म को ही सर्वोच्च शक्ति माना गया है। सदाशिव, दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, काली आदि सभी उस सर्वोच्च शक्ति का ही ध्यान करते हैं। सभी संप्रदाय मूल में उसी सर्वोच्च शक्ति के बारे में बताते हैं। आओ जानते हैं हिन्दू धर्म के प्रमुख संप्रदायों और उनके उप-संप्रदायों के नाम।
1. शैव:-
पाशुपत, आगमिक, रसेश्वर, महेश्वर, कश्मीरी शैव, वीर शैव, तमिल शैव, नंदीनाथ, कालदमन, कोल, लकुलीश, कापालिक, कालामुख, लिंगायत, अघोरपंथ, दशनामी, नाथ, निरंजनी संप्रदाय-नाथ संप्रदाय से संबंधित, शैव सिद्धांत संप्रदाय (सिद्ध संप्रदाय), श्रौत शैव सिद्धांत संप्रदाय (शैवाद्वैत/शिव-विशिष्टाद्वैत) आदि।
2. वैष्णव या भागवत:-
दत्तात्रेय संप्रदाय, सौर संप्रदाय, पांचरात्र मत, वैरागी, दास, रामानंद-रामावत संप्रदाय, वल्लभाचार्य का रुद्र या पुष्टिमार्ग, निम्बार्काचार्य का सनक संप्रदाय, आनंदतीर्थ का ब्रह्मा संप्रदाय, माध्व, राधावल्लभ, सखी, चैतन्य गौड़ीय, वैखानस संप्रदाय, रामसनेही संप्रदाय, कामड़िया पंथ, नामदेव का वारकरी संप्रदाय, पंचसखा संप्रदाय, अंकधारी, तेन्कलै, वडकलै, प्रणामी संप्रदाय अथवा परिणामी संप्रदाय, दामोदरिया, निजानंद संप्रदाय- कृष्ण प्रणामी संप्रदाय, उद्धव संप्रदाय- स्वामी नारायण, एक शरण समाज, श्री संप्रदाय, मणिपुरी वैष्णव, प्रार्थना समाज, रामानुज का श्रीवैष्णव, रामदास का परमार्थ आदि।
3. शाक्त:-
श्रीकुल, कालीकुल आदि- जो सभी देवियों के उपासक हैं।
4. गणपत्य संप्रदाय:-
गणेश के उपासक
5. कौमारम संप्रदाय:-
कार्तिकेय के उपासक
6. तांत्रिक संप्रदाय:-
दक्षिणाचार, वामाचार (वाममार्ग), कौलाचार (कुलमार्ग), विद्यापीठ (वामतंत्र, यामलतंत्र, शक्तितंत्र) वैष्णव-सहजिया, त्रिक संप्रदाय और दोनों शाक्त संप्रदाय तांत्रिक संप्रदायों में भी गिने जाते हैं।
7. वैदिक संप्रदाय:-
A.वेद मत :- वैदिक संप्रदाय वे हैं जो निराकार ब्रह्म के उपासक हैं। जैसे श्रौत परंपरा, आर्य समाज, ब्रह्म समाज, आदि सभी वैदिक परंपरा के अनुयायी हैं।
B.संत मत :- शुद्ध वैदिक संप्रदाय के अलावा गायत्री परिवार, रामकृष्ण मिशन, धामी संप्रदाय, कबीरपंथ, दादूपंथ, रविदासपंथ, थियोसॉफिकल सोसाइटी, राधास्वामी सत्संग, जयगुरुदेव आदि सभी भी वैदिक परंपरा के ही वाहक हैं।
7. स्मार्त संप्रदाय:-
जो स्मृति पर आधारित है। यह पंच दोवों के उपासक हैं। पंच देव अर्थात सूर्य, विष्णु दुर्गा, गणेश और शिव।
ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य या शूद्र कोई संप्रदाय नहीं है। यह कर्मों पर आधारित वर्ग विभाजन है जिसका वर्तमान में कोई महत्व नहीं रहा, क्योंकि प्रत्येक वर्ग के लोग भिन्न भिन्न प्रकार के कार्य में रत हैं।
प्राचीनकाल में ब्राह्मणों में दो वर्ग थे- एक वह जो संन्यासी और दूसरे वह जो पुरोहित होते थे। संन्यासी जंगल में रहकर आश्रम आदि को संचालित करते थे और पुरोहित संसार में ही रहकर आम जनता के धार्मिक कार्य संपन्न करते थे। इसी तरह छत्रिय का कार्य राज्य संचालन, सेना का गठन, संचालन और युद्ध था। राज्य के व्यापार को संचालित करने वालों को वैश्य कहते थे।
दूसरी ओर जो व्यक्ति उक्त तीन कार्यों को छोड़कर अन्य कार्य करता था तो उसे शूद्र कहते थे। शूद्र किसी भी समाज या संप्रदाय का हो सकता था। शूद्र उसे कहते थे जो गांव के बाहर रहकर गांव की रक्षा करते, किसानों की जमीन पर काम करते, गांव की सीमा बताते, व्यापारियों को एक जगह से दूसरी जगह जाते वक्त सुरक्षा देते, खेत से होने वाली फसल और राज्य के खजाने की रक्षा करते, खाजाने को एक जगह से दूसरे जगह सुरक्षित ले जाने का कार्य करते और सैनिकों के लिए रसद ले जाते थे। वे मूलत: राज्य के सरकारी और प्रइवेट कर्मचारी होते थे, जो छोटे-छोटे कार्य या व्यापार करते थे।
ब्राह्मणों में गोस्वामी, गौड़, सरयुपारी, विश्वकर्मा आदि कोई संप्रदाय नहीं है। इसी तरह छत्रियों में जाट, पटेल, परमार, चौहान, गुर्जर, मीणा, मेघवंशी, मराठा, महार, यादव, राजपुत आदि, वैश्यों में अग्रवाल, महेश्वरी, पोरवाल आदि। इसी तरह जिन्हें शूद्र माना जाता है उनके समाज को भी वैसा संप्रदाय नहीं माना जाता जिसका उल्लेख हिन्दू धर्म में किया गया है।
नोट : सुझाव और संशोधन आमंत्रित है।