Mahabharat : श्रीकृष्ण की 1 अक्षौहिणी नारायणी सेना मिलाकर कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी तो पांडवों ने 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर ली थी। इस तरह सभी महारथियों की सेनाओं को मिलाकर कुल 45 लाख से ज्यादा लोगों ने इस युद्ध में भाग लिया था। 18 दिनों तक चले इस युद्ध में लाखों लोगों की भोजन की व्यवस्था करने एक चुनौति भरा कार्य था और वह भी तब जबकि यह पता नहीं चल पाता था कि हजारों लोगों के मारे जाने के बाद रात्रि का भोजन कितने लोगों के लिए बनाना है कि जिससे भोजन बचे भी नहीं और भी की पूर्ति भी हो जाए।ALSO READ: महाभारत के अश्वत्थामा अभी जिंदा है या कि मर गए हैं?
किसने संभाली भोजन व्यवस्था : महाभारत युद्ध की घोषणा हुई तो सभी राज्यों के राजा अपना-अपना पक्ष तय कर रहे थे। कोई कौरवों की तरफ था, तो कोई पांडवों की तरफ। इस दौरान कई ऐसे भी राजा थे जिन्होंने तटस्थ रहना तय किया था। मान्यता के अनुसार उन्हीं में से एक उडुपी यानी ओड़िशा के राजा भी थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने पर भोजन का प्रबंधन संभाला।ALSO READ: महाभारत के युद्ध में जब हनुमानजी को आया गुस्सा, कर्ण मरते-मरते बचा
कैसे तय होता था कि कितना भोजन बनाना है: राजा के समक्ष यह सवाल था कि प्रतिदिन में भोजन किस हिसाब से बनवाऊं? खाना कम या ज्यादा तो नहीं होगा? उनकी इस चिंता का हल श्रीकृष्ण ने निकाल लिया था। आश्चर्य कि 18 दिन चलने वाले इस युद्ध में कभी भी खाना कम नहीं पड़ा और न ही बड़ी मात्रा में बचा। यह कैसे संभव हुआ?
युद्ध के अंत के बाद युधिष्ठिर ने पूछा कि आप किस तरह यह जान लेते थे कि आज इतना ही भोजन बनाना है? तब उडुपी के राजा ने इसका श्रेय श्रीकृष्ण को दिया। उडुपी के राजा ने युधिष्ठिर से कहा कि भगवान श्रीकृष्ण रोज उबली हुई मूंगफली खाते थे। जैसे मान लो उन्होंने 10 मूंगफली खाई तो मैं समझ जाता था कि दूसरे दिन 10000 सैनिक मारे जाएंगे। अत: दूसरे दिन में 10 हजार सैनिकों का खाना नहीं बनाता था। इस तरह श्रीकृष्ण के कारण हर दिन सैनिकों को पूरा भोजन मिल जाता था और अन्न का अपमान भी नहीं होता था।ALSO READ: रामायण और महाभारत के योद्धा अब कलयुग में क्या करेंगे?