मौसुल युद्ध के कारण जब श्रीकृष्ण के कुल के अधिकांश लोग मारे गए तो श्रीकृष्ण ने प्रभाष क्षेत्र में एक वृक्ष के नीचे विश्राम किया। वहीं पर उनको एक भील ने भूलवश तीर मार दिया जो कि उनके पैरों में जाकर लगा। इसी को बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने देह को त्याग दिया। उसके बाद द्वारिका नगरी समुद्र में डूब जाती है।
द्वारिका के समुद्र में डूबने के दौरान अर्जुन यदुवंश की सभी स्त्री और द्वारिकावासियों को वहां से निकालकर तेजी से हस्तिनापुर की और ले जाने के लिए चलने लगते हैं। जैसे मथुरा से 18 यदुकुल के साथ अधिकांश द्वारिकावासियों को श्रीकृष्ण के साथ पलायन करना पड़ा था, उसी तरह यह भी एक बहुत बड़ा पलायन था। अर्जुन हजारों लोगों को साथ लेकर हस्तिनापुर की ओर रवाना हो जाते हैं।
रास्ते में भयानक जंगल आदि को पार करते हुए वे पंचनद देश में पड़ाव डालते हैं। वहां रहने वाले लुटेरों को जब यह खबर मिलती है कि अर्जुन अकेले ही इतने बड़े जनसमुदाय को लेकर हस्तिनापुर जा रहे हैं तो वे धन के लालच में वहां धावा बोल देते हैं। अर्जुन चीखकर लुटेरों को चेतावनी देते हैं, लेकिन लुटेरों पर उनकी चीख का कोई असर नहीं होता है और वे लूट-पाट करने लगते हैं। वह सिर्फ स्वर्ण आदि ही नहीं लुटते हैं बल्कि सुंदर महिलाओं को भी लुटते हैं। चारों और हाहाकार मच जाता है।
ऐसे में अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने के लिए स्मरण करते हैं लेकिन उसकी स्मरण शक्ति लुप्त हो जाती है। कुछ ही देर में उनके तरकश के सभी बाण भी समाप्त हो जाते हैं। तब अर्जुन बिना शस्त्र से ही लुटेरों से युद्ध करने लगता है लेकिन देखते ही देखते लुटेरे बहुत-सा धन और स्त्रियों को लेकर भाग जाते हैं। खुद को असहाय पाकर अर्जुन को बहुत दुख होता है। वह समझ नहीं पाता है कि क्यों और कैसे मेरी अस्त्र विद्या लुप्त हो गई।
जैसे-तैसे अर्जुन यदुवंश की बची हुई स्त्रियों व बच्चों को लेकर कुरुक्षेत्र पहुंचते हैं। यहां आकर अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के प्रपोत्र वज्र को इंद्रप्रस्थ का राजा बना देते हैं। बूढ़ों, बालकों व अन्य स्त्रियों को अर्जुन इंद्रप्रस्थ में रहने के लिए कहते हैं। लेकिन कहा जाता है कि रुक्मिणी, शैब्या, हेमवती तथा जांबवंती आदि रानियां अग्नि में प्रवेश कर गईं और शेष वन में तपस्या के लिए चली जाती हैं।
भगवान कृष्ण के वंश के बचे हुए एकमात्र यदुवंशी और उनके प्रपोत्र (पोते का पुत्र) वज्र को इंद्रप्रस्थ का राजा बनाने के बाद अर्जुन महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचते हैं। यहां आकर अर्जुन ने महर्षि वेदव्यास को बताया कि श्रीकृष्ण, बलराम सहित सारे यदुवंशी कैसे और किस तरह समाप्त हो चुके हैं। तब महर्षि ने कहा कि यह सब इसी प्रकार होना था। इसलिए इसके लिए शोक नहीं करना चाहिए। अर्जुन यह भी बताते हैं कि किस प्रकार साधारण लुटेरे उनके सामने यदुवंश की स्त्रियों का हरण करके ले गए और वे कुछ भी न कर पाए।
अर्जुन की बात सुनकर महाभारत लिखने वाले दिव्य पुरुष महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि वे दिव्य अस्त्र जिस उद्देश्य से तुमने प्राप्त किए थे, वह उद्देश्य पूरा हो गया। अत: वे पुन: अपने स्थानों पर चले गए हैं। तुम लोगों ने अपना कर्तव्य पूर्ण कर लिया है अत: अब तुम्हारे परलोक गमन का समय आ गया है। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर अर्जुन उनकी आज्ञा से हस्तिनापुर जाकर महाराज युधिष्ठिर को सारा वृत्तांत सुनाते हैं। बाद में सभी पांडव स्वर्गलोक की यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
व्रजनाभ : कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को बहुत सी जगह पर वज्रनाभ भी लिखा गया है। वज्रनाभ द्वारिका के यदुवंश के अंतिम शासक थे, जो यदुओं की आपसी लड़ाई में जीवित बच गए थे। द्वारिका के समुद्र में डूबने पर अर्जुन द्वारिका गए और वज्र तथा शेष बची यादव महिलाओं को हस्तिनापुर ले गए। कृष्ण के प्रपौत्र वज्र को हस्तिनापुर में मथुरा का राजा भी घोषित किया था। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है। इस वज्र ने ही मथुरा में सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर भव्य मंदिर बनवाया था।