एक बार गांधी जी एक छोटे से गांव में पहुंचे तो उनके दर्शनों के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी। गांधीजी ने लोगों से पूछा, 'इन दिनों आप कौन-सा अन्न बो रहे हैं और किस अन्न की कटाई कर रहे हैं?’
तभी भीड़ में से एक वृद्ध व्यक्ति आगे आया और करबद्ध हो बोला, 'आप तो बड़े ज्ञानी हैं। क्या आप इतना भी नहीं जानते कि ज्येष्ठ (जेठ) मास में खेतों में कोई फसल नहीं होती। इन दिनों हम खाली रहते हैं।
गांधी जी ने पूछा, 'जब फसल बोने व काटने का समय होता है, तब क्या बिलकुल भी समय नहीं होता?’
वृद्ध ने जवाब दिया, ‘उस समय तो हमें रोटी खाने का भी समय नहीं होता।
गांधी जी बोले, ‘तो क्या इस समय तुम बिलकुल निठल्ले हो और सिर्फ गप्पें हांक रहे हो। यदि तुम चाहो तो इस समय भी कुछ बो और काट सकते हो।’
तभी कुछ गांव वाले बोले, 'कृपा करके आप ही बता दीजिए कि हमें क्या बोना और क्या काटना चाहिए?’
गांधी जी ने गंभीरतापूर्वक कहा -
आप लोग कर्म बोइए और आदत को काटिए,
आदत को बोइए और चरित्र को काटिए,
चरित्र को बोइए और भाग्य को काटिए,
तभी तुम्हारा जीवन सार्थक हो पाएगा।