महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। महात्मा गांधी जब 30 जनवरी 1948 की शाम को 5 बजकर 17 मिनट पर दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में संध्याकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे तभी नाथूराम गोड़से ने पहले उनके पैर छुए और फिर बापू के साथ खड़ी महिला को हटाया और अपनी सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से एक बाद के एक तीन गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
न्यायालय में नाथूराम गोडसे द्वारा दिए गए बयान के अनुसार जिस पिस्तौल से गांधीजी को निशाना बनाया गया वह उसने दिल्ली में एक शरणार्थी से खरीदी थी। नाथूराम के साथ ही कुल 8 लोगों को इस मामले में अभियुक्त बनाया गया। ये नाम इस प्रकार है-
अंबाला जेल :
1. वीर सावरकर, सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त किया। 28 मई 1883 को जन्मे विनायक दामोदर सावरकर का देहांत 26 फरवरी 1966 को हुआ। अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का गठन इन्होंने ही किया था।
2. शंकर किस्तैया, आजीवन कारावास मिलने के बाद उच्च न्यायालय ने अपील करने पर छोड़ने का निर्णय दिया। हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता।
3. दिगम्बर बड़गे, सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया। हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता। इन्होंने सभी अभियुक्तों के नाम बता दिए थे जिसके चलते मामला शीघ्रता से सुलझ गया।
4. गोपाल गौड़से आजीवन कारावास हुआ। 1919 में जन्मे नाथूराम गोड़से के भाई और हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता थे।
5. मदनलाल पाहवा, आजीवन कारावास हुआ। हिन्दूमहासभा के एक कार्यकर्ता थे। जिन्होंने गांधी हत्या की तिथि से 10 दिन पूर्व 20 जनवरी 1948 को उनकी प्रार्थना सभा में हथगोला फेंका था।
6. विष्णु रामकृष्ण करकरे, आजीवन कारावास हुआ। हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता जिनका जन्म 1910 को हुआ था और 1974 को इनकी मृत्यु हो गई।
7. नारायण आप्टे, 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गयी। 1911 में जन्मे नारायण आप्टे हिन्दूमहासभा के एक कार्यकर्ता थे।
8. नाथूराम विनायक गोडसे, 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गयी। नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 में हुआ था।
एक अभियुक्त टैक्सी ड्राइवर सुरजीत सिंह का नाम भी इसमें शामिल है जो कि सभी को टैक्सी से सभा स्थल पर छोड़ता है। सुरजीत सिंह बाद में सरकारी गवाह बन गए थे। 20 जनवरी को जब मदनलाल पाहवा ने बम फेंका था तब वह बम असरकारक नहीं था। पाहवा को गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन तब महात्मा गांधी की सुरक्षा बढ़ाई जाना चाहिए थी। हालांकि ऐसा हो नहीं सका और 30 जनवरी को घटना को अंजाम दिया गया।
सजा प्राप्त सभी अभियुक्त यह मानते थे कि भारत विभाजन के समय महात्मा गांधी ने भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष का समर्थन किया था। जबकि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आंखें मूंद ली थी।