Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मातृदिवस विशेष : मां ही मंदिर है, मां ही तीर्थ है

हमें फॉलो करें मातृदिवस विशेष : मां ही मंदिर है, मां ही तीर्थ है
webdunia

ललि‍त गर्ग

-ललित गर्ग
 
संसार महान व्यक्तियों के बिना रह सकता है, लेकिन मां के बिना रहना एक अभिशाप की तरह है। इसलिए संसार मां का महिमामंडन करता है, उसके गुणगान करता है। इसके लिए मदर्स डे, मातृदिवस या माताओं का दिन चाहे जिस नाम से पुकारें, दिन निर्धारित है।
 
अंतरराष्ट्रीय मातृत्व दिवस संपूर्ण मातृशक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है जिसका ममत्व एवं त्याग घर ही नहीं, सबके घट को उजालों से भर देता है। मां का त्याग, बलिदान, ममत्व एवं समर्पण अपनी संतान के लिए इतना विराट है कि पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। संतान के लालन-पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली मां के साथ बिताए दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं।
 
इसीलिए एच. डब्ल्यू. बीचर ने कहा कि मां का हृदय बच्चे की पाठशाला है। हर एक के जीवन में मां एक अनमोल इंसान के रूप में होती है जिसके बारे में शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने मां को बनाया। एक मां हमारे जीवन की हर छोटी बड़ी जरूरतों का ध्यान रखने वाली और उन्हें पूरा करने वाली देवदूत होती है। कहने को वह इंसान होती है, लेकिन भगवान से कम नहीं होती। वह ही मंदिर है, वह ही पूजा है और वह ही तीर्थ है।
 
तभी ई. लेगोव ने कहा है कि इस धरती पर मां ही ऐसी देवी है जिसका कोई नास्तिक नहीं। यही कारण है कि समूची दुनिया में मां से बढ़कर कोई इंसानी रिश्ता नहीं है। वह संपूर्ण गुणों से युक्त है, गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान है। उसका आशीर्वाद वरदान है। जरा कभी मां के पास बैठो, उसकी सुनो, उसको देखो, उसकी बात मानो। उसका आशीर्वाद लेकर, उसके दर्शन करके निकलो। फिर देखो, जो चाहोगे मिलेगा- सुख, शांति, शोहरत और कामयाबी। ध्यान रहे, मां का दिल दुखाने का मतलब ईश्वर का अपमान है।
 
संसार महान व्यक्तियों के बिना रह सकता है, लेकिन मां के बिना रहना एक अभिशाप की तरह है। इसलिए संसार मां का महिमामंडन करता है, उसके गुणगान करता है, इसके लिए मदर्स डे, मातृदिवस या माताओं का दिन चाहे जिस नाम से पुकारें, दिन निर्धारित है। अमेरिका में मदर्स डे की शुरुआत 20वीं शताब्दी के आरंभ के दौर में हुई। विश्व के विभिन्न भागों में यह अलग-अलग दिन मनाया जाता है।
 
मदर्ड डे का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है। प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में मदर्स डे मनाने का उल्लेख है। भारतीय संस्कृति में मां के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा रही है। लेकिन आज आधुनिक दौर में जिस तरह से मदर्स डे मनाया जा रहा है, उसका इतिहास भारत में बहुत पुराना नहीं है। इसके बावजूद 2-3 दशक से भी कम समय में भारत में मदर्स डे काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। मातृदिवस समाज में माताओं के प्रभाव व सम्मान का उत्सव है। मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है।
 
मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किन्हीं शब्दों में नहीं होती। मां नाम है संवेदना, भावना और अहसास का। मां के आगे सभी रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। मातृत्व की छाया में मां न केवल अपने बच्चों को सहेजती है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसका सहारा बन जाती है। समाज में मां के ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की जिम्मेदारी निभाई।
 
मांरूपी सूरज 'चरेवैति-चरेवैति' का आह्वान है। उसी से तेजस्विता एवं व्यक्तित्व की आभा निखरती है। उसका ताप मन की उम्मीदों को कभी जंग नहीं लगने देता। उसका हर संकल्प मुकाम का अंतिम चरण होता है। मातृदिवस सभी माताओं का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। एक बच्चे की परवरिश करने में माताओं द्वारा सहन की जाने वालीं कठिनाइयों के लिए आभार व्यक्त करने के लिए यह दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग अपनी मां को ग्रीटिंग कार्ड और उपहार देते हैं। 
 
कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग ने मातृत्व को परिभाषित करते हुए कहा है- सभी प्रकार के प्रेम का आदि उद्गम स्थल मातृत्व है और प्रेम के सभी रूप इसी मातृत्व में समाहित हो जाते हैं। प्रेम एक मधुर, गहन, अपूर्व अनुभूति है, पर शिशु के प्रति मां का प्रेम एक स्वर्गीय अनुभूति है
 
 
'मां!' यह वो अलौकिक शब्द है जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वत: उमड़ पड़ता है और मनो:मस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। 'मां' वो अमोघ मंत्र है जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है।
 
'मां' की ममता और उसके आंचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है जिसने आपको और आपके परिवार को आदर्श संस्कार दिए। उनके दिए गए संस्कार ही मेरी दृष्टि में आपकी मूल थाती है, जो हर मां की मूल पहचान होती है। हर संतान अपनी मां से ही संस्कार पाती है, लेकिन मेरी दृष्टि में संस्कार के साथ-साथ शक्ति भी मां ही देती है। इसलिए हमारे देश में मां को शक्ति का रूप माना गया है और वेदों में मां को सर्वप्रथम पूजनीय कहा गया है।
 
श्रीमद् भगवद् पुराण में उल्लेख मिलता है कि माता की सेवा से मिला आशीष 7 जन्मों के कष्टों व पापों को दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है। प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने मां की महिमा को उजागर करते हुए कहा है कि जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी मां के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान थी। एक मां हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में संपूर्ण है।
 
अब्राहम लिंकन का मां के बारे में मार्मिक कथन है कि जो भी मैं हूं या होने की उम्मीद है, मैं उसके लिए अपने प्यारी मां का कर्जदार हूं। किसी औलाद के लिए 'मां' शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए मां शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही मां के लिए उसका संसार होता है।
 
क्या कभी आपने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में मां ही क्यों याद आती है, क्योंकि वो मां ही होती है, जो हमें तब से जानती है, जब हम अजन्मे होते हैं। बचपन में हमारा रातों का जागना जिस वजह से कई रातों तक मां सो भी नहीं पाती थी। वह गीले में सोती और हमें सूखे में सुलाती। जितना मां ने हमारे लिए किया है उतना कोई दूसरा कर ही नहीं सकता।
 
जाहिर है मां के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि एक सदी, कई सदियां भी कम हैं। मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। इसका अनुभव भी एक मां ही कर सकती है। मां अपने आप में पूर्ण संस्कारवान, मनुष्यत्व व सरलता के गुणों का सागर है।
 
मां जन्मदात्री ही नहीं, बल्कि पालन-पोषण करने वाली भी है। मां तो ममता की सागर होती है। जब वह बच्चे को जन्म देकर बड़ा करती है तो उसे इस बात की अपूर्व एवं अलौकिक खुशी होती है, उसके लाड़ले पुत्र-पुत्री से अब सुख मिल जाएगा। लेकिन मां की इस ममता को नहीं समझने वाले कुछ बच्चे यह भूल बैठते हैं कि इनके पालन-पोषण के दौरान इस मां ने कितनी कठिनाइयां झेली होंगी।
 
एक शिशु का जब जन्म होता है, तो उसका पहला रिश्ता मां से होता है। एक मां शिशु को पूरे 9 माह अपनी कोख में रखने के बाद असहनीय पीड़ा सहते हुए उसे जन्म देती है और इस दुनिया में लाती है। इन 9 महीनों में शिशु और मां के बीच एक अदृश्य प्यारभरा गहरा रिश्ता बन जाता है। यह रिश्ता शिशु के जन्म के बाद साकार होता है और जीवनपर्यंत बना रहता है।
 
मां और बच्चे का रिश्ता इतना प्रगाढ़ और प्रेम से भरा होता है कि बच्चे को जरा ही तकलीफ होने पर भी मां बेचैन हो उठती है। वहीं तकलीफ के समय बच्चा भी मां को ही याद करता है। मां का दुलार और प्यारभरी पुचकार ही बच्चे के लिए दवा का कार्य करती है। इसलिए ही ममता और स्नेह के इस रिश्ते को संसार का खूबसूरत रिश्ता कहा जाता है। दुनिया का कोई भी रिश्ता इतना मर्मस्पर्शी नहीं हो सकता।
 
डेविट टलमेज ने कटु सत्य को उजागर किया है कि मां एक ऐसा बैंक है, जहां हम अपने चोटों और परेशानियों को जमा करके रखते हैं। 'मां'- इस लघु शब्द में प्रेम की विराटता/समग्रता निहित है। अणु-परमाणुओं को संघटित करके अनगिनत नक्षत्रों, लोक-लोकांतरों, देव-दनुज-मनुज तथा कोटि-कोटि जीव प्रजातियों को मां ने ही जन्म दिया है। मां के अंदर प्रेम की पराकाष्ठा है या यूं कहें कि मां ही प्रेम की पराकाष्ठा है।
 
प्रेम की यह चरमता केवल माताओं में ही नहीं, वरन सभी मादा जीवों में देखने को मिलती है। अपने बच्चों के लिए भोजन न मिलने पर हवासिल (पेलिकन) नाम की जल-पक्षिनी अपना पेट चीरकर अपने बच्चों को अपना रक्त-मांस खिला-पिला देती है।
 
किंतु त्याग की यह चरमता ही मां अर्थात नारी जाति की शत्रु बन गई। समाज पुरुष प्रधान होता गया और नारी का अवमूल्यन होता गया। धीरे-धीरे वह पुरुष की उपभोग्या, उसके 'चरणों की दासी' बनकर रह गई। शिक्षा-आत्मसम्मान वंचिता दासी की संतति महान कैसे हो सकती है? उसमें तो दास सुलभ चारित्रिक प्रवृत्तियां आएंगी ही। अत: नारी के अवमूल्यन के साथ-साथ पुरुष जाति का नैतिक अध:पतन होता गया।
 
वेदमूर्ति, महामहोपाध्याय पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने एक बार कहा था, 'तुम भारत के पतन का सच्चा कारण जानते हो? मैं समझता हूं कि यह दो कारणों से हुआ। हमने भाग्य को परिश्रम से अधिक महत्व दिया और अपनी महिलाओं को अर्थात आधे समाज को एक सुन्न व्यवस्था में पहुंचा दिया।'
 
कितनी दयनीय बात है कि जिस देश ने स्त्री की शक्ति के रूप में अवधारणा दी जिसने पुराणों के पृष्ठों में देवताओं को 4 या 8 हाथ दिए किंतु देवियों को 108 हाथ दिए, उसी ने स्त्रियों को पुरुषों से नीचा स्थान दिया और उन्हें वेद पढ़ने के अधिकार से वंचित कर दिया और सबसे शोचनीय बात यह है कि उन्हें चारदीवारी में बंद कर दिया।
 
'मां' को उसकी देवी सम्मान दिलाना वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकताओं में से एक है। मां प्राण है, मां शक्ति है, मां ऊर्जा है, मां प्रेम, करुणा और ममता का पर्याय है। मां केवल जन्मदात्री ही नहीं, जीवन निर्मात्री भी है। मां धरती पर जीवन के विकास का आधार है। मां ने ही अपने हाथों से इस दुनिया का ताना-बाना बुना है।
 
सभ्यता के विकास क्रम में आदिम काल से लेकर आधुनिक काल तक इंसानों के आकार-प्रकार में, रहन-सहन में, सोच-विचार, मस्तिष्क में लगातार बदलाव हुए लेकिन मातृत्व के भाव में बदलाव नहीं आया। उस आदिम युग में भी मां, मां ही थी। तब भी वह अपने बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करती थीं। उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा करना सिखाती थी।
 
आज के इस आधुनिक युग में भी मां वैसी ही है। मां नहीं बदली। विक्टर ह्यूगो ने मां की महिमा इन शब्दों में व्यक्त की है कि एक मां की गोद कोमलता से बनी रहती है और बच्चे उसमें आराम से सोते हैं। मां को धरती पर विधाता की प्रतिनिधि कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सच तो यह है कि मां विधाता से कहीं कम नहीं है, क्योंकि मां ने ही इस दुनिया को सिरजा और पाला-पोसा है।
 
कण-कण में व्याप्त परमात्मा किसी को नजर आए न आए, मां हर किसी को हर जगह नजर आती है। कहीं अंडे सेती, तो कहीं अपने शावक को, छोने को, बछड़े को, बच्चे को दुलारती हुई नजर आती है। मां एक भाव है मातृत्व का, प्रेम और वात्सल्य का, त्याग का और यही भाव उसे विधाता बनाता है।
 
मां विधाता की रची इस दुनिया को फिर से अपने ढंग से रचने वाली विधाता है। मां सपने बुनती है और यह दुनिया उसी के सपनों को जीती है और भोगती है। मां जीना सिखाती है। पहली किलकारी से लेकर आखिरी सांस तक मां अपनी संतान का साथ नहीं छोड़ती। मां पास रहे या न रहे मां का प्यार-दुलार, मां के दिए संस्कार जीवनभर साथ रहते हैं।
 
मां ही अपनी संतानों के भविष्य का निर्माण करती हैं इसीलिए मां को 'प्रथम गुरु' कहा गया है। स्टीव वंडर ने सही कहा है कि मेरी मां मेरी सबसे बड़ी अध्यापक थीं- करुणा, प्रेम, निर्भयता की एक शिक्षक। अगर प्यार एक फूल के जितना मीठा है, तो मेरी मां प्यार का मीठा फूल है।
 
प्रथम गुरु के रूप में अपनी संतानों के भविष्य निर्माण में मां की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। मां कभी लोरियों में, कभी झिड़कियों में, कभी प्यार से तो कभी दुलार से बालमन में भावी जीवन के बीज बोती है। इसलिए यह आवश्यक है कि मातृत्व के भाव पर नारी मन के किसी दूसरे भाव का असर न आए। जैसा कि आज कन्या भ्रूणों की हत्या का जो सिलसिला बढ़ रहा है, वह नारी-शोषण का आधुनिक वैज्ञानिक रूप है तथा उसके लिए मातृत्व ही जिम्मेदार है।
 
महान जैन आचार्य एवं अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य तुलसी की मातृशक्ति को भारतीय संस्कृति से परिचित कराती हुई निम्न प्रेरणादायिनी पंक्तियां पठनीय ही नहीं, मननीय भी हैं- 'भारतीय मां की ममता का एक रूप तो वह था, जब वह अपने विकलांग, विक्षिप्त और बीमार बच्चे का आखिरी सांस तक पालन करती थी।'
 
परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा की गई उसकी उपेक्षा से मां पूरी तरह से आहत हो जाती थी। वही भारतीय मां अपने अजन्मे, अबोल शिशु को अपनी सहमति से समाप्त करा देती है। क्यों? इसलिए नहीं कि वह विकलांग है, विक्षिप्त है, बीमार है पर इसलिए कि वह एक लड़की है। क्या उसकी ममता का स्रोत सूख गया है? कन्या भ्रूणों की बढ़ती हुई हत्या एक और मनुष्य को नृशंस करार दे रही है, तो दूसरी ओर स्त्रियों की संख्या में भारी कमी मानविकी पर्यावरण में भारी असंतुलन उत्पन्न कर रही है।
 
'अंतरराष्ट्रीय मातृ-दिवस' को मनाते हुए मातृ-महिमा पर छा रहे ऐसे अनेक धुंधलके को मिटाना जरूरी है, तभी इस दिवस की सार्थकता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Mothers Day slogans 2020 : बेस्ट मदर्स डे कोट्स