आशा मानधन्या
मां के भाव मां पर
एक भ्रूण को कोख में रख,
मैंने शिशु आकार दिया।
तब जाकर उस परमपिता का,
स्वप्न सृजन साकार हुआ ।।
नौ माह का दर्द सहा,
वमन कई बार हुआ ।
अपने रस से सींचा मैंने,
जतन कई प्रकार किया।।
उठी असहनीय प्रसव वेदना ,
समझी हरी से मिलन हुआ।
बगिया में खिलन हुआ।।
आंचल में मैंने लेकर ,
भूख इनकी मिटाई है ।
रहे स्वस्थ इनका तन ,
छोड़े रुचिकर व्यंजन।
अपने हाथों से इनका,
गंदा सब साफ किया ।
इनकी हर गलती को मैंने ,
हंसकर है माफ किया ।।
कई रातें जग कर मैंने,
पलना इन्हें झूलाए हैं।
अपनी नींदे देकर मैंने,
सपने इनके सजाए हैं ।।
इनके हर कदम के आगे,
आंचल से पथ साफ किया।
पाए लक्ष्य ये अपना ,
करती रही प्रभु प्रार्थना ।।
बच्चे की भूख से पहले
भोजन मैने बना दिया ।
अपनी रुचियों को मैंने
इनके मन की मान लिया।
यौवन अपना देकर मैंने ,
नवजीवन इनको दिया है ।
इनकी खुशियों की खातिर ,
अपना सपना छोड़ा दिया।।
यूं ही नहीं प्रभु का दर्जा,
दे दी अपनी सारी ऊर्जा।
एक दिन क्या पूरा जीवन,