यह कहानी कई जगह पढ़ने को मिलती है। जिसने भी यह कहानी लिखी है बहुत ही सुंदर है। आओ जानते हैं कि आखिर यह प्रेरणादायक कहानी से हमें क्या सीख मिलती है।
पौराणिक समय की बात है जबकि एक विचित्र किस्म का पक्षी रहता था। कहते हैं कि उसका धड़ तो एक था परंतु उसके सिर दो थे। उस पक्षी का नाम भारुंड था। मतलब यह कि वह दो सिर से सोचता था। दो सिर थे तो दो मुंह और दो दिमाग भी थे। एक दिमाग कुछ सोचता तो दूसरा दिमाग उसके विपरीत सोचता था। मतलब यह कि एक पूर्व में जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम में। इस तरह वह कहीं भी नहीं जा पाता था। मतलब यह कि यदि वह एक टांग पूर्व में उठाकर रखता था तो दूरी पश्चिम में। भारुंड का जीवन बस दिमागी खींचतान बनकर रह गया था।
फिर जब भारुंड भोजन की तलाश में नदी के किनारे घूम रहा था तो एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा- वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया।'
दूसरे सिर ने कहा, अच्छा! तनिक मैं भी चखकर देखूं। यह कहते हुए उसने अपनी चोंच उस फल की ओर बढ़ाई ही थी कि पहले सिर ने झटका देकर दूसरे सिर को फल से दूर करके बोला, अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया है और इसे मैं ही खाऊंगा।
यह सुनकर दूसरे ने कहा, 'क्या बात कर दी! हम दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें मिल बांटकर ही खानी चाहिए।
पहला सिर बोला, यह सही है कि हमारा शरीर एक ही है तो पेट भी हमारा एक ही है। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी तो भरेगा। जब पेट भरा जाएगा तो तो तुझे खाने की क्या जरूरत है।
यह सुनकर दूसरा सिर बोला, 'खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता, स्वाद भी तो कोई चीज़ है। संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती है। खाने का असली मजा तो मुंह के स्वाद में ही तो है।
इस पर पहला सिर क्रोधित होकर बोला, 'मैंने तेरे स्वाद का ठेका थोड़े ही ले रखा है। फल खाने के बाद पेट से डकार तो आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी का मजा ले लेना। अब ज्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे। ऐसा कहकर पहला सिर चटकारे ले-लेकर फल खाने लगा।
इस घरने के बाद उस दूसरे सिर को इतना बुरा लगा कि उसने बदला लेने की ठान ली और अवसर की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में नदी के तट पर घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पड़ी। उसे अवसर मिल गया था और दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी, अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल है? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है।
यह सुनकर दूसरा सिर जोर से हंसा और बोला, मुझे उल्लू मत बना। तुझे क्या लेना-देना है कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात?
पहले सिर ने समझाने का प्रयास किया, तूने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।
दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारू था। वह बोला, मैंने तेरे मरने-जीने का ठेका थोड़े ही ले रखा है? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे। और उस दूसरे सिर ने वह विषैला फल खा लिया। खाने के थोड़ी देर बाद भारुंड तड़प-तड़पकर मर गया।
सीख : इस कहानी से हमें तो तरह की सीख मिलती है। पहली यह कि आपसी मतभेद ले डूबते हैं और दूसरी यह कि जीवन में कभी भी डबल माइंड नहीं रखना चाहिए। डब माइंड का व्यक्ति कभी कोई निर्णय नहीं ले सकता और हर क्षेत्र में हार खाता रहता है।