एक मनोवैज्ञानिक को मछली पालने का शौक चढ़ा। पहले तो वह बाजार गया और एक्वेरियम खरीदने के बाजाया टैक ही खरीदकर ले आया। फिर उसने उसमें 2-3 शार्क मछलियां डाल दी। कुछ समय बाद उसने सोचा की टैंक तो बहुत बढ़ा है क्योंन इसमें दूसरी मछलियां भी डाली जाए। यह सोचकर उसने उस टैंक में 4 5 गोल्डन फिश डाल दी।
गोल्डन फिश को देखने ही शार्क मछली तुरंत तैरकर उसकी ओर गई और एक झटके में ही उसे चट कर गई। उस मनोवैज्ञानिक ने कुछ गोल्डन फिश और डाली लेकिन शार्क मछली उसे भी खा गई। यह देखकर उस मनोवैज्ञानिक ने उस टैंक के बीच में एक पारदर्शी कांच लगा दिया। अब टैंक दो भागों में बंट गया था। एक भाग में शार्क थी और दूसरे भाग में उसने गोल्डन फिश डाल दी।
विभाजक पारदर्शी कांच से गोल्डन फिश को शार्क देख सकती थी। गोल्डन फिश को देखते ही शार्क फिर से उन पर हमला करने के लिए उस ओर तैरी परंतु बीच में लगे कांच टकरा कर रह गई। उसने फिर से प्रयास किया परंतु कांच के टुकड़े के कारण वह गोल्डन फिश मछलियों तक नहीं पहुंच सकी। शार्क ने कई बार कोशिश की परंतु आखिर थक-हारकर उसने हमला करना छोड़ दिया और वह टैंक के अपने भाग में ही रहने लगी।
एक भाग में गोल्डन फिश और दूसरे भाग में शार्क को रहते रहते बहुत दिन हो गए और दोनों ही तरह की मछलियों को अपने अपने हिस्से में रहने की आदत हो गई। यह देखकर कुछ दिनों बाद मनोवैज्ञानिक ने टैंक के बीच से वह कांच हटा दिया। लेकिन फिर भी शार्क ने कभी उन गोल्डन फिश मछलियों पर हमला नहीं किया क्योंकि अब एक काल्पनिक पार्टिशन उसने दिमाग में बस चुका था और उसने सोच लिया था कि वह उसे पार नहीं कर सकती, पहले भी उसे पार करने के चक्कर में चोटें खाई थी।
कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम विपरीत परिस्थिति को पहचान नहीं पाते हैं और उसी से लड़ते रहते हैं। अंत में थक-हारकर बैठ जाते हैं और हमेशा के लिए प्रयास करना छोड़ देते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि हम परिस्थिति को पहचानें और उसी के अनुसार प्रयास करते रहें। कभी भी हार ना मानें और जब भी समय अनुकूल हो तो फिर से जुट जाएं। अतीत की असफलता को कभी भी अपने दिमाग पर हावी ना होने दें।