मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को जनता ने बहुमत के आंकड़े तक तो नहीं पहुंचाया, लेकिन कांग्रेस 114 सीटों के साथ प्रदेश की बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई है। जिसने शासन कर रही शिवराज सरकार को कांटे की टक्कर दी है। गुटबाजी और आंतरिक कलह से ऊपर उठकर कांग्रेस ने प्रचार के दौरान जीत का जज्बा दिखाया है।
कांग्रेस के चाणक्य कमलनाथ 'कमल' का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब रहे हैं। 15 साल से प्रदेश की सत्ता से बेदखल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को 'कमल' का तिलिस्म तोड़ने की जो जिम्मेदारी दी थी, वह उन्होंने बखूबी निभाई है। कमलनाथ के अनुभवी कदमों ने कई गुटों में बिखरी कांग्रेस को सत्ता का सुख दिला दिया। वे सूबे के शाही तख्त पर बैठने के सबसे बड़े दावेदार हैं।
कांग्रेस ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है। वहीं कांग्रेस में अब सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर कौन मुख्यमंत्री बनेगा। वैसे इस रेस में कमलनाथ को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। इस साल अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह में ही कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश का अध्यक्ष बनाया था।
कमलनाथ ने लगभग 6 माह में कांग्रेस को पटरी पर लाने का पूरा प्रयास किया और इस कार्य में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और अन्य नेताओं ने भी पूरा सहयोग किया और शायद इसी का नतीजा है कि आज राज्य में डेढ़ दशक बाद कांग्रेस की फिर से सरकार बनी है।
संजय गांधी के सबसे करीबी माने जाने वाले कमलनाथ को इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कहा जाता था। कमलनाथ के बारे में कहा जाता है कि मुश्किल दौर में भी उन्होंने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा। कमलनाथ 34 साल की उम्र में सांसद बने। वे ऐसे नेता हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा 9 बार लोकसभा का चुनाव जीता है। साथ ही वे कई बार कांग्रेस नीत सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं।