- पंकज पाठक
हमने हमेशा यह अनुभव किया कि पद्मश्री अभय छजलानी जी का मतलब है नईदुनिया! वे सदैव नईदुनिया का पर्याय थे, हैं और रहेंगे।नईदुनिया याने एक सुसंस्कृत, सुसंस्कारित, सत्य का अन्वेषक, मूल्याधारित और शिक्षित करने वाला समाचार पत्र। और नईदुनिया के अपने पूर्वजों से इस परंपरा को बनाए रखने वाले अभय जी।बस, एक दु:खद पहलू यह है कि जैसे ही उन्होंने इसकी बागडोर छोड़ी, नईदुनिया बिक गया।सब-कुछ समाप्त हो गया।वह परंपरा और वह पूर्वार्द्ध!
अभय जी का वह नईदुनिया न्यूज़ पेपर, जिसे पढ़कर बच्चे हिन्दी सीखते थे।वह समाचार पत्र, जिसमें सच्ची ख़बरें छपती थीं। नईदुनिया मतलब समाचारों की विश्वसनीयता का दूसरा नाम। ऐसे समाचार पत्र के बारे में अब सोचा भी नहीं जा सकता। मुझे गर्व है कि मैं इस नर्सरी का पौधा हूँ।
पहले राजेंद्र जी, फिर महेंद्र जी और आज अभय जी भी चले गए।इस प्रकार पुरानी नईदुनिया की दूसरी पीढ़ी विदा हो गई।आख़िरी स्तंभ! युगांत! मेरी उनसे अंतिम भेंट मनोहर बोथरा जी के परिवार के विवाह समारोह में कुछ वर्ष पूर्व इंदौर में हुई थी।तब रमेश अग्रवाल जी भी थे।
इस बीच मदन मोहन जोशी जी की पत्रकारिता पर पुस्तक लिखने के दौरान अभी दो वर्ष पहले उनसे दो-तीन बार फ़ोन पर बात हुई।तब उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती थी। उन्हें स्मृति-लोप हो जाया करता था। मैंने उनसे आग्रह किया था कि इस पुस्तक में जोशी जी के बारे में कुछ लिखें। पर अस्वस्थता के कारण वे लिखने की स्थिति में नहीं थे। तब मैंने उनसे चर्चा के आधार पर एक नोट तैयार किया, जिसे उनके सहायक ने उन्हें पढ़कर सुनाया और उन्होंने उसे प्रकाशन के लिए स्वीकृति प्रदान की।
11 साल नईदुनिया में रहकर अभय जी से बहुत कुछ सीखा। पत्रकारिता का वह स्वर्ण युग कभी लौटकर नहीं आ सकता। आज वह समय नहीं रहा।वह बात भी नहीं रही।परिस्थितियां नहीं रहीं।यही नहीं, संस्कृति भी नहीं रही और संस्कार भी नहीं रहे।और वे लोग भी नहीं रहे, जो पत्रकारिता को एक अलग अंदाज़ में जीते थे।आज की पत्रकारिता में इस बात को समझा नहीं जा सकेगा।
1992 में 36 साल की उम्र में उन्होंने और उमेश त्रिवेदी जी ने मुझे जबरिया संपादक बनाया था।आख़िरी में एक साल इंदौर में रहकर अभय जी के साथ और क़रीब आकर काम करने का अवसर मिला।हालांकि यह भी जबरिया था, लेकिन मैंने इस समय को भी पूरी शिद्दत से जिया।अंत में अपना इस्तीफ़ा भी मैंने उन्हीं को सौंपा था।उनकी मर्ज़ी के खिलाफ।उन्हें पूरा अंदाज़ा था कि मैं दैनिक भास्कर जॉइन करूंगा।
उस ज़माने में भास्कर में डॉ. ओम नागपाल फ़ीचर एडिटर हुआ करते थे। महेश श्रीवास्तव जी संपादक और इन्द्र भूषण रस्तोगी स्थानीय संपादक थे। अभय जी ने बिना कोई नुक़सान किए मेरा त्याग पत्र स्वीकार कर लिया था। और उनका अंदाज़ा भी सही निकला, उसके बाद मैं दैनिक भास्कर ही गया। नईदुनिया में उनके साथ बिताए 11 साल अविस्मरणीय रहेंगे।वे बहुत अच्छे अख़बार-मालिक थे, संपादक थे और मनुष्य थे।
पोहा, जलेबी, चाय, सराफा, राजबाड़ा, नईदुनिया और अभय जी के बिना इंदौर की कल्पना नहीं की जा सकती।उन्होंने खेल पत्रकारिता को एक ऊंचाई प्रदान की और इंदौर को खेल प्रशाल जैसा इनडोर गेम्स का अनूठा स्टेडियम दिया।बाद में उनके प्रशंसकों ने उसका नाम अभय प्रशाल कर दिया।
इंदौर की समावेशी संस्कृति को विकसित करने में अभय जी का बहुत बड़ा योगदान है। सभी राजनीतिक दल इंदौर के विकास के मुद्दे पर एक हो जाते हैं, इंदौर को ये सामाजिक संस्कार किसने दिए? मुझे लगता है कि कहीं-न-कहीं इसके पीछे नईदुनिया और अभय जी भी हैं। इंदौर में नर्मदा जल लाने के लिए एक दौर में ऐतिहासिक आंदोलन हुआ था, जिसका नेतृत्व नईदुनिया याने अभय जी ने किया। ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं।
वे इंदौर और मालवा तक ही सीमित नहीं थे, देश में उनकी धमक थी। मध्य प्रदेश में तो वे किंग मेकर थे। चंद्रप्रभाष शेखर और ललित जैन जैसे नेता नईदुनिया ने ही पैदा किए। सिंहस्थ मेले के अनूठे और व्यापक कवरेज में भी उन्होंने काफ़ी दिलचस्पी ली और 1992 के सिंहस्थ में कवरेज के लिए मुझे भोपाल से उज्जैन, दो माह के लिए तैनात किया।अंतिम शाही स्नान देखने वे स्वयं उज्जैन आए।तब उज्जैन के आईजी सुरजीत सिंह जी थे। उन्होंने सुबह सर्किट हाउस में अभय जी को अटेंड किया और हम सभी साथ में रामघाट पहुंचे।
महेंद्र सेठिया जी तब उज्जैन प्रवास पर रहे थे। अभय जी अपनी पत्नी और अपने परम मित्र रमेश मित्तल और उनकी पत्नी पुष्पा मित्तल के साथ उज्जैन पहुंचे थे।मेरे साथ मेरे नईदुनिया के साथी रिपोर्टर राजीव सोनी जी थे, जो नईदुनिया से रिटायर होकर अब पीपुल्स समाचार, भोपाल में राजनीतिक संपादक हैं। नईदुनिया, उज्जैन के ब्यूरो चीफ़ अरुण जैन और नईदुनिया, इंदौर के स्टार फ़ोटोग्राफ़र शरद पंडित भी थे। अभय जी ने मुझसे कहा कि शाही स्नान में सुरजीत सिंह जी ने अभूतपूर्व व्यवस्थाएं की हैं, इसलिए उनका इंटरव्यू ले लीजिए।
अभय जी देश में नईदुनिया जैसे अख़बार की उस परंपरा के अख़बार-मालिक, संपादक और पत्रकार थे, जिसने पत्रकारिता में मूल्यों, विश्वास और आस्था की आधारशिला रखी। वैसे तो नईदुनिया के विकास और आदर्श पत्रकारिता की बात करें, तो बाबू लाभचंद छजलानी, बसंतीलाल सेठिया, नरेंद्र तिवारी, राजेंद्र तिवारी, डॉ. सुरेंद्र तिवारी, अजय छजलानी, महेंद्र सेठिया, राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी, शरद जोशी, डॉ. वेदप्रताप वैदिक, मदन मोहन जोशी, उमेश त्रिवेदी की सबसे पहले चर्चा होगी, लेकिन अभय जी ने एक मालिक और एक संपादक की भूमिका में अद्भुत समन्वय बनाया।
एक मोहक व्यक्तित्व था उनका। चुंबकीय आकर्षण से ओतप्रोत। आज हम जिस नईदुनिया से जुड़े होने का गर्व महसूस करते हैं, वह अभय जी का बनाया हुआ है। नईदुनिया की वह लाइब्रेरी, जिसमें उन्होंने मुझे एक महीने तक काम करने का अवसर दिया और कहा कि इसे देख-पढ़ बहुत आनंद आएगा।ज्ञान और सूचनाओं का भंडार। मैंने एक महीने बाद अभय जी से कहा कि यह लाइब्रेरी नहीं, पत्रकारिता का तीर्थ है। नईदुनिया और उसकी लाइब्रेरी का भारत में नाम था। यही कारण है कि नईदुनिया पत्रकारिता की एक परंपरा थी, एक स्कूल था। ऐसे एक बहुत बड़े पत्रकार अभय जी को मेरी सादर विनम्र श्रद्धांजलि!