Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Again Ramayan : रामायण के साथ याद आई बचपन की राम लीला

हमें फॉलो करें Again Ramayan : रामायण के साथ याद आई बचपन की राम लीला
webdunia

डॉ. छाया मंगल मिश्र

again ramayan


याद आ रहा है मुझे कि जब रामायण का प्रसारण टेलीविजन पर होता था, तब भारत की सड़कें सुनसान हो जाया करती थीं। मानो कर्फ्यू लगा हो और जब इसका पुनः प्रसारण शुरू हो रहा है तब देश में कर्फ्यू-सा ही लगा है। जब भी मैं रामायण से संबंधित किसी संदर्भ को देखती हूं, सुनती हूं, पढ़ती हूं तब याद सताने लगती है उन गलियों की जहां बचपन गुजरा, वो चौराहे जहां लगा करते थे लकड़ी के तख्त और आस-पास कनात, छत जो कपड़ों की होती थीं या रंग-बिरंगे प्रिंट की जो महल के दीवारों की पेंटिंग-सा भ्रम देने की कुछ हद तक नाकाम कोशिश करती थी और वहां होता था राम लीला का मंचन। 
 
हां...यही कहते थे राम लीला और ऐसे ही हुआ करता था रास लीला का मंचन। राम लीला में राम जी और रस लीला में कृष्ण जी की लीला खेला करते थे। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहुं सो दशरथ अजिर विहारी ऐसा आनंद रस रहा उनका कि आज तक दिलोदिमाग में जस का तस जमा हुआ है। जैसे इनके मंचन की घोषणा होती पूरे मोहल्ले में जंगल में आग की तरह खबर फैल जाती। सारे औरत-मर्द, बच्चे-बूढ़े, घूंघट काढ़ी हुई मोहल्ले की बहुओं सहित सभी लोगों में उत्साह हो आता। सभी जन न केवल उसी स्थान के बल्कि आसपास के लोगों का भी बड़ा जमावड़ा लगता। सभी अपने अपने घरों से अपने आसन बिछात अपनी बगल में दबा कर परिवार सहित आ जमते। कई तो रिश्तेदार ही एक दूसरे के घरों में नाटक पूरा होने तक रुके रहते। ये सभी कार्यक्रम टीवी आने के पहले तक हुआ करते थे। हम प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं तक इन सबका लुत्फ़ लेते रहे जिसका आनन्द आज भी याद करने मात्र से उतना ही आता है जितना तब आता था।
 
तो फिर सब जा पहुंचते उस गली में या चौराहे पर जहां इसकी तैयारी हो रही होती, कलाकारों को तैयार होते देखने की जुगाड़ें जमतीं। कौन राम, कौन सीता, लक्ष्मण कौन? अरे! रावण कैसा होगा? राक्षस कैसे बनाएंगे? हनुमान जी कौन होंगे? हनुमानजी हवा उड़ेंगे कैसे? इतनी हंसी आती है अब ये सोच कर कि उस मंडली से जिनको हम जानते पहचानते तक नहीं थे उससे कैसा जुडाव हो जाता था...केवल किरदारों के कारण!! आज समझ आता है की रामायण का जादू ही ऐसा है जो भी इससे जुड़ेगा उसकी आत्मा पावन हो जाती है चाहे वह राक्षसराज रावण का किरदार निभा रहा हो या राक्षसी सेना के साधारण से सिपाही का। 
 
सीता राम चरित अति पावन. मधुर सरस अरु अति मन भावन  जी हां रामायण मंडल हुआ करते थे। कभी दशहरे के पहले नवरात्रि में रावण दहन तक। या फिर यदि किसी की कोई मनौती हो तब वो अपनी श्रद्धा से अपने बजट में क्षमतानुसार मंडली को बुलाता। जैसा बजट वैसा ताम-झाम। इससे भी सस्ता, मोहल्ले के लोग ही एकत्र हो कर अपने अपने रोल तैयार कर लेते और रामायण मंचित हो जाती। मजे की बात यह कि फिर उन लोगों के असल नाम गुम हो जाते और निभाए गए किरदारों के नाम से जाने जाते। कईयों की तो चिढ़ावनी भी निकल आती थी। 
 
ऊंच-नीच,अमीर-गरीब का भेद किए बिना आगे आगे मंच के पास बैठने की जुगत होती। मंचन समय के कुछ देर पहले ही ‘जगह को घेरना’ शुरू कर देते। बच्चे इसके लिए घरों से भेजे जाते पर मोहल्ले के बड़े उन्हें चपत लगा कर जगह छीन लेते। बच्चे मुंह बिचकाते और अपने छोटे होने का अफ़सोस करते। कई दफा तो मार-पिटाई की नौबत भी आ जाती। सभी अपने अपने समूहों में बैठ जाते। उस मंच पर लटका हुआ परदे नुमा चादर-सा कपड़ा अब खुला के तब खुला...देखा करते। 
 
पर्दा खुलता...जोर जोर से ढ़ोलक, मंजीरा, हार्मोनियम, घुंघरू, लोटा चम्मच की आवाजों के साथ राम दरबार हाजिर होता, हनुमान सहित. “आरती श्री रामायण जी की....” से आरती शुरू होती जो दुर्गा मां, हनुमान लला,राम लला, श्री राम चन्द्र कृपालु भजमन और अन्य संबंधित स्तुतियों के साथ खत्म होतीं। आरती की थाल दर्शकों के बीच लाई जाती, न्यौछावर होते, कंकू लगाए जाते दर्शक धन्य होते. पुण्य कमाते। राम दरबार के साक्षात् दर्शन से कौतूहल से मुंह खुले रह जाते। सच्चे लोग...सच्ची श्रद्धा. कोई मिलावट नहीं। फिर बंटता प्रसाद बच्चों का खास आकर्षण। रोज मोहल्ले के लोग भी इसमें अपना योगदान यथाशक्ति करते। 
 
राम जन्म से शुरू होता रामलीला का खेल भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हित कारी... कभी कभी श्रवण कुमार का किस्सा भी जुड़ा होता. बड़े होते हुए राम जी को देखना उस युग में जीने के समान ही तो था, जब कौशल्या मां और दोनों रानियां चारों राजकुमारों के साथ ‘ठुमक चलत राम चन्द्र बाजत पैंजनिया’... भजन के साथ दौड़तीं तो मन वात्सल्य से भर जाता। भले ही हम भी उस समय छोटे ही रहे हों। किरदारों के चमकीले गहरे चटखदार रंगों के मखमल-साटन के कपड़े जिन पर गोटा किनारी, किरण, झिरमिर झालरें लगी रहती थीं। मुकुट, कुंडल आभूषण मन मोहते थे। मंच के एक तरफ बैठे हुए गायक-वादक हर किरदार के लिए दोहे, चौपाई, श्लोक बड़ी राग में तरंगों से जोर जोर से गाया करते। 
 
 मण्डली में मुख्य किरदारों के अलावा बाकी के लोगों को बदल-बदल कर अलग-अलग किरदार निभाना पड़ता था। लोग तो मंडली में ज्यादा नहीं होते थे न। अब उन्हें तैयार होने के लिए दिए जाने वाले समय में फ़िल्मी धुनों पर भजनों की प्रस्तुति होती या नृत्य भी पेश होता।
 
कई बार महिलाएं शामिल होतीं भी थी पर अधिकतर पुरुष ही महिलाओं की वेशभूषा में प्रस्तुति देते। जब हमें पता लगता कि ये तो आदमी है तो हमारे लिए वो ‘ओssss’ मोमेंट होता। प्रस्तुति पसंद आने पर इनाम स्वरूप रकम भी दी जाती थीं। 
 
सारे कथा क्रम से होते हुए बालकों का गुरुकुल जाना, वहीं से राक्षसों के साथ युद्ध की शुरुआत मन को बड़ा असहज कर देती जो धीरे धीरे उनकी वीरता से मन को रोमांचित कर देती। वहां से आना, फिर पुनः ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए जाना मन को जिज्ञासा से भर देता। 
 
 सीता स्वयंवर में धनुष तोड़ते समय वाद्य वादन अपनी चरम पर होता। सिर्फ यही नहीं जब जब भी दुःख, सुख, खुशी, युद्ध का दृश्य होता तो वादन कला काबिले तारीफ होती। सब सन्दर्भों के लिए अलग अलग संगीत और थाप.. सबसे अच्छा लगता युद्ध के समय बजने वाला ढोलक।  
 
धन्टक...धन्टक...धन्टक... अजीब सी थापों के साथ पैर पटक-पटक कर तीर कमान हाथों में ले कर आसमान की तरफ से घुमा घुमा कर जमीन की तरफ झुका देना...कुछ आपसी ताल मेल के बाद तीर मार दिया जाता...जनता तालियां पीटती...अदाकार जमीन पर लोट जाता।  
 
 राक्षस-राक्षसियों का मेकअप भी बड़ा ध्यान खींचता। सीता मैय्या भी मन मोहती। राज तिलक की खुशी, मंथरा को गाली, कैकेयी को कोसते हुए वनवास की खबर आसूं ले आती। मन बड़ा रोता। वनवासी रूप भी दिल जीत लेता। लक्ष्मण का साथ जाना, भरत का खडाऊ माथे से लगाना, शत्रुघ्न का बिलखना माताओं का रुदन, राजा दशरथ का परलोक सिधार जाना। ऐसा लगता जैसे मोहल्ले में ही कोई शोक हो गया हो।
 
 धीरे धीरे गति बढ़ती जाती रामायण अपना असर दिखाती हुई पूरे इलाके को एक सूत्र में बांध के सुख दुःख, त्याग, प्रेम, मर्यादा का पाठ सिखाती चलती। असर ये होता कि घर-घर में बच्चे इन्हें दोहराते. बिना किसी सख्ती के ही बच्चों में मानवता, धर्म, अनुशासन, कर्तव्य का बीज अंकुरित हो चुका होता। 
 
कई सारे प्रेरणा संदेशों को अपने में समेटे रामायण हर दिल में बस जाती। हनुमान जी की भक्ति सबको श्रद्धा सिखाती। भाइयों का प्रेम, मान-मर्यादा, माता-पिता, गुरु की भक्ति पति-पत्नी का अटूट प्रेम...क्या नहीं है हमारी रामायण में।  सोने का हिरण, लक्ष्मण रेखा, सीता हरण से ही दिल की धडकनें बढ़ जातीं। लक्ष्मण को शक्ति लगना, हनुमानजी जी का संजीवनी लाना, हवा में रस्सी से कमर छाती बांध कर घिर्री से मजबूत हुक से उठा कर खींचा जाता था। गत्ते का पेंट किया हुआ पहाड़ भी भक्ति भावना के कारण बड़ा सजीव लगता था।  
 
जनता हनुमानजी के जयकारे लगाती। कहानी आगे बढ़ती रहती...अशोक वाटिका, लंका सबका चित्रण गीत-संगीत से जीवंत कर देते। सब सांस रोक कर हर बार रावण के आगमन पर सहमे से देखते पर उसकी दमदार अदायगी, वेशभूषा, अकड़ बड़ा आनंद देती। विभीषण, कुंभकर्ण, मेघनाद क्या क्या नहीं गूंथ डालते थे वो कलाकार। मंझ जाते थे, रम जाते थे, सच्चा अभिनय करते लगते थे। महिला किरदारों का अभिनय भी लाजवाब होता। भले ही वो सुरसा हो या शूर्पणखा। मायावी दृश्य को भी बखूबी पेश करते। राम सेतु निर्माण, लहरदार समुद्र के लिए हरे/नीले रंग का कपड़ा या प्लास्टिक का उपयोग गजब कर देता। 
 
बढ़ते-बढ़ते रामायण का अंतिम चरण शुरू हो जाता। राम-रावण के युद्ध का जितना रोमांच होता उतना ही रामायण उत्सव के समापन का विचार भी एक खालीपन-सा उदास वातावरण निर्मित होने लगता। रोज भले ही नीचे बैठने में कंकर पत्थर गड़ते, अकड़ जाते, ऊंकडू, आंके-बांके होते, गर्दन अकड़ जाती पर रामायण पूरी देखते, कुछ छूटने न पाए भले ही घर में कुटाई लग जाए। आखिर वो दिन भी आता जब रावण वध होता, राम जी विजयी होते। तन-मन हर्ष से भर जाता जैसे हम ही विजयी हुए। 
 
दस सर कटे बीस भुज छिन्न,हुआ हृदय रावन का भिन्न
दिया उसे भी अपना धाम,परम दयामय हे श्री राम
 
उल्लासित मन से घर आते। सोचिए बिना टेक्नॉलॉजी के सादगी से मंचित रामायण का असर बाल-वृद्ध के मस्तिष्क पर इतना गहरा असरकारी होता है तो अब तो कितना आसान हो गया सब कुछ। कितना सरल। सब कुछ बदल गया... बस नहीं बदला तो रामायण का पुण्य-प्रताप। उसकी गरिमामाय गाथा और परंपरा। जिसके पन्नों में दमकती है भक्ति, शक्ति, प्रेम, त्याग, प्राण जाई पर वचन न जाई, अधर्म पर धर्म की विजय, वीरता की कहानी जैसी कितनी ही, सफल मानवीय जीवन के आवश्यक मूल्यों की स्याही। अमूल्य खजाना जो बांधता है एक सूत्र में भारत को ...पूरे भारत वर्ष को. ये ताकत ये शक्ति है तो सिर्फ और सिर्फ रामायण जी में। 
 
आज जब पूरा देश कोरोना के काल रुपी तांडव से त्रस्त है ऐसे में रामायण का प्रसारण विचलित और सहमे हुए दिलों को सुकून, हिम्मत और लड़ने की शक्ति का संचार करने का काम जरुर करेगी। आइए एक बार फिर से रामायण के इस प्रसारण का आनंद लें। जय श्री राम के उद्घोष व स्मरण के साथ भय मुक्त जीवन अपने अपने घरों में व्यतीत करें। अनिवार्य/आवश्यक सावधानियां बरतें यही समय की मांग है और जरुरत भी तो पवनसुत हनुमान की जय के साथ गाएं और गुनगुनाएं-
 
राम जी की निकली सवारी,राम जी की लीला है न्यारी न्यारी,
एक तरफ लक्ष्मण, एक तरफ सीता, बीच में जगत के पालन हारी।   

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भयावह स्थिति में लॉकडाउन के अलावा चारा क्या है?