Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

संघ की दृष्टि में सनातन एक आध्यात्मिक लोकतंत्र

हमें फॉलो करें संघ की दृष्टि में सनातन एक आध्यात्मिक लोकतंत्र
webdunia

अवधेश कुमार

लोग देश की उन्नति के लिए एक काम करें इसका चलेगा अभियान 
 
पुणे में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार के संगठनों की अखिल भारतीय समन्वय बैठक पर स्वाभाविक ही पूरे देश की दृष्टि थी। वर्ष में एक बार आयोजित इस बैठक में संघ से जुड़े सारे संगठन के नेता उपस्थित होकर वर्ष भर के अपने कार्य वृत्त के साथ भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा रखते हैं।

एक वर्ष की दृष्टि से कुछ सामूहिक निश्चित कार्य योजनाएं निर्धारित होती हैं। इस नाते यह बैठक अत्यंत महत्वपूर्ण थी। विरोधी वैसे भी अपने आरोपों और विरोधों सेशन को चर्चा में बने ही रखते हैं। 
 
भारत सहित विश्व भर में घटी घटनाओं पर संघ का मत जानने की उत्सुकता एक बड़े वर्ग में रहती है। बैठक के पूर्व कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिस कारण वहां से आने वाले समाचारों को गहरी दिलचस्पी से देखा गया।
 
•संघ की पूरी वैचारिक आधारभूमि हिंदुत्व और सनातन है। तमिलनाडु सरकार में मंत्री और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदय निधि स्टालिन ने सनातन को बीमारी की संज्ञा देते हुए इसके उन्मूलन का बयान दिया और विवाद उभरने पर कहा कि हम अपने बयान पर कायम है। भाजपा की प्रतिक्रिया लोग पहले दिन से सुन रहे हैं लेकिन संघ ने‌ स्पार्क कोई औपचारिक बयान नहीं दिया।
 
• संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपील की थी कि देश का नाम भारत है और इसका ही प्रयोग किया जाए। उसके कुछ दिनों बाद जी 20 नेताओं के सम्मान में आयोजित भोज के निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया के संघ प्रमुख के कहने के कारण ही देश का नाम बदल जा रहा है। जी 20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने लकड़ी की पट्टिका पर भी भारत लिखा था। भारत और इंडिया के विवाद में संघ क्या बोलता है यह जानने में भी लोगों की रुचि थी।
 
•आईएनडीआईए गठबंधन लगातार संघ की विचारधारा के विरुद्ध राजनीति करने की बात कर रहा है। राहुल गांधी ने विदेशों में संघ का नाम लेकर इसके हिंदुत्व को अल्पसंख्यकों के साथ दलित और पिछड़ा विरोधी बताया था।
 
संघ सामान्यत: आरोपी और विरोधों पर अन्य संगठनों की तरह प्रतिक्रिया नहीं देता। उसका चरित्र इन सबसे आप प्रभावित रहते हुए शांतिपूर्वक अपना काम करने का है। संघ को निकट से देखने वाले जानते हैं कि जो बैठक जिस उद्देश्य से आयोजित है उसी पर फोकस किया जाता है। समन्वय में बैठक के बाद पत्रकार वार्ता में जानकारी देते हुए संघ के सह सरकार्यवाह डॉक्टर मनमोहन वैद्य ने भी अपनी ओर से इन पर कुछ नहीं कहा।
 
सनातन संस्कृति को लेकर पूछे गए प्रश्न का उत्तर उन्होंने अवश्य दिया। 
 
उन्होंने तीन बातें कहीं। 
 
•एक, सनातन का अर्थ रिलिजन नहीं है। यानी या किसी मजहब की तरह मजहब का पर्याय नहीं है। तो फिर? 
 
•दो, संघ की दृष्टि में सनातन सभ्यता एक आध्यात्मिक लोकतंत्र (स्पिरिचुअल डेमोक्रसी) है। वास्तव में इसे मान्य परिभाषा सनातन की कुछ हो नहीं सकती। 
 
•तीसरे, उन्होंने इतना ही कहा कि जो लोग सनातन को लेकर वक्तव्य देते हैं, उन्हें पहले इस शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिए। 
 
•इंडिया और भारत पर भी एक सामान्य प्रतिक्रिया थी। उदाहरण के लिए देश का नाम भारत है, वह भारत ही रहना चाहिए। प्राचीन काल से यही प्रचलित नाम है। भारत नाम सभ्यता का मूल है।
 
साफ है कि इसमें सनातन का विरोध या उन्मूलन करने की बात करने वालों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं। सरसंघचालक ने अपने एक भाषण में कहा था कि हमको विरोधियों का भी विरोधी नहीं होना है।
 
भारत के संदर्भ में भी संघ प्रमुख के भाषण के कारण ऐसा हुआ इसकी श्रेय लेने की कोई कोशिश नहीं।
 
आप चाहे संघ के विरोधी हो या समर्थन उनके कार्य और व्यवहार के इस तरीके से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।
 
हमारी घटनाओं पर राजनीति के वर्चस्व के कारण ऐसी सभी बैठकों को राजनीतिक दृष्टि से देखा जाता है। चूंकि समन्वय बैठक में भाजपा की ओर से अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष उपस्थित थे, इसलिए भी उसकी राजनीतिक रंग देना आसान है। पर किसी संगठन को उसके अनुसार विश्लेषित करने से ही सच्चाई के निकट पहुंचा जा सकता है। संघ के कार्य व्यवहार पर निकट से अध्ययन करने वाले देखने वाले जानते हैं कि हम जितनी चर्चा करते हैं, उस तरह राजनीति पर उनकी बैठकों में बातचीत नहीं होती।

समन्वय बैठक का मूल उद्देश्य ही होता है कि सारे संगठन एक-दूसरे के क्रियाकलापों से अवगत रहे तथा जहां एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं करें। सब अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्ततापूर्वक कम करते हैं लेकिन इनके बीच सुसंगति बनाने की भूमिका संघ की है। संघ मातृ संगठन के रूप में सभी की सोच को ध्यान में रखते हुए भविष्य की दृष्टि से योजनाएं रखता है। इस बैठक में भी यही हुआ। 
 
•समन्वय बैठक की समाप्ति के बाद संघ के सारे कार्यवाही डॉक्टर मनमोहन वैद्य ने पत्रकार वार्ता में जो कुछ कहा उसमें राजनीति का लेश मात्र भी नहीं था। 
 
•बैठक में 36 विभिन्न संगठनों के कुल 246 प्रतिनिधि उपस्थित थे। भाजपा उन 36 संगठनों में ही एक है। तीन दिनों के कार्यक्रम में सभी को वर्ष भर और भविष्य की योजनाओं का वृत देना था। इसमें एक भाजपा और चुनाव पर तो बात नहीं हो सकती।
 
संघ अपने 97 वर्ष की आयु पूरी कर शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है।
 
इसमें संघ का आगामी फोकस हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने पर होगा। हालांकि विरोधियों की महिलाओं को महत्व न देने के आरोप के विपरीत संघ यह कार्य कुटुंब प्रबोधन और परिवार परंपरा को सशक्त करने के कार्यक्रम में पहले से कर रहा है।
 
•डॉ. वैद्य ने कहा कि भारत के चिंतन में परिवार सबसे छोटी इकाई होती है। परिवार में महिलाओं की भूमिका सबसे प्रमुख होती है। संघ की शताब्दी योजना के अंतर्गत महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने पर बैठक में चर्चा की गई।‌ 
 
•महिलाओं में आपसी संपर्क बढ़ाने के साथ देशभर में 411 सम्मेलन आयोजित करने की योजना बताता है कि इसे लेकर कितनी गंभीरता है। अभी तक 12 प्रांतों में इस तरह के 73 सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। इनमें 1 लाख 23 हजार से अधिक महिलाएं शामिल हुई। गैर राजनीतिक स्तर पर महिलाओं का सम्मेलन बुलाना आसान नहीं होता।
 
संघ के 97 वर्ष की यात्रा के मुख्य चार पड़ाव रहे हैं। संगठन, विस्तार, संपर्क व गतिविधि ये तीन पड़ावों पर लंबे समय तक फोकस रहा। सन् 2006 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी की जन्मशती के के साथ हर स्वयंसेवक द्वारा राष्ट्र की उन्नति के लिए कुछ न कुछ कार्य करने का प्रण लेने की बात आई और तीन के साथ यह चौथा तब से आगे बढ़ रहा है। स्वयंसेवक चाहे जिस संगठन में हो, वो भारत की उन्नति के लिए एक कार्य अपने हाथ में ले इसके लिए लगातार कोशिश हो रही है। 
 
जरा सोचिए, भारत में ऐसे कितने संगठन हैं जो अपने सदस्यों को देश की उन्नति के लिए कोई एक काम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं? आप देखेंगे कि संपूर्ण देश में स्वयंसेवकों द्वारा ऐसे कार्य किया जा रहे हैं जिनकी अनजान लोगों को उम्मीद भी नहीं होती। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां संघ के लोग काम नहीं कर रहे हैं। कई बार आप उस कम की सराहना करते हैं यहां तक कि उसमें सहयोग भी करते हैं किंतु आपको पता भी नहीं चलता कि वह संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा किया जा रहा है। 
 
संघ के हर बैठक में समाज में अच्छे लोगों जिन्हें संघ सज्जन शक्ति कहता है वो सामाजिक कार्यों में सक्रिय हो इसके प्रयास पर हमेशा चर्चा होती है। समन्वय बैठक का भी एक प्रमुख बिंदु यही था। यानी शाखा और संगठन विस्तार के अलावा समाज के अच्छे लोगों के पास जाकर उन्हें पेश की उन्नति के लिए कोई एक काम करने के लिए प्रेरित करने का अभियान संघ लगातार चलाएगा। ऐसे अभियानों से भी संघ के संगठन शक्ति बढ़ती है। इसके संगठन संबंधी कुछ आंकड़े देखिए।
 
•संघ की शाखाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। कोरोना से पूर्व सन् 2020 में देश में 38 हजार 913 स्थानों पर शाखाएं थीं, 2023 में यह बढ़कर 42 हजार 613 हो गया है। यानी 9.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
 
•संघ की दैनिक शाखाओं की संख्या 62 हजार 491 से बढ़कर 68 हजार 651 हो गई है। इनमें 60 प्रतिशत विद्यार्थी शाखाएं हैं।
 
•संघ की आधिकारिक वेबसाइट पर जॉइन आरएसएस के माध्यम से प्रति वर्ष एक से सवा लाख नए लोग जुड़ने की इच्छा जता रहे हैं। उनमें से अधिकतर 20 से 35 वर्ष तक की आयु के हैं।
 
विरोधी महिलाओं पर फोकस करने या फिर लोगों से देश की उन्नति के लिए एक काम करने के अभियान को भी संघ का छद्म व्यवहार कहेंगे, पर समाज वही धारणा बनाएगा जो प्रत्यक्ष देखता है। संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों का अगर लगातार विस्तार हो रहा है तो इसी कारण कि राजनीतिक और वैचारिक विरोध के विपरीत आम समाज इसके प्रति अच्छी धारणा रखता है। विरोधी शांत मन से इस पर विचार करें तो वह भी काफी कुछ सीख सकते हैं।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जीवन का मूल प्रश्न