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Diary of a young girl: 16 साल की ‘ऐन फ्रैंक’ जो नाजी ‘यातना का प्रतीक’ बन गई

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नवीन रांगियाल

मैं बेकार में नहीं जीना चाहती, जैसे ज्यादातर लोग जीते हैं। मैं उन लोगों को जानना चाहती हूं जो मेरे आसपास रहते हैं लेकिन मुझे नहीं जानते, उनके काम आना और उनके जीवन में खुशी लाना चाहती हूं। मैं और जीना चाहती हूं, अपनी मौत के बाद भी

यह ऐन फैंक की डायरी का ह‍िस्‍सा है। वही ऐन फैंक दुन‍िया ज‍िसे उसकी डायरी की वजह से जानती है। उसकी डायरी ही उसकी सहेली थी, वो उससे बातें करती थीं और प्‍यार से उसे क‍िटी बुलाती थी। वो चाहती थी क‍ि महसूस की गई हर बात को वो दर्ज कर लें इसल‍िए वो डायरी ल‍िखती थी। वो कहती थी अगर वो नहीं ल‍िखती तो शायद घुटकर मर जाती।

जब ऐन की डायरी प्रकाशित हुई तो उसे हर लड़की ने रात-रातभर जागकर अपने बेडरूम में पढ़ा। वो अपनी मौत के बाद भी जीना चाहती थी शायद इस‍ील‍िए ल‍िखती थी।

दुनिया को जीना सिखाने वाली ऐन फ्रैंक की जिंदगी में कई ऐसे पहलू रहे हैं, जिन्हें उनके जन्मदिन पर जानना जरूरी है। ‘डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’ ऐन 12 जून 1929 को पैदा हुई थी।

जब नाज‍ियों ने नीदरलैंड पर कब्‍जा कर लिया तो 1933 में ऐन फ्रैंक का परिवार नाजियों से बचने के लिए नीदरलैंड चला गया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्हें वहां भी छिपना पड़ा और वह एम्सटर्डम वाले घर के पिछले हिस्से में रहे। कहा जाता है क‍ि ऐन के पिता ने ही छिपने की जगह बनाई थी। जहां वे पर‍िवार के साथ 1942 से लेकर 1944 तक रहे। ऐन ने इसी जगह पर अपनी डायरी लिखी जो बाद में दुनियाभर में बहुत लोकप्र‍िय हुई। लेकिन नाजियों ने उनका पता लगा ल‍िया और 4 अगस्त 1944 में उन्‍हें आउश्वित्स के यातना शिविर भेज दिया गया।

ऐन लेखक बनना चाहती थीं। उनके पिता ने 25 जून 1947 को डायरी प्रकाशित की और उसे नाम दिया, ‘पिछवाड़े वाला घर’ किताब बहुत मशहूर हुई और ऐन नाजी यातना का प्रतीक बन गई।

ऐन फ्रैंक और उसकी बहन मार्गोट को 30 अक्तूबर 1944 को आउश्वित्स से बैर्गेन बेलसेन लाया गया। इस यातना शिविर में 70,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। नाजियों को हराने के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने बंदियों को छुड़ाया और मृतकों के शवों को सार्वजनिक कब्रिस्तान तक लाए। टाइफस बीमारी की वजह से ऐन और उसकी बहन मार्गोट की मौत हो चुकी थी।
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ऐन उस वक्त 15 साल की थी। बेर्गन बेलसेन में ऐन की कब्र भी है। लेक‍िन मरने से पहले ऐन इतना ल‍िख चुकी थी क‍ि वो आज तक दुन‍िया में पढ़ा जा रहा है। युवति‍यां उसकी डायरी की द‍ीवानी हैं।   
6 जुलाई 1944 को ऐन ने लिखा था,

हम सब खुश होने के मकसद से जीते हैं, हम सब अलग अलग जीते हैं लेकिन फिर भी एक ही तरह से

मुझे लेकिन अच्छा लगता है कि मैं जो सोचती और महसूस करती हूं, उसे कम से कम लिख सकती हूं, अगर में नहीं लिख पाती तो शायद मेरा दम बिलकुल घुट जाता

मैं बेकार में नहीं जीना चाहती, जैसे ज्यादातर लोग जीते हैं। मैं उन लोगों को जानना चाहती हूं जो मेरे आसपास रहते हैं लेकिन मुझे नहीं जानते, उनके काम आना और उनके जीवन में खुशी लाना चाहती हूं। मैं और जीना चाहती हूं, अपनी मौत के बाद भी

  • डायरी ऑफ ए यंग गर्ल‘ लिखने वाली एन फ्रैंक और उनका परिवार एम्‍सर्टडम में साल 1944 में 4 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था।
  • 16 बरस की उम्र में इस दुनिया से जाने के बावजूद जीना सिखाने वाली एन फ्रैंक का जन्म साल 1929 में हुआ था।
  • जब नीदरलैंड पर नाजी ने कब्जा कर लिया तो दो साल अपने परिवार के साथ छिपी रहीं।
  • इस डायरी में 12 जून 1942 से 1 अगस्त 1944 के बीच उनकी जिंदगी में जो घटा उसका ब्यौरा है।
  • ‘द डायरी’ उनके पिता ने पहली बार 1947 में छापी। इसकी 3 करोड़ प्रतियां बिकी और 67 भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ।
  • यातना शि‍व‍िर में की टाइफस की वजह से ऐन की मौत हो गई। लेक‍िन इसके पहले वो दुन‍ियाभर में नाजि‍यों की इस यातना का प्रतीक बन गई।

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