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गेहूं कटाई से बाजार तक बरतें सावधानी

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फ़िरदौस ख़ान

, मंगलवार, 18 मार्च 2025 (13:49 IST)
गेहूं की फसल पककर तैयार हो चुकी है। कई जगह कटाई का काम भी शुरू हो गया है। किसानों को फसल की कटाई से लेकर फसल को बाजार तक ले जाने में काफी सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। गेहूं की फसल की कटाई के दौरान जान और माल के नु़कसान के अनेक मामले सामने आते रहते हैं। गेहूं की थ्रेशिंग करते वक्त मशीन की चपेट में आने से हाथ कट जाते हैं।ALSO READ: ज़्यादा आमदनी के लिए मूंग की खेती करें

इसी तरह आगजनी से खेतों में खड़ी या खलिहान में एकत्रित फसलें का जलकर राख हो जाती हैं। ऐसे में किसानों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। फसल की भरपाई, तो देर-सवेर पूरी हो भी सकती है, लेकिन अगर हाथ कट गया, तो उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। गेहूं की फसल को बीज से लेकर भंडारण तक सही देखभाल की जरूरत होती है, ऐसा न करने पर जहां उत्पादन प्रभावित होता है, वहीं अनाज ख़राब हो जाता है।
 
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक किसानों को गेहूं की कटाई और कढ़ाई में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि जान और माल का नुकसान न हो। फसल की कटाई से पहले यह देख लेना चाहिए कि फसल पक चुकी है या नहीं। फसल की जांच करना बहुत आसान है। गेहूं की बाली से दाने निकाल कर उसे चबाएं।

अगर दाने सख़्त हों और आवाज के साथ टूटें, तो समझ लें कि फसल तैयार है, इसे काटा जा सकता है। अगर गेहूं के दाने नरम हों, तो फसल को कुछ और दिनों के लिए खेत में पकने के लिए छोड़ देना चाहिए। गेहूं की बाली को तोड़कर भी फसल के पकने का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर फसल पक चुकी होगी, तो उसकी बाली आसानी से टूट जाएगी, जबकि अधपकी फसल की बाली मुड़ जाएगी, लेकिन टूटेगी नहीं।
 
गेहूं की कटी हुई फसल को एक जगह खलिहान में इकट्ठा करने की बजाय अलग-अलग खेतों में सुखाना चाहिए। ऐसा करने से फसल जल्दी सूखेगी। अगर फसल को एक ही खलिहान में एकत्रित करके गेहूं निकालना हो, तो खलिहान को सुरक्षित जगह पर बनाना चाहिए। खलिहान के पास पानी और रेत का पूरा इंतजाम किया जाना चाहिए, ताकि आग लगने पर फौरन उस पर काबू पाया जा सके।
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फसल की कटाई और गेहूं निकालते वक्त किसी भी तरह का धूम्रपान नहीं करना चाहिए। फसल को अच्छी तरह सुखाकर ही गेहूं निकालना चाहिए। कंबाइन से काटी गई फसल के अनाज को अच्छी तरह साफ करके सुखा लें। उसके बाद ही थ्रेशर मशीन से गेहूं निकालें। थ्रेशिंग दिन में ही करनी चाहिए। दिन ढलने पर थ्रेशिंग करने पर दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। थ्रेशर के पतनाले का दो तिहाई हिस्सा कवर करके थ्रेशिंग करनी चाहिए, ताकि हाथ को संभावित दुर्घटना से बचाया जा सके।

थ्रेशिंग करते वक्त ढीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। महिलाओं को चाहिए कि वे थ्रेशिंग करते वक्त साड़ी का पल्लू या चुनरी वग़ैरह को अच्छी तरह से लपेट लें। ऐसा करने से वे संभावित दुर्घटना से बची रहेंगी। गेहूं कटाई और बालियों से गेहूं निकालते वक्त मुंह पर मलमल का कपड़ा बांध लेना चाहिए, ताकि हवा में मौजूद अवशेष सांस के साथ फेफड़ों के अंदर न जाएं। जिन लोगों को श्वास संबंधी कोई भी बीमारी है, उन्हें इन कामों से और उन जगहों से दूर ही रहना चाहिए, जहां गेहूं निकालने का काम हो रहा हो।
 
थ्रेशिंग समतल जगह पर ही करनी चाहिए, ताकि उसमें ज्यादा कंपन न हो। हवा के रुख़ का ख़्याल रखना भी जरूरी है। अगर थ्रेशर से गहराई का काम करने के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है, तो धुंआ निकलने वाली नली के ऊपर चिंगारी रोधक यंत्र लगा देना चाहिए, ताकि चिंगारी न निकले।

खलिहान के आसपास भी किसी तरह की आग या चिंगारी का काम नहीं किया जाना चाहिए। ट्रैक्टर को फसल के ढेर से कुछ दूरी पर रखें, ताकि कोई चिंगारी निकले भी, तो वह फसल के ढेर तक न पहुंच पाए। अकसर एक छोटी सी चिंगारी पूरी फसल को जलाकर राख कर देती है।
 
अकसर यह देखा जाता है कि फसल कटाई के बाद खतों में बचे अवशेषों को आग लगाकर जला दिया जाता है। इससे मिट्टी में मौजूद मित्र कीट यानी फायदेमंद जीवाणु मर जाते हैं और मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के साथ कार्बन की मात्रा घट जाती है। सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी के अंदर पौधे को भोजन मुहैया कराते हैं। इनके नष्ट होने से पौधों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है। मिट्टी  में कार्बन की मात्रा 6 से 8 फीसद होनी चाहिए, जो अब घटकर महज दो फीसद ही रह गई है।
 
अगर फसलों के अवशेषों को हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाए, तो इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में बढ़ोतरी होगी। इससे मिट्टी की जलग्रहण क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गेहूं की फसल की कटाई के बाद खेत में बची फसल की पराती को जलाना नहीं चाहिए। डिस्क हैरो या रोटावेटर से जुताई के बाद आठ किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ खेत में डालकर हल्की सिंचाई कर देना चाहिए।

इससे अवशेष पूरी तरह सड़कर उर्वरक का काम करेंगे। इससे मिट्टी में जीवांश और कार्बन की मात्रा बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं, फसलों के अवशेषों को जलाने से आसपास की फसलों को ख़तरा पैदा हो जाता है। इसकी चिंगारियां आसपास के खेतों में खड़ी फसल या खलिहानों में एकत्रित फसल को अपनी चपेट में ले लेती हैं, जिससे फसल जलकर राख हो जाती है। इसके अलावा धुएं से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। खेत में फसलों के अवशेष जलाना कानूनन अपराध भी है, जिसके लिए दोषी को सजा देने का प्रावधान है।
 
फसल के अवशेष जला देने से पशुओं के समक्ष चारे का संकट खड़ा हो जाता है। किसान इन अवशेषों के भूसे का इस्तेमाल पशु चारे के तौर पर भी कर सकते हैं। गेहूं के अवशेष की बाजार में काफी मांग हैं। खुम्बी उत्पादन और बिना मिट्टी की खेती में इनका इस्तेमाल होता है। इन्हें जलाने की बजाय किसान इन्हें बेचकर कुछ रकम हासिल कर सकते हैं।
 
गेहूं को साफ करके और सुखाकर ही भंडार गृह में भंडारण करना चाहिए। अगर गेहूं में दस फीसद से ज्यादा नमी है, तो उसे धूप में सुखा लेना चाहिए। इसके बाद गेहूं को छाया में कुछ वक्त के लिए छोड़ देना चाहिए, ताकि धूप की गरमाहट से गेहूं में जो भाप बनी है, वह उड़ जाए।

ख़्याल रखें कि भंडार गृह साफ-सुथरा, खुला और हवादार हो। इसमें सूरज की रौशनी आती हो और नमी बिल्कुल भी न हो, वरना अनाज ख़राब हो जाएगा। जिस जगह गेहूं का भंडारण करना हो, एक लीटर पानी में दस मिलीलीटर मैलाथियान मिलाकर उसकी दीवारों और फर्श को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। फिर इसे कुछ दिन के लिए छोड़ देना चाहिए।
 
गेहूं को सीधा फर्श पर नहीं रखा जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर जमीन की नमी से अनाज ख़राब हो सकता है। पहले फर्श पर ईंटे रखनी चाहिए और फिर उन पर लकड़ी के तख़्ते रखने चाहिए। तख़्तों पर नीम की सूखी पत्तियां बिछा देनी चाहिए, ताकि गेहूं को कीड़ा न लगे। अब इन तख़्तों पर गेहूं की बोरियां रखी जानी चाहिए। इससे गेहूं की बोरियां जमीन की नमी से बची रहेंगी।

अनाज को अगर बोरियों में भरा जाना हो, तो बोरियों को कीटनाशी दवाओं से उपचारित कर लेना चाहिए। बोरियां भी साफ-सुथरी और सूखी होनी चाहिए। अगर बोरियों में नमी हो, तो उसे पहले धूप में अच्छी तरह से सुखा लें, फिर उनमें गेहूं भरें। बोरियों को सही तरीके से कतार में रखना चाहिए, ताकि बोरियों को उठाने में आसानी रहे और उनकी गिनती में भी कोई दिक्कत न हो।
 
गेहूं बाजार में ले जाने से पहले गेहूं की अच्छी तरह से जांच कर लेनी चाहिए कि उनमें ज्यादा नमी न हो। गेहूं में नमी की मात्रा 12 फीसद से कम ही होनी चाहिए। नमी की मात्रा ज्यादा होने पर ख़रीद एजेंसियां गेहूं नहीं ख़रीदतीं। किसानों को मंडी में भी अपनी फसल की देखभाल करनी चाहिए। अनाज को शेड के नीचे रखना चाहिए।

अगर शेड न हो, तो प्लास्टिक शीट साथ लेकर जानी चाहिए, ताकि फसल को आंधी और बारिश से बचाया जा सके। अनाज को तुलवाकर मंडी में लेकर जाना चाहिए। मंडी में अनाज की तुलवाई अपने सामने करवानी चाहिए। अनाज की बिक्री की पक्की रसीद जरूर लेनी चाहिए। किसी भी तरह की कोई भी गड़बड़ी होने पर फौरन संबंधित अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए।
 
बहरहाल, किसान फसल की बिजाई से लेकर बाजार तक सावधानी बरत कर न सिर्फ ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं, बल्कि फसल की अच्छी कीमत भी हासिल कर सकते हैं।

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