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होश खो देने से पहले होशियार, किलर नंबर 1 है शराब - डॉ. अभय बंग

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शकील अख़्तर

‘15 से 50 साल की उम्र वालों के लिए शराब, किलर नंबर 1 है। यह ना तो मज़े के दो घूंट लेने की चीज़ है, ना ही आधुनिक होने की निशानी। विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) की ताज़ा सिफ़ारिशों और ‘दि ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी’ नामक वैश्विक अध्ययन की यही चेतावनी है। इसके आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में शराब की वजह से हर साल 30 लाख और भारत में 3 लाख से ज़्यादा लोग मारे जा रहे हैं। अगले 30 सालों में स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण होगी। शराब से टैक्स वसूलने वाली राज्य सरकारों को भी इसकी वजह से बड़े आर्थिक नुकसान हो रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए उन्हें तुरंत एक्शन में आने की ज़रूरत है’।

सरकार को एक्शन में आने की ज़रूरत: गांधी जयंती पर डॉ. अभय बंग ने अपने सम्बोधन में यह महत्वपूर्ण बातें कही। वे गांधी शांति प्रतिष्ठान,दिल्ली में अपना व्याख़्यान देने आए थे। विषय था- ‘क्या महात्मा गांधी की शराबबंदी विफल हुई? विज्ञान और सत्याग्रह द्वारा समाधान की खोज’। उन्होंने अपने पॉवर प्वाइंट उदबोधन में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के साथ ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी, एम्स, दिल्ली और पीजीआई,चंडीगढ़ के अध्ययनों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, इन अध्ययनों के परिपेक्ष्य में अब केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर नीतिगत कार्यक्रम बनाने का वक्त आ गया है। इसी संदर्भ में बिहार और गुजरात में शराब पाबंदी से आगे जाने की भी ज़रूरत आ है। आपको बता दें, पद्मश्री और देश-विदेश के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित डॉ. अभय बंग सार्वजनकि स्वास्थ के विशेषज्ञ और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में शराब उन्मूलन कार्यक्रम के अनुभवी हैं। 35 साल से वे इस अभियान में जुटे हैं। मेडिकल साइंस और गांधीवादी दृष्टिकोण से अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं।

230 बीमारियां और घातक दुष्प्रभाव: डॉ. बंग ने कहा, शराब के पीने से 230 तरह की बीमारियां होती हैं। विश्व स्तर के नए अध्ययन के अनुसार, इनमें लीवर सरोसिस, कैंसर और टीबी जैसी घातक बीमारियां शामिल हैं। इसके दूसरे भंयकर दुष्प्रभाव भी ख़तरनाक हैं। इनमें एक्सीडेंट एंड इन्ज्यूरी (सड़क हादसे और चोट) और सुसाइड एंड सेल्फ हार्म (आत्महत्या और ख़ुद को चोट पहुंचाने की प्रवृत्ति) शामिल है। इसके व्यसन से हिंसा और अपराध बढ़ते हैं। महिलाओं के साथ बदसुलूकी और यौन अपराध होते हैं। उत्पादन या काम करने की क्षमता घटती है। शराबी परिवार,समस्या और समाज के लिए एक बड़ी समस्या बन जाते हैं। शराब की बिक्री से टैक्स कमाने वाली सरकार को कुल मिलाकर आर्थिक दृष्टि से बड़ा नुकसान होता है।
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हर साल 30 लाख लोग बन रहे शिकार: डॉ. बंग ने कहा, समृद्ध या सुशिक्षित समाज में ये बात मानी जाती है कि जो लोग शराब नहीं पीते, वे आधुनिक नहीं है। उनकी नज़र में यह उत्तेजना और स्फूर्ति बढ़ाने वाला पेय है। मगर मेडिकल साइंस कहता है, शराब किलर नंबर 1 है। दुनिया में शराब की वजह से हर साल 30 लाख लोग मारे जा रहे हैं। भारत में 3 लाख से ज़्यादा लोग हर साल इसका शिकार बनते हैं। इनमें लीवर सिरोसिस से एक लाख 40 हज़ार और रोड एक्सीडेंट से 92 हज़ार लोग मारे जा रहे हैं। इसकी लत के सबसे बड़े शिकार 15 से 50 साल की उम्र के लोग बन रहे हैं। यह वो उम्र है, जिसमें एक इंसान सबसे ज्यादा उत्पादन और काम करता है, जीवन का आनंद लेता है। मगर इस उम्र पर अब इसके नशे का ग्रहण लगता जा रहा है। उन्होंने कहा, इससे दिमाग़ की क्षमता में स्फूर्ति या उत्तेजना नहीं आती, अवसाद बढ़ता है, निर्णय क्षमता, विवेक और संयम रखने की क्षमता खत्म हो जाती है। होश खो देने के कारण ही पीने वाले को अपने किए का तब पछतावा होता है, जब उसे होश आता है, उसे अहसास होता है कि वह अपने या किसी दूसरे के साथ क्या कुछ कर चुका है। उन्होंने कहा, एक ज़माने के प्लेग, कॉलरा, स्मॉल पॉक्स, टीबी की जगह शराब और तम्बाकू आज के दौर की महामारी है। यह एक बड़ा सामाजिक संकट है। हमें अब कोरोना की तरह शराब पर पाबंदी से बढ़कर इससे मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ने की तुरंत ज़रूरत है।

महिलाएं भी शराब के नशे दूर नहीं: डबल्यूएचओ के अध्धयन के अनुसार, भारत में पिछले 12 महीनों में कुल आबादी के 39 प्रतिशत वयस्कों ने शराब पी है। इसका एक मतलब ये भी हुआ कि देश में करीब 39 करोड़ लोग शराब पीने का शौक रखते हैं। इनमें पुरूषों का प्रतिशत 51 हैं और जबकि अब 25 फीसदी महिलाएं भी पीने लगी हैं। शराब पीने वालों में हैवी ड्रिंकर की संख्या भी बढ़ती जा रही है। 28 प्रतिशत पुरूष बेतहाशा पीने लगे हैं और करीब 7 प्रतिशत पुरुष और आधा प्रतिशत महिलाएं, गंभीर व्यसनी हैं जो शराब के बिना रह नहीं सकते। ऐसे करीब साढ़े तीन करोड़ पुरूष और करीब 50 हज़ार महिलाएं हैं। ऐसे गंभीर पियक्कड़ों को तुरंत ही नशामुक्त केंद्रों में भर्ती करने की ज़रूरत है। आंकड़ों के मुताबिक, हर साल भारत में पुरूष 9 लीटर शराब (100% अल्कोहल) पी रहे हैं, जबकि स्त्रियां करीब 2 लीटर शराब पी रही हैं। ये शुद्ध शराब के सेवन के आंकड़े हैं। आपको बता दें, बीअर में करीब 6 प्रतिशत, वाइन में 10, व्हिस्की में 40 और वोदका में 50 प्रतिशत तक अल्कोहल होती है। जबकि एक लीटर में करीब 80 से 100 पैग बनते हैं।

आर्थिक नुकसान सरकारों के लिए चेतावनी: भारत में शराब नीति और उसपर कर वसूली राज्य सरकारों के अधीन है। ऐसे में राज्य सरकारें शराब पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाकर राजस्व कमाती हैं। कई बार प्रोत्साहन भी देती हैं। परंतु अध्ययन के अनुसार शराब को लेकर वर्तमान नीति से लाभ कम आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है। इसका अध्ययन भी किया गया है। एम्स और पीजीआई के इंस्टीट्यूशन अर्थशास्त्रियों के इंटरनेशनल ऑफ ड्रग पॉलिसी में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, 2011 से 2050 तक भारत को 1 लाख 21 हज़ार अरब रुपए का आर्थिक नुकसान होगा। ये अकल्पनीय आंकड़ा है। अगर इस अवधि में मिलने वाली टैक्स की राशि को छोड़ दें तब भी भारत को 98 हज़ार अरब रुपए का नुकसान होगा। ये नुकसान समाज को भुगतना होगा। 2011 से 2050 के 40 सालों के इस आकलन वाले शोध से 11 साल ख़त्म हो चुके हैं। अब 30 सालों में ये नुकसान हमें झेलना होगा। जानना चाहिए कि शराब पीकर मरने,सड़क दुर्घटना या बीमारी का शिकार होने, काम पर ना जाने और अपराध कर जेल जाने से समाज, देश को ही नुकसान पहुंचता है।
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26 करोड़ लाइफ़ ईयर्सका नुकसान: वैज्ञानिक आकलन के अनुसार, 2011 से 2050 के सालों हमें 26 करोड़ ‘लाइफ़ ईयर्स’ का नुकसान संभव है। लाइफ ईयर्स के आकलन को हम अपनी औसत उम्र से समझ सकते हैं। आज हमारी औसत आयु 68 साल है। फर्ज कीजिए अगर कोई 50 साल की उम्र में शराब पीने की किसी वजह से मारा जाता है, तब उसे 18 जीवन वर्ष की हानि होगी। यदि किसी गंभीर दुष्परिणाम के बीच जीवन बच भी गया तब भी काम करने की योग्यता पर असर पड़ेगा। इसका अंत में परिवार,समाज,देश सबको बड़ा आर्थिक नुकसान होगा। भारत में 26 करोड़ जीवन वर्ष बरबाद होने की आशंका है। आर्थिक विकास में बाधक ये एक तबाही का अलार्म है। अगर केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर इस समस्या के निपटारे पर जल्द समझदारी से नीति लागू तब जाकर भारी नुकसान से बचने की संभावना जाग सकेगी।

भारत शराब के खिलाफ़ कब लड़ेगा जंग?
ऐसा नहीं है दुनिया में ऐसा नहीं हुआ है। रूस ने शराब की समस्या भयानक होने पर राष्ट्रीय नीति बनाई। इसके अंतर्गत उपलब्धता और उत्पादन को कम कर प्रति व्यक्ति को साल भर में 20 लीटर शराब पीने 11 लीटर तक पहुंचा दिया। इससे पुरूषों की आयु 57 से बढ़कर 68 और स्त्रियों की 78 साल हो गई है। उत्पादन और विकास की गति को नया बल मिला है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार, दुनिया के 200 देशों में से 43 देश ऐसे हैं जहां पर हर साल प्रति व्यक्ति 2 लीटर से भी कम शराब पी जाती है। इनमें से भी 27 देश ऐसे हैं जहां पर इसका उपभोग प्रति व्यक्ति 1 लीटर से भी कम है। इनमें ज़्यादातर मुस्लिम देश हैं। इसकी वजह उनकी संस्कृति और धर्म है और सरकारों की नीति है।

शराबबंदी से हमें और भी आगे जाना होगा: हमारे यहां बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में शराबबंदी है, मगर इसका मूल्यांकन अभी बाकी है। गढ़चिरौली ज़िले में किए गए कार्यों और प्रयोग के आधार पर डॉ. बंग ने कहा कि वास्तव में समस्या अल्कोहल या शराब है। हमें पूर्ण या आंशिक शराबबंदी के और भी आगे जाने की जरूरत है जो संभव है। उन्होंने कहा, महात्मा गांधी कहा करते थे, ‘अगर मुझे एक दिन के लिए डिक्टेटर बना दिया जाए तो मैं बिना मुआवज़े के शराब की सारी दुकानें बंद कराना चाहूंगा’। सवाल ये है कि क्या गांधी जी के देश में उनके रचनात्मक कार्यक्रम और सत्याग्रह के अनुरूप ऐसे विचारणीय और ज़रूरी मुद्दों पर काम होगा?
Edited: By Navin Rangiyal/ PR

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