पहले चरण के मतदान के साथ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की शुरुआत हो गई है। वैसे तो ये सभी चुनाव महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे ज्यादा नजर उत्तर प्रदेश एवं उसके बाद पंजाब पर लगी हुई है।
पंजाब सुरक्षा की दृष्टि से जम्मू कश्मीर के बाद दूसरा सबसे संवेदनशील राज्य है। पिछले करीब 1 साल से पंजाब कांग्रेस में मची हलचल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के विदाई के बाद बदलते राजनीतिक समीकरणों के कारण लोगों की उत्सुकता यह जानने में है कि वहां के आगे की राजनीति का बागडोर किसके हाथों में रहेगा।
जिस तरह पिछले कुछ महीनों में वहां फिर से उग्रवाद पैदा करने के प्रमाण मिले हैं, उससे भी या चुनाव महत्वपूर्ण हो गया है। इसके समानांतर भारत का शायद ही कोई कोना हो जहां राजनीति में रुचि रखने वाले व्यक्ति की निगाहें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर न लगी हो।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद भारत भर में अपने समर्थकों और विरोधियों का समूह खड़ा किया है।
उत्तर प्रदेश के चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य क साथ पूरी भाजपा का विरोध करन वालों ने जिस वैचारिक स्तर पर लिया है उससे यह किसी राज्य का विधानसभा चुनाव न होकर राष्ट्रीय चुनाव जैसा हो गया है।
आप देखेंगे कि सोशल मीडिया ही नहीं, मुख्य मीडिया के माध्यम से यह उन देशों में भी चर्चा का विषय बना है जिनकी अभिरुचि भारत में है। पंजाब को लेकर भी अभिरुचि भारत के बाहर है लेकिन उसका चरित्र उत्तर प्रदेश से अलग है।
इसमें असदुद्दीन ओवैसी का हमला देश और विदेश की मीडिया की सुर्खियां तथा व्यापक चर्चा का विषय बना ही था। एक सांसद पर हमला होगा तो संसद के अंदर उसकी जानकारी देना सरकार का दायित्व बनता है।
इस नाते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असदुद्दीन ओवैसी पर हुए हमले की पूरी जानकारी और कानूनी स्थिति को संसद में रख दिया। असदुद्दीन ओवैसी पर हमला से लेकर संसद के बयान तक पश्चिम उत्तर प्रदेश का चुनाव अभियान अपने चरम पर आ चुका था।
यद्यपि हमलावर गिरफ्तार हो चुके हैं। उनका पिछला कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है। वे किसी संगठन से भी नहीं जुड़े हैं। उनके सोशल मीडिया अकाउंट से पता चलता है कि किस तरह उनके अंदर बढ़ते इस्लामिक कट्टरता को लेकर गुस्सा था और वे इसे राष्ट्रभक्ति के रूप में लेकर किसी भी स्तर पर जाने को तैयार थे।
कानून अपने अनुसार उनको सजा देगा। अभी तक की जांच में ऐसा कोई पहलू नहीं मिला है, जिससे रत्ती भर भी संदेह हो कि इसके पीछे किसी संगठन या किसी संगठित समूह की भूमिका थी। लेकिन देख लीजिए ऐसा लग रहा है, जैसे सुनियोजित तरीके से उन पर हमला कराया गया हो।
सच कहें तो उत्तर प्रदेश चुनाव में जिस तरह का माहौल बनाया गया है प्रतिक्रियाएं भी उसी के अनुरूप आ रहीं हैं। सच यह है कि पूरे चुनाव के दरमियान गैर भाजपा दलों ने मुसलमानों के अंदर डर का मनोविज्ञान पैदा करने की कोशिश की है।
यद्यपि सपा और रालोद के शीर्ष नेता सार्वजनिक वक्तव्य में ऐसी कोई बात कहने से बचते हैं, जिससे लगे कि वे किसी स्तर पर मुसलमानों को आकर्षित करने में लगे हैं। कारण साफ है। उन्हें भय है कि अगर यह संदेश चला गया कि वे मुसलमानों के वोट के लिए लालायित हैं तो वर्तमान वातावरण में हिंदुओं का बड़ा समूह इसके विरुद्ध मतदान कर सकता है।
इसलिए वे सार्वजनिक स्तर पर नहीं बोलते लेकिन उस क्षेत्र का दौरा करने वाले जानते हैं कि किस तरह पूरा वातावरण बनाया गया है। मुसलमानों के अंदर भाजपा और और उसके समर्थक हिंदुओं का भय पैदा कर वोट लेने की रणनीति ने घातक तनाव और सांप्रदायिकता का वातावरण पैदा कर दिया है। इसके परिणाम क्या हो सकते हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं।
दूसरी ओर असदुद्दीन ओवैसी की सोच लंबे समय से देश के सामने है। हैदराबाद से बाहर निकलकर उन्होंने देश भर में स्वयं को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करने के लिए जिस आक्रामकता से अपने घातक विचारों की अभिव्यक्ति की है उससे वातावरण विषाक्त हो रहा है।
वे इस समय उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की बात ऐसे करते हैं मानो वर्तमान शासन में उन्हें हिंदुओं के बड़े समूह के दबाव और आतंक में जीना पड़ रहा है। वे बैरिस्टर हैं इसलिए सोच समझकर ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करते जिससे कानूनी रूप से गिरफ्त में आ सकें।
ओवैसी बंधुओं के बयानों ने पूरे भारत में गैर मुस्लिम समुदाय खासकर हिंदुओं के बड़े समूह के अंदर गुस्सा पैदा किया है। कौन जानता है कि उनके भाषणों और बयानों के कारण स्थानीय स्तर पर कैसी स्थिति बनी होगी।
विवेकशील व्यक्ति कभी नकारात्मक या हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते, किंतु हमारा संपूर्ण समाज हर समय विवेक और संतुलन से ही विचार करें यह आवश्यक नहीं। असंतुलित, नासमझ और विषयों की सही समझ न रखने वाले उत्तेजना में ना तक जा सकते हैं।
पता नहीं लोग गुस्से में क्या-क्या कर बैठते हैं। ओवैसी, सपा, रालोद, कांग्रेस या ऐसे अन्य दलों के नेता समझने को तैयार नहीं कि मुस्लिम वोट पाने या मुसलमानों को भाजपा के विरुद्ध उकसाने के उनके रवैया के विरुद्ध भी प्रतिक्रिया हो रही है। ओवैसी पर जानलेवा हमला समझने के लिए पर्याप्त है कि पूरा माहौल किस खतरनाक दिशा में जा रहा है।
यह तो सौभाग्य कहिए कि हमारे समाज का बहुमत हिंसा को कभी समर्थन नहीं देता इसलिए इस तरह की हिंसक प्रतिक्रियाओं की बहुत ज्यादा संभावना नहीं दिखती। लेकिन अगर प्रतिक्रिया में ऐसे तत्व बन रहे हैं तो क्या थोड़ा ठहर कर अपनी पूरी राजनीति पर इन दलों को विचार नहीं करना चाहिए?
बार-बार अगर जाट-मुस्लिम एकता की बात की जाएगी तो उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया भी होगी। इसी तरह कोई बार-बार मुसलमानों का पीड़ित तथा शासन के अंदर उन्हें दबा कुचला बताएगा तो उससे खीझ व गुस्सा पैदा होगा। वैसे भी जिस जाट मुस्लिम एकता की बात की जा रही है वैसा ही धरातल पर नहीं है।
जाट ऐसे नहीं है कि अपनी जाति के किसी एक व्यक्ति के कारण एक पार्टी के खिलाफ हो जाए। कानून व्यवस्था अपना काम करेगा, लेकिन प्रति क्रियात्मक तनाव का वातावरण बनाते हुए कानून व्यवस्था को दोषी ठहराने वालों को क्या कहा जाएगा? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कैराना से लेकर अन्य जगहों के बारे में दिए गए वक्तव्यों को विरोधी सांप्रदायिकता का प्रतीक बताते हैं।
इस पर हमारी आपकी जो भी राय हो लेकिन क्या कैराना से हिंदुओं का पलायन नहीं हुआ था? क्या वे हिंदू फिर से वर्तमान शासन में वापस नहीं आए? भाजपा स्वभाविक ही इसे उठाएगी और बताएगी कि पूर्व शासन में किस तरह एक समुदाय का मनोबल बढ़ा दिया गया था।
ओवैसी, सपा रालोद या कांग्रेस के लिए मुसलमानों के विरुद्ध कोई घटना मुद्दा है तो हिंदुओं के साथ ऐसी घटनाएं मुद्दा क्यों नहीं बन रही है? आप अगर अपने वक्तव्य और रणनीति में जिम्मेदार रहेंगे तो भाजपा को इसका अवसर नहीं मिलेगा।
आपको लगता है कि मथुरा का मुद्दा उठा देंगे तो मुसलमान वोट कट जाएगा, लेकिन भाजपा सोचती है कि यह मुद्दा हिंदुओं के दिलों में है इसे उठाना चाहिए तो उठा रही है। ओवैसी इसके विरुद्ध अगर आग उगलेंगे तो हिंदुओं के अंदर प्रतिक्रिया होगी, क्योंकि करोड़ों की आस्था वहां है। आप कहेंगे कि मुजफ्फरपुर दंगे को भुला दीजिए तो उसे भुलाने के लिए आपने क्या किया यह भी तो सवाल उठता है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाने वाले जानते हैं कि जमीन के स्तर पर ये सारे सवाल उठ रहे हैं। मतदाता अवश्य समझ रहे होंगे कि उत्तर प्रदेश ही नहीं संपूर्ण भारत और भारत के बाहर के लोग इस चुनाव को किस रूप में ले रहे हैं। इस चुनाव को प्रभावित करने के पीछे कौन-कौन सी शक्तियां चारों तरफ सक्रिय हैं।
ओवैसी हमला मतदान वे प्रदेश में कैसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। निश्चित रूप से विवेकशील मतदाता इन सारी स्थितियों को देख रहे होंगे और उसके अनुसार ही हुए अपना मतदान करेंगे।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)