Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आंखों देखी : मिल रहा है तो ले लो, नहीं मिल रहा तो 'छीन' लो...

हमें फॉलो करें आंखों देखी : मिल रहा है तो ले लो, नहीं मिल रहा तो 'छीन' लो...
webdunia

अनन्या मिश्रा

मज़ा आ गया...ऐसा ही समझ लो.. 

मिल रहा है तो ले लो। नहीं मिल रहा तो 'छीन' लो। अपना ही है. खासकर 'खाना'... ऐसा ही समझ लो। ये सोच आजकल आम हो चली है। पिछले दिनों एक जगह एक आयोजन हुआ। शादी ही समझ लो। बड़े स्तर पर थी, ज़ाहिर है सभी काम में लगे हुए थे। या कुछ हद तक, 'कुछ' तो लगे हुए थे, ऐसा ही समझ लो। 
 
सब ठीक ठाक रहा। पूरी तरह नहीं लेकिन तो भी चल गया, 'निपट' गया, ऐसा समझ लो। 
 
रात को खाने की बारी आई। सबकी तो नहीं आई, लेकिन उनका क्या है... 'काफी' की आ गयी ऐसा समझ लो। 
 
वेज, नॉन-वेज, चाय-कॉफ़ी-ठंडा सभी कुछ था।पर्याप्त मात्र में। कुछ को खाना ‘जमा’ नहीं, लेकिन अधिकतर को ‘चल’ गया, और जिन्होंने खाया, उन्होंने खाया भी भरपूर, ऐसा समझ लो। 
 
देर रात को समपान के करीब आते-आते एक 'शुरुआत' भी हुई। होती तो हर बार है, लेकिन मान लो कि ऐसा नहीं है और पहली बार हुआ... तो ऐसा ही समझ लो। आयोजकों ने ही सर्वप्रथम खुद के परिवार के लिए 'टिफिन' पैक करने का शुभारंभ किया। घर पर बनाने की मेहनत बची और ऑर्डर करने का शुल्क बचा। मुफ्त का खाना कहीं का भी हो, होटल से भी स्वादिष्ट होता है, ऐसा ही समझ लो। 
 
उनकी देखादेखी फिर लगी लाइन उन सभी की जो भरपूर खा चुके थे। 'सपरिवार'. जिन्हें आमंत्रण नहीं था उनके सहित। लेकिन चलता है, कौन देख रहा है... तो आंख बंद कर... ऐसा ही समझ लो। 
 
गुलाब जामुन डब्बे में 'लुढ़क' गए, पनीर और नान को भी 'समेट' लिया और भर लिया पहले से अपने साथ लाए टिफिन में. फिर पता चला एक ‘आइटम’ तो दबोचने से चूक गए तो पार्किंग से लौट आए डब्बा ले कर। अरे, व्यर्थ हो जाता न खाना... और सबको बराबरी से क्यों देना... इसलिए सब हमने ले लिया, ऐसा समझ लो।
 
एक-एक कर सबने अपनी झोली भरी। या यूं कहें कि पेट-मन-मस्तिष्क संतुष्ट और तृप्त किया। 'हक़' है भाई हमारा, ऐसा ही समझ लो। 
 
छोटे और 'दूर के रिश्तेदार' खड़े-खड़े देखते रहे। बोले कौन,कैसे, क्यों, ये छोटे डरते ज्यादा हैं। किन्तु 'बड़े' निर्भीक हैं। छोटे डरपोक हैं इसलिए 'खाएंगे' नहीं। लेकिन बड़े, बड़े हैं। ज्यादा भूख लगती है... और फिर जितना मिले कम ही है ना... ऐसा समझ लो। 
 
खैर, रात की चांदनी में बचे हुए खाने को लपेट कर अपने घर के डब्बे में भरने से उसका ज़ायका और गुलाब जामुन को आखिर में बचे डिस्पोजेबल डब्बे में भरने से उसकी चाशनी और भी मीठी हो गयी होगी, है न? मेहनत का फल, 'मुफ्त का खाना' होता है, ऐसा ही समझ लो। देखते ही देखते कब 'शादी' का आयोजन 'डब्बावाला टिफिन सेंटर' में तब्दील हो गया पता नहीं चला...लेकिन शायद पता तो सभी को पहले से था ना? Festive Vibes में अनजान बने रहें सब तो ही ठीक है... ऐसा ही समझ लो... 
 
तस्वीर प्रतीकात्मक है, आयोजन की नहीं है... कैसे होती? वहां सब खाना समेटने में लगे थे ना... ऐसा ही समझ लो...  
webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

एक दिन में 3 विमानों में खराबी, 18 दिनों में 8 विमानों की इमरजेंसी लैंडिंग, ‘खतरों का हवाई सफर’ बनी भारतीय एयरलाइंस