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बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर

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गरिमा संजय दुबे

शर्माजी ने अपने पुराने कई बरस से पड़े हमारे बजाज का कायाकल्प करने की ठानी और जो वे ठान लेते हैं वो करके रहतें है। पैसा लगा कर अपने सुस्त पड़े बजाज में जान डाल वे आज हमारा बजाज स्टार्ट करने लगे तो, उनकी विधवा बहिन शर्माइन आंटी ने कहा कि "- अब तो बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर दिखाने के लिए कई बुलंद चीजें आ गई हैं, कब तक इसे आड़ा कर करके उसकी बुलंदी को शर्मसार करते रहेंगे"?



मुस्कुराते हुए बोले "अरी बहना बरसों बाद मेरे इस प्यारे बजाज में मैंने फुल टैंक करवाया है और फिर मेरे जैसे कुशल दक्ष चालाक के हाथ में आने पर यूं दौड़ेगा, कि सारी दुनिया देखती रह जाएगी " कह के एक जोरदार किक से अपने बजाज को दौड़ाते वे चल दिए।  
 
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर गुनगुनाते वे चले जा रहे थे। आज तो ठान लिया था कि अपने सारे भूले बिसरे मित्रों से मिलेंगे और तो और उनसे भी मिलेंगे जिनसे रिश्तों में बर्फ जम गई थी। सबसे संबंध सुधार कर ही दम लेंगे। चल पड़े वे हवा से बाते करते हुए, अगली गली तक पहुंचे ही थे, एक गाय दौड़ती हुई आई और उनके बजाज को नाली में गिराने की पूरी तैयारी ही थी, कि वे एक कुशल कट मार उससे बच लिए। अपने करीबी मित्रों को अपने बजाज की खूबियां गिनवाते ताकत बताते वे चले ही थे, कि दो मोहल्ले के लोगों में लड़ाई होती दिखाई दी। वे उन्हें शांति का पाठ पढ़ा आगे बढ़े तो देखा कुछ लोग अपने-अपने ठि‍ये, अलग-अलग बसाने को ले आंदोलन कर रहे थे। उनके झंडों और पुलिस के डंडों से बचते बचाते वे चले। अपने कई भूले-बिसरे मित्रों से मुलाकात की और अपने घर आने का निमंत्रण दे खुशी-खुशी निकले। अपने दुश्मन मित्र के आंगन में से अपना सीना फुलाते, हॉर्न बजाते, उसे खिजाते वे चले जा रहे थे। 
 
चौराहे पर पहुंचे ही थे, कि कई बच्चों ने उन्हें घेर लिया। किसी के हाथ के पंजे खाली थे तो किसी के हाथ में झाडू थी। वे हुड़दंग कर रहे थे। कोई गियर को छेड़ रहा था, तो कोई हॉर्न बजा रहा था, कोई पीछे लद गया, तो कोईं यूं ही रूठ गया। थोड़ा आगे बढ़ते की बच्चे गुदगुदी कर खिलखिला उठते मानो उनका रास्ता रोकना ही एकमात्र मकसद हो, बार-बार परेशान करते। उनके स्कूटर की हवा निकालने पर, गति रोकने पर आमादा ये बच्चे उनके पीछे दौड़े, लेकिन वे जैसे-तैसे उनके हर दाव से बच निकले। आगे देखा तो बड़ा हुजूम उमड़ा पड़ा था, जाति वाद , प्रांत वाद, आरक्षण, तुष्टिकरण की भीड़ में उनका दम घुटने लगा, जोर से गियर बदला तो दम फुले हुए स्कूटर ने घर्र घर्र कर ऐसा काला और विषाक्त धुंआ छोड़ा जो वातावरण पर छा गया। 
 
उसी घुटन भरे धुंए से निकले कई बड़ी-बड़ी समस्या रूपी गढ्डों में अपने स्कूटर से दचके खाते वे घर पहुंचे। देखा तो बहन बाहर खड़ी इंतजार कर रहीं थी। उन्होंने आहिस्ता से अपने प्यारे बजाज को स्टेंड पर लगाया, उसकी तरफ बड़ी ममता भरी नजर डाली। जाने क्यों उन्हें अपने प्यारे स्कूटर पर दया-सी आ गई। एक ठंडी सांस भर वे भराई हुई आवाज में बोले- " चाहे फुल टैंक करवा लो, चाहे कितना रिपेयर करवा लो, चाहे चलाने वाला कितना गुणी क्यों न हो, लेकिन जब तक विध्नसंतोषियों की जमात रहेगी तब तक हमारा बजाज सरपट नहीं भाग सकेगा बहना। प्रार्थना करो कि इस स्वतंत्रता दिवस पर हमारा बजाज विध्न संतोषियों से भी मुक्त हो जाए"।

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