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चीनी एप प्रति‍बंध: अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे

हमें फॉलो करें चीनी एप प्रति‍बंध: अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे
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ऋतुपर्ण दवे

कहते हैं कि किसी की हेकड़ी और औकात दोनों ही नाप दी जाए तो उसे अपनी हैसियत समझ आती है। चीन के साथ ऐसा ही हुआ। वह भी तब जब अभी उसके साथ हुए अधिकतर व्यापारिक समझौते प्रतिबंधित नहीं हुए हैं।

महज 59 चीनी ऐप क्या बैन हो गए उसको अपना डूबता भविष्य नजर आने लगा। बहुत जल्द रिएक्‍शन न देने और खामोशी से काम करने वाली चीनी सरकार के मुंह मामले में अचानक खुल गए। यह वही चीन है जिसकी नीयत उसी समय समझ आ गई थी जब सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इसके लिए जिम्मेदार पाकिस्तान का नाम उसने अपने एक ऐप में नहीं आने दिया। जबकि वहां कार्यरत भारतीय कर्मचारी ने इसके लिए अपने वरिष्ठ से पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा कि देख लो पर ऐसा कर नहीं पाओगे क्योंकि सारा कंट्रोल उन चाइनीज मशीनों से है जिनका सर्वर चीन में लगा है।

ऐप्स के कंटेंट जांचने के लिए ऑटोमेटिक इण्टेलीजेंस का सहारा लिया जाता है जिससे हर वह मैटरियल खुद हट जाता है जिसको उसे डेवलप करने वाला नहीं चाहता है। जाहिर है भारतीय कर्मचारी बेबस था। लेकिन कोई अकेला मामला नहीं है। कुछ चीनी ऐप ने पहले भी कई मौकों पर प्रधानमंत्री के बयान तक हटाए थे।

इधर देश के आईटी मंत्रालय ने चीन की हरकतों को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से शत्रुता का भाव बताते हुए ऐप के जरिए आम भारतीयों के आंकड़ों को सहेजना और उनके सूक्ष्म विश्लेषण करने के प्रयासों को देश की संप्रुभता और अखण्डता पर आघात बताते हुए बहुत ही गंभीर मामला कहते हुए न केवल चिन्ता जताई बल्कि आईटी कानूनों और नियमों के तहत धारा 69-ए के तहत तत्काल प्रभाव से ऐसे ऐप्स को तुरंत बैन भी कर दिया। अगर आपने भी कभी कोई चीनी ऐप अपने मोबाइल पर डाउनलोड किया होगा तो पाया होगा कि प्राइवेसी से इतर वह कई जानकारियों की इजाजत मांगता है जिन्हें हम बिना दूर की सोचे आसानी से दे भी देते हैं। साइबर दुनिया का बेताज बादशाह बनने की तरफ बढ़ रहा चीन अपने ऐसे ऐप्स के जरिए न केवल निजी जानकारियां हासिल करता है बल्कि वह उस ऐप के जरिए कहां और किससे हुई बातचीत तक सुन सकता है। निश्चित रूप से अनभिज्ञ लोग खुद ही अनुमति देकर अपने सारे डेटा आसानी से चीनी सर्वर में इकट्ठा करवा रहे हैं।

महज एक अकेले आदेश से 59 चीनी ऐप्स प्रतिबंधित क्या हुए चीन की बिलबिलाहट समझ आ गई जबकि यह तो शुरुआत है। हो क्यों न दुनियाभर में हर तरह से अकेला व्यापारिक साम्राज्य स्थापित करने की मंशा रखने वाले चीन को उसके गंदे धंधे से हो रहा नुकसान भी नागवार गुजरा और वह अब अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का हवाला देकर अपनी सफाई और दुहाई देने लगा। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि चीन खुद अपने देश के लोगों को क्यों नहीं दूसरों के ऐप्स और वेबसाइट्स के इस्तेमाल की इजाजत देता है? खुद तो दुनिया भर में अपनी दखल अपने ऐसे ऐप्स के जरिए रखना तो चाहता है लेकिन जब खुद पर आती है तो चीनियों को उनकी देशभक्ति सिखाता है। आज दुनिया भर से यह सवाल उठ रहे हैं कि क्यों नहीं चीन में गूगल, फेसबुक, वाट्सऐप, ट्वीटर, इन्टाग्राम का उपयोग किया जा रहा है? सबको पता है कि इसका जवाब न तो चीन ने पहले दिया था और न आगे ही देगा। अब अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की दुहाई देने वाले चीन से दुनिया को पूछना चाहिए कि वह खुद कहां के कानूनों से नियंत्रित है?

यह सच है कि चीनी ऐप्स का जाल पूरी दुनिया में फैला हुआ है। शायद ही कोई देश इससे अछूता हो। इन ऐप्स के जरिए लगभग हर देश में उसने लंबा निवेश किया है। एक अनुमान के हिसाब से अकेले टिकटॉक को ही लें तो यहां कम से कम हजार भारतीय नौकरी करते हैं। जाहिर है चीनी ऐप्स ने भारत में ही हजारों करोड़ का निवेश कर रखा है। बैन से उसकी सांसें उखड़ना स्वाभाविक है। चीन की साजिश अपने लोकप्रिय ऐप्स के जरिए ही चलती हो ऐसा भी नहीं। कम लोगों को पता होगा कि दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरू व दूसरे आईटी प्रमुख भारतीय शहरों में चीनी कंपनियां वहां के स्थानीय निवासियों से ऐप्स डेवलेप कराती हैं और मार्केट में उन्ही के नाम से लाती हैं।

जब ये ऐप्स लोकप्रिय होने लग जाते हैं और अपने अनुबंधों के तहत उन्हें टेकओवर कर लेती हैं। इस तरह कई बार महज भारतीय नाम के धोखे की वजह से अनजाने ही लोग भारतीय ऐप्स समझ कर चीनी ऐप्स अपने मोबाइल पर डाउनलोड कर लेते हैं।

वेंचर इंटेलिजेंस के अनुसार अलीबाबा, टेंसेंट, हिलहाउस कैपिटल और टीआर कैपिटल सहित चीनी निवेशकों ने पिछले 4 वर्षों में भारत के स्टार्टअप कंपनी क्षेत्र में 5.5 अरब डॉलर का भारी भरकम निवेश किया है। जबकि अकेले टिकटॉक के भारत में ही 20 करोड़ से अधिक यूजर हैं वहीं अलीबाबा का यूसी मोबाइल इंटरनेट ब्राउजर को बीते साल सितंबर तक अकेले भारत में 55 करोड़ से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते थे जो अब कहीं ज्यादा होंगे। इस ब्राउजर के अभी भी पूरी दुनिया 1.2 अरब उपयोगकर्ता बताए जा रहे हैं जो चीन के अलावा हैं। इन आंकड़ों से चीन ने अपनी धरती में बैठकर फैलाए जा रहे कारोबार और साइबर स्पेस व्यापार में नए साम्राज्य को किस तरह से फैलाया और निंयंत्रित किया है, समझा जा सकता है।

अब कुछ भी हो, भारत ने एक बड़े वाल्यूम के चीनी कारोबार में से महज 59 ऐप्स पर प्रतिबंध लगा चीन की धड़कन जरूर बढ़ा दी है। लेकिन भले ही जिन जगजाहिर मौजूदा कारणों से सराकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति शत्रुता का भाव रखने वाले ऐसे तत्वों द्वारा आंकड़ों के संकलन, इसकी जांच-पड़ताल और प्रोफाइल को आखिर भारत की संप्रभुता और अखंडता पर आघात माना है वह बेहद संवेदनशील और चिन्ता बढ़ाने वाली बात है। जाहिर है यह सब काफी पहले हो जाना था फिर भी जो हुआ अच्छा ही और जो होगा वह और अच्छा होगा क्योंकि इन ऐप्स के कई भारतीय विकल्प भी हैं जिनका धड़ल्ले से भारतीय मोबाइल यूजर उपयोग कर रहे हैं। ऐप स्टोर पर कई सारे भारतीय विकल्प अब धड़ल्ले से डाउनलोड हो रहे हैं जिनमें मित्रों, चिंगारी तो गूगल के फाइल गो, गूगल के गूगल मीट, वाट्स ऐप, गुगल ड्युओ ने में चीनी प्रतिबंधित ऐप्स का बड़ा स्थान ले लिया।

यदि प्रतिबंधित ऐप्स पर नजर डालें तो टिकटॉक, वीचैट, कैम स्कैनर, बीगो लाइव, हेलो, लाइकी, वीगो वीडियो, क्लैश ऑफ किंग्स, एमआई वीडियो कॉल-शाओमी, एमआई कम्युनिटी के साथ ही ई-कॉमर्स प्लेटफार्म का ऐप क्लब फैक्टरी और शीइन भी हैं। इनमें भारत में टिकटॉक के प्रति लोगों की दीवानगी देखते ही बनती थी। टिकटॉक के चक्कर में खुद का अलग वीडियो पोस्ट करने की होड़ में कितने लोगों की जान चली गई वहीं दफ्तरों में कैमस्कैनर से डाक्युमेण्ट की कम्बाइन्ड पीडीएफ फाइल बनाने का सबसे सरल ऐप होने की वजह से पूरे देश में न जाने कितने विभागों और न जाने कितने गोपनीय दस्तावेजों में सेंध लगा चुकी होगी जो अलग बड़ी चिन्ता का विषय है।

निश्चित रूप से चीन के ऐप्स का भविष्य अब भारत सरकार के रहमों करम पर ही निर्भर होगा। हालांकि इसके लिए चीन ने हाथ पैर मारने जरूर शुरू कर दिए हैं। एक समिति ने इन ऐप्स को कारण-बताओ नोटिस देकर पूछा है कि चीनी एजेंसियों ने उनसे कितनी बार डेटा मांगे और उसका क्या इस्तेमाल किया? पता तो यह भी चला है कि यह आदेश फिलाहाल अंतरिम है जिसमें संयुक्त सचिव स्तर के एक पैनल को सभी प्रतिबंधित ऐप्स कंपनियों के प्रतिनिधियों से स्पष्टीकरण सुनने को कहा है।

सुनवाई के बाद ये समिति अपनी रिपोर्ट दूसरी सचिव-स्तरीय समिति को सौंपेगी जो प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर अपडेट पहुंचाएगी। यह भी तय है कि इन ऐप्स कंपनियों से यह भी पूछा जाएगा कि उन्होंने उपभोक्ताओं के डेटा कितनी बार लिए और कहां रखे तथा मकसद क्या है। फिलाहाल भारतीय ऐप्स डेवलपर के लिए यह बहुत ही सुनहरा मौका है कि वो अपनी प्रतिभा व दमखम से दुनिया के साइबर व्यापार में अपनी हैसियत दिखाएं।

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