मंदिर, आश्रम, ट्रस्ट और जितनी भी सरकारी-गैरसरकारी धर्मार्थ संस्थाएं हैं, उनसे जुड़ी जमीनों पर होने वाली खेती में यांत्रिक खेती, ट्रैक्टर के प्रयोग को प्रतिबंधित कर दिया जाए तो गाय-बैल के लिए खुद-ब-खुद संरक्षण प्राप्त हो जाएगा।
गौधन संरक्षण के लिए एकमात्र उपाय यही है कि पहले-पहल हमें पुन: गौधन की उपयोगिता स्थापित करनी होगी। वर्तमान परिदृश्य में हम गौधन संरक्षण के लिए पूर्णत: गौशाला पर निर्भर हो गए हैं।
गौशाला एक तरह से गायों के लिए सहारा भर है, यदि उसे हम पूर्णकालिक गौसंरक्षण व्यवस्था की तरह अपनाएंगे तो गौवंश रक्षा का हमारा उद्देश्य शायद ही फलीभूत होगा। गौशाला की व्यवस्था बेसहारा गायों के लिए बहुत पहले से उपलब्ध रही है लेकिन पूर्णकालिक व्यवस्था के लिए जरूरी है कि किसान पुन: अपने घरों में गौपालन प्रारंभ करें।
यांत्रिक खेती ने बैलों को खेतों से बाहर कर दिया है, इस कारण किसान के घरों में गाय की उपयोगिता नहीं रही। साथ ही देशी गाय की दूध उत्पादन क्षमता कम होने से किसान को उसका रखरखाव महंगा पड़ने लगा है। खासकर चरनोई की भूमि का खत्म होना भी एक कारण है जिसकी वजह से किसानों ने घरों से गाय को खोलकर दूध के लिए भैंस को अपना लिया है।
पहले एक समय था, जब गांवों में प्रत्येक किसान के घरों में गाय होती थी और कस्बों के घरों में भी गौपालन को महत्व दिया जाता था। शहरीकरण ने धीरे-धीरे कस्बों के घरों से गाय को दूर किया और अब यांत्रिक खेती ने गाय को किसान से भी दूर कर दिया है। कई सालों से यह स्थिति बनी हुई है कि गांव के किसान खुद अपने गौवंश को गौशाला में छोड़कर चले जाते हैं।
गौशालाओं में यह हाल है कि जगह न होने और अत्यधिक गायों की उपलब्धता के कारण उनका रखरखाव कठिन हो गया है जिससे गायों में बीमारियां होने का भय बना रहता है। सीमित तंगहाल जगह और उस पर गायों की अधिकता से गौशालाओं में गायों की मृत्युदर भी तेजी से बढ़ रही है।
यदि वास्तव में गौवंश की सुरक्षा करना है तो कुछ ऐसे उपायों पर विचार किया जाना चाहिए जिससे कि किसान पुन: गौपालन की और उन्मुख हो। इसके लिए गौपालक किसानों को प्रतिमाह गाय के लिए कुछ अनुदान दिया जाए और यदि कोई किसान यांत्रिक खेती की जगह बैलों पर निर्भर रहता है तो ऐसे किसानों को गौशाला की निगरानी और माध्यम से अनुदान या फ्री खाद-बीज प्रदान कराए जाए।
एक और महत्वपूर्ण सुझाव है कि यदि सरकार किसानों से सीधे उच्च दर पर गाय का दूध खरीदे और उसे कुछ कम कीमत पर बाजार में उपलब्ध कराए तो हो सकता है कि हमारे किसान पुन: अपने घरों में गौपालन प्रारंभ कर दे। गाय के दूध के उपयोग का प्रचार-प्रसार इसमें बहुत सहायक होगा तथा किसानों को भी गाय के दूध से एक नया आय स्रोत दिखने लगेगा, जो खासकर छोटे किसानों को खेती से भी जोड़े रखेगा और गांवों से पलायन भी रुकेगा।