भूपेन्द्र गुप्ता अगम'
पुरानी कहावत है, तेल देखो तेल की धार देखो। आज तेल की धार ने मध्यम और गरीबों के जीवन में बेचैनी भर दी है। उनका पूरा बजट बिगाड़ दिया है।
एक अध्ययन में आम आदमी की कमाई का साठ फीसदी हिस्सा केवल घरेलू ईंधन यानी पेट्रोल, गैस और बिजली पर ही खर्च हो जाता है। तेल की धार ने सामान्य आदमी के आवागमन पर भी असर डाला है। अभी यह क्या-क्या दृश्य दिखाएगी निश्चित नहीं है।
हाउदी विद्रोहियों द्वारा सऊदी तेल कुओं पर हमले के कारण उत्पादन सप्लाई घट गयी। यहां लगभग 65 लाख बैरल खनिज तेल का उत्पादन होता है और सप्लाई भी। यही कारण है कि ब्रेंट क्रूड के दाम 71 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गए हैं।
इसी तरह डब्लूटीआई क्रूड के दाम 67.5 तक पहुंच गए हैं जो विगत दो वर्षों में उच्चतम कीमत है। हाउदी हमले के बाद की परिस्थितियों में फिलहाल न तो उत्पादन बढ़ने की गुंजाइश है न ही सप्लाई मात्रा बढ़ने की। ऐसे में महंगाई की डायन कितना गला दबाएगी यह समय बतायेगा।
भारत सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि पेट्रोल डीजल के टैक्स संग्रह में 459 प्रतिशत का उछाल आया है। अकेले वर्ष 20-21 में सरकार ने इस पर 2.94 लाख करोड़ का टैक्स वसूला है। यह इस बात का संकेत है कि पेट्रोल और डीजल मुनाफाखोरी के बड़े हथियार बन गए हैं। चूंकि सार्वजनिक परिवहन आज की आवश्यक प्राथमिकता है इसलिए जनता इस मुनाफाखोरी को बर्दाश्त कर रही है।
एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि एक मार्च 2014 को घरेलू गैस की कीमत 410 रुपये थी जो आज 820 हो गई है। और तो और दिसंबर 2020 में गैस सिलेंडर 594 रुपए का आता था यानी केवल तीन महीने में ही इसकी कीमतों में 225 का इजाफा हुआ है। गैस की कीमतों में इस अनाप-शनाप बढ़ोत्तरी ने उज्जवला जैसी योजनाओं को ही छिन्न-भिन्न कर दिया है। साठ प्रतिशत लोग सिलेंडर रिफिल करवाने की स्थिति में नहीं है। चूल्हे कबाड़ हो रहे हैं, फिर से लकड़ी वाले चूल्हों का युग लौट रहा है।
जब से बंगाल, आसाम, केरल, तमिल नाडु और पुडुचेरी के चुनावों की घोषणा हुई है तब से पेट्रोल डीजल की कीमतें स्थिर है जो हर दिन बढ़ती चली आ रही थी। इससे भी यह संदेश स्पष्ट हो रहा है कि पेट्रोल डीजल की कीमत पर सरकारी नियंत्रण ना होने का जो भ्रम फैलाया गया है वह मिथ्या है। सरकार जब चाहती है कीमतों पर अंकुश लगा देती है और जब चाहती है तब मुनाफा बढ़ाने लगती है।
भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ओपेक राष्ट्रों से अनुरोध किया था कि वह क्रूड की सप्लाई को पहले की तरह बनाए रखें। किंतु ओपेक देशों ने भारत के इस आग्रह को सिरे से खारिज कर दिया है।
सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज बिन सलमान ने तो यहां तक कहा है कि सभी देशों को अपॉर्चुनिटी
कास्ट यानी अवसरों की कीमत का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने भारत को याद दिलाया है कि अप्रैल मई और जून 2020 में भारत को 167 लाख बैरल क्रूड केवल 19 डालर प्रति बैरल की कीमत पर दिया गया था।
इसका भंडारण भारत में विशाखापट्टनम एवं अन्य भंडार ग्रहों में कर रखा है। भारत को इन भंडारों से कीमतों को नियंत्रित करना चाहिए। सस्ते माल का भंडारण कर ऊंची कीमतों का रोना रोना उचित नहीं है। यह वास्तविकता पूरे देश के सामने है।
डीजल की कीमत बढ़ने से महंगाई की रफ्तार भी बढ़ गई है। लॉकडाउन लगाए जाने के बाद डीजल की कीमतों में 28 प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है। इसकी तुलना में खाद्यान्न की कीमतें 43 फीसदी बढ़ गईं। जाहिर है कि डीजल की कीमतों का महंगाई पर लगभग दोगुना असर पड़ता है। सरकार को माल परिवहन की कीमतों को घटाने के उपाय करना चाहिए ताकि महंगाई नियंत्रण में रहे। भारत अभी एकमात्र देश है जहां पर खपत तो घट रही है, लेकिन कीमतें बढ़ रही हैं। कहीं यह डिफ्लेशन की स्थिति तो नहीं है? फिलहाल तेल की धार पैनी होती जा रही है और आम आदमी कटने पर मजबूर है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार है)
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