देश का कोई भी छोटा शहर हो या फिर राजधानी दिल्ली। एक अंतराल के बाद आग की घटनाएं होती हैं, कहीं फैक्टरी में काम करने वाले कर्मचारियों और मजदूरों की मौत हो जाती है तो कहीं मासूम बच्चे जिंदा जल जाते हैं। इसके बाद मरने वालों के परिवार के सदस्यों को सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाता है और सोशल मीडिया पर संवेदना व्यक्त की जाती हैं। कुछ समय बाद घटना को लोग भूल जाते हैं और सबकुछ ठीक हो जाता है। अब तक यही होता आया है और शायद आगे भी यही होता आएगा।
हम सोचते हैं कि दिल्ली देश की राजधानी है और वहां आग लगने जैसी घटनाओं से निपटने के ज्यादा बेहतर संसाधन मौजूद होंगे, ज्यादा व्यवस्थाएं होंगी, लेकिन जानकर हैरानी के साथ दुख भी होगा कि रविवार को दिल्ली की अनाज मंडी में तीन फैक्टरियों में लगी आग की घटना में 43 लोगों की जान चली गई और 50 से ज्यादा लोग घटना में हताहत हो गए। इनमें से कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं। दिल्ली में पिछले करीब 50 साल में दूसरी बड़ी घटना है। घटना में कई लोगों की मौत दम घुटने की वजह से हो गई। मतलब घटनास्थल वाली फैक्टरी में फंसे कई लोगों को प्रशासन निकालने में नाकामयाब रहा। मतलब दिल्ली जैसे शहर में भी ऐसी घटनाओं से निपटने के इंतजाम नाकाफी हैं।
डिजिटल युग में भी कितने नाकाफी हैं हम
हम डिजिटल युग में हैं, सबकुछ ऑनलाइन और तकनीक के सहारे चल रहा है, लेकिन ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए इस युग में भी हमारे पास पर्याप्त सुविधाएं मौजूद नहीं है। दिल्ली की इस घटना से सामने आया कि दमकल के ज्यादातर संसाधन आग लगने वाले स्थान पर नहीं पहुंच सके, क्योंकि जहां ये फैक्टरियां थीं वहां जाने की गलिया बेहद संकरी थी, ऐसे में एक बार में फायर का सिर्फ एक ही वाहन अंदर जा सकता था। आग लगने की घटनाएं आमतौर पर ऐसी गलियों और व्यस्त बाजार में ही घटती हैं, ऐेसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि फायर को लेकर हमारी तैयारी आज भी कितनी नाकाफी है।
इस बारे में दिल्ली के चीफ फायर अधिकारी का बयान आया है, उनका कहना है कि संकरी गली के कारण फायर वाहन अंदर नहीं जा सकें, एक बार में एक ही वाहन और वह भी काफी मशक्कत के बाद अंदर जा सका।
नहीं थी जानकारी कितनी बड़ी घटना
आग की इस घटना में यह भी सामने आया है कि फायर विभाग को घटना के बारे में न तो सही जानकारी मिल सकी और न उन्हें अंदाजा था कि यह कितनी बड़ी घटना है और फैक्टरी में कितने मजदूर फंसे हुए हैं। रविवार की सुबह करीब 5 बजकर 22 मिनट पर जब दमकल को सूचना की गई, तो वे अपने कुछ ही संसाधनों को लेकर वहां पहुंच गए, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था कि कितनी इमारतों में आग लगी है और कितनी लोग उसमें फंसे हुए हैं। दूसरी तरफ सूचना देने वाले भी दमकल अधिकारियों को सही जानकारी नहीं दे पाए।
कितने सबक के बाद जागेंगे हम
13 जून साल 1997 में दिल्ली में ही उपहार हादसा हुआ था, जिसमें 59 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। 103 लोग जख्मी हो गए थे, उपहार दिल्ली का सिनेमा हॉल था, जिसमें उस समय बॉर्डर फिल्म चल रही थी। बाद में पुलिस ने सिनेमा हाल के मालिक सुशील अंसल और प्रणव अंसल को गिरफ्तार किया था। उन्हें 30-30 करोड़ का जुर्माना लगाकर कर रिहा कर दिया गया था। तब से लेकर अब तक दिल्ली में फायर के इंतजामों में कोई बदलाव नहीं हो सका है।
नहीं भूल पाएंगे सूरत की घटना
इसी साल मई महीने में सूरत के सरथना इलाके में स्थित तक्षशिला कॉम्प्लेक्स में लगी आग ने 20 छात्रों की जान ले ली। ज्यादा जानें आग से बचने के चक्कर में बिल्डिंग से कूदने की वजह से गई थी, क्योंकि बच्चों को इमारत से नीचे उतारने के साधन मौजूद नहीं थे, ऐसे में बच्चे जान बचाने के लिए इमारत की चौथी मंजिल से नीचे कूद रहे थे। दरअसल यहां एक कोचिंग क्लास चल रही थी, जिसमें करीब 50 बच्चे और टीचर मौजूद थे।