लोकतंत्र में विपक्ष गलत कामों को रोकता है। वह सत्तापक्ष की तानाशाही पर नकेल कसता है। शक्तियों के अविवेकपूर्ण उपयोग पर नजर गड़ाए रखता है। एक मजबूत विपक्ष नियमों और सिद्धांतों की बुनियाद पर सत्तापक्ष के लोगों की नाक में दम करके रखता है। लेकिन यह घोर विडंबना है कि नाक में दम करने वाला विपक्ष खुद ही दमा की बीमारी से जूझ रहा है। खटिया पर पड़े विपक्ष का शरीर भले ही ग्लूकोज की बोतलों का आदी हो गया हो लेकिन दिमाग अब भी उसका किसी शैतान से कम नहीं दौड़ रहा है।
विपक्ष का मानना है कि भले ही अपना भला हो न हो लेकिन दूसरे का भला भी नहीं होना चाहिए। अगर दूसरे का भला हो गया तो उसका विपक्ष होने पर सबसे बड़ा कलंक है इसलिए इस बार विपक्ष ने एक खुराफाती विचार को अपने विलेन मस्तिष्क में जन्म दिया और सीधे ही न्याय की देवी की इज्जत को खतरा बताकर उसके पुजारी को बर्खास्त करने के लिए पूरे लोकतंत्र में 'महाभियोग का फोग' चला दिया। इस महाभियोग के फोग ने पूरी की पूरी जनता के मन में शक का रोग ला दिया।
विपक्ष ने विलेन के किरदार में घुसकर पुजारी को पूरी तरह से पस्त करने की पूरी प्लानिंग बना ली। न्याय के पुजारी को रिटायर होने से पहले ही रिटायर करने के मंसूबे पाले विपक्ष विलेन को पता नहीं है कि भारतीय सिनेमा जगत में हीरो भले कितना ही दुबला-पतला क्यों न हो, लेकिन वह कभी विलेन को जीतने नहीं देता है। जबसे भारतीय संविधान बना है, तब से यह परिपाटी चालू है।
यह सही है कि 'दाग अच्छे है' वाले दाग अकसर पुजारी के चरित्र पर लगते रहे हैं लेकिन वे कभी सिद्ध नहीं हो पाए हैं। चूंकि विपक्ष अब विलेन बन चुका था तो लोकतंत्र की आड़ में षड्यंत्र को कैसे इतना जल्दी असफल होने देता? उसने पुजारी के चरित्र को तार-तार करने के लिए एक अच्छी-खासी टीम भी जुटा ली। इस टीम में सम्मिलित जन भाड़े पर खरीदे गए। सबको एटीएम के अंदर से निकलवाकर 2-2 हजार की हरी पत्ती का भोग महाभियोग के वास्ते चढ़ाकर राजी किया गया। सबका अंगूठा लिया गया और एक फॉर्मेट बनाकर पेश कर दिया गया।
फॉर्मेट की जांच हुई तो यह निकलकर सामने आया कि पुजारी के चरित्र पर एक अंगुली उठाने वाले विपक्ष के चरित्र पर बाकी की तीन अंगुलियां स्वत: ही उठ खड़ी हुईं। हुआ यह कि भाड़े पर लाए गए अधिकांशों की डेट एक्सपायर हो चुकी थी। बिना वैधता की सिम तो मोबाइल भी एक्सेप्ट नहीं करता, तो यहां कैसी चल जाती भला? विपक्ष विलेन ने सोचा होगा कि कानून तो अंधा है, उसको क्या पता चलेगा?
लेकिन उन्हें यह पता नहीं कि कानून मन की आंखों से सब देखता है और यह पब्लिक है, सब जानती है। परिणामत: विलेन के गालों पर करारा तमाचा पड़ा, जो कि हर बार पड़ता है। उसे इसकी आदत है। जब खुद के फायदे के लिए किसी शरीफ इंसान की शराफत को चुनौती देंगे, तो उसकी शराफत भी कुछ तो शराफत दिखाएगी ना! इस तरह 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' वाले विपक्ष की 'कुमति' ने न्यायालय की प्रतिष्ठा को 'क्षति' पहुंचाई। अत: क्षतिग्रस्त हुए न्याय के मंदिर की दरारों को जल्द ही भरवाने की आवश्यकता है, क्योंकि मानसून आने वाला है।