Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Democracy: लोकतंत्र की मुंडेर पर शहंशाही गिद्ध बैठते हैं

हमें फॉलो करें Democracy: लोकतंत्र की मुंडेर पर शहंशाही गिद्ध बैठते हैं
webdunia

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

लोकतंत्र की मुंडेर पर आजकल शहंशाही गिध्द बैठते हैं, जिनकी दृष्टि से लोकतंत्र नामक जीव बचकर नहीं जा सकता है। अगर वह भागा भी तो माननीय उसे धर-दबोच कर अपने कसाईखाने में कैद कर लेंगे। फिर बारी-बारी से उसका गला रेतते रहेंगे। धीरे-धीरे ही सही शाकाहारी होने का सर्टिफिकेट बांटते हुए "लोकतंत्र" नामक जीव को शहंशाही गिद्ध नोच-नोचकर खा-पचा जाएंगे।

सभी हजम करने में भी अव्वल दर्जा हासिल किए हुए हैं। इसीलिए सबकुछ आंखों के सामने होगा लेकिन ऐसी धूल झोंकेंगे कि किसी को कुछ भी दिखाई नहीं देगा। अगर किसी को दिखाई भी दे दिया तो क्या होगा? हुजूरों के पास कई सारे अमोघ अस्त्र-शस्त्र हैं जिनका प्रयोग कर वे देखने वाले को अंधा बना देंगे और सुनने वाले को बहरा।
हो सकता है भई! आप मेरी बातों पर विश्वास न करते हों, तो मत करिए विश्वास लेकिन अगर आपने कहीं भी "लोकतंत्र" को देखा हो तो बतला दीजिए न!

मैं भी वर्षों से लोकतंत्र को किताबों के अक्षरों और भाषणों के अलावा और कहीं भी देख और सुन नहीं पाया, इसलिए अगर किसी को भी कोई जानकारी हो तो मुझे भी बता दीजिएगा।

चाहे सरकारी दफ्तर हों या सरकारी अधिकारी या संसद और विधानसभाओं सहित ग्राम की प्रधानी तक देख लीजिए लोकतंत्र आपको कहीं भी देखने को मिल जाए तो समझ लीजिए आप इस दुनिया के सबसे श्रेष्ठ व्यक्तियों में से हैं।

बता भी दीजिए कि आपका कोई भी कार्य बिना रिश्वत के हो जाता हो या कि भ्रष्टाचार के विविध मायाजालों से रूबरू हुए बिना आप सांस भी ले पाते हों तो यह नामुमकिन ही लगता है।

वर्षों से लोकतंत्र के जीव ने "विकास" नामक प्राणी की उत्पत्ति के लिए ही खुद के वजूद की बात कही थी लेकिन कहीं भी देख लीजिए अगर "विकास" अपना विकास का कर पाया हो । हाँ एक चीज जरूर है कि अगर लोकतंत्र और विकास कहीं भी उपयोग में आए हैं तो वे लच्छेदार भाषणों में जिनके कारण आला दर्जे के हुक्मरानों की संपत्तियों और रिहायशी ठाट-बाट में सुरसा की तरह अप्रत्याशित वृध्दि हुई है। माननीयों की निष्ठा की अगर इबारत लिखी जाए तो पन्ने कम पड़ जाएँगे क्योंकि उन्होंने अपनी किस्मत उच्च कोटि की लिखी है।

क्या ऐसे-वैसे ही लोकतंत्र से सीधे ही "लोक" गायब हो गया है? नहीं भइया! "लोक" की अंतड़ियों की माला बनाकर माननीयों ने अपने गले में पहन ली है और जो कुछ बची थी उसे विशुध्द विलायती दारू के पैग के साथ चबा गए हैं। आप किसकी-किसकी बातें करेंगे?

यह तो इन्हीं गिध्दों की कृपा है कि किसान आत्महत्या करने के बावजूद भी आँकड़ों में समृद्ध और सुखी है तो "गरीब" भी अपनी गरीबी पर लगातार सुशोभित हो ही रहा है। गरीबों के सूखे चेहरों और हाड़-मांस सब अलग-अलग दिखते ढांचों से ही अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किस तरीके से "गरीबी" का जिन्न आज भी पीछा नहीं छोड़ पा रहा है।

बाकी रोजगार की बात मत करिए क्योंकि मनरेगा है न? जाइए उठाइए तगाड़ी-फावड़ा और लग जाइए। हुजूर गारंटी के साथ 100 दिन का काम देंगे और आप कहते हो कि देश में रोजगार नहीं है। यार कसम से बहुत बड़े दोगले आदमी हो । सरकार तुम्हें रोजगार दे रही है और तुम कह रहे हो कि बेरोजगारी फैली है। असल में यह तुम्हारी मानसिक बीमारी है इसलिए इसका ईलाज करवाओ क्योंकि बेकारी तो कब की दूर हो चुकी है।

क्या ऐसे-वैसे विकास का पहिया भाषणों और घोषणाओं के रास्ते होते हुए भारी भरकम आंकड़ों में दर्ज होकर लगातार राजनीति और नेता की परिधि का चक्कर काटता हुआ लगातार घूम रहा है? पार्टियों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है तब जाकर उन्होंने सत्ता की कुर्सी में बैठते ही सबसे पहले लोकतंत्र को बंधक बनाया और फिर तरह-तरह के तरीके ईजाद कर राजनीति की कढ़ाही में जनता को खौला-खौलाकर उन्होंने अपने पकवान बनाए।

फिर सोने-चांदी की थालियों में परोसकर लोकतंत्र का ब्रेकफास्ट और डिनर करते रहे हैं। वो अलग बात है कि इसके लिए उन्हें ईमानदारी का चोला ओढ़ना पड़ता है, और यह काम ही वे बड़ी ईमानदारी के साथ करते हैं।

अब आप कहोगे कि देश में खुशहाली है इसलिए सिंहासन की जयकारे लगाइए तो भई! मैं तो कब से जयकारे लगाने के लिए उतावला हूं यह आप भलीभांति जान और समझ सकते हैं। जयकारे तो वे भी लगा रहे हैं जिन्हें राजनैतिक महारथियों ने चक्रव्यूह में घेरकर भूखों मरने के लिए छोड़ दिया है। आजकल के हालात ही देख लीजिए किस तरह से लोकतंत्र में "तंत्र" लगातार फल-फूल रहा है और बेचारा "लोक" दर-दर की ठोकर खाता हुआ बिलखकर अपने प्राण-पखेरू छोड़कर चला जा रहा है।

"लोक"-भूखा-प्यासा नगरों और महानगरों से अपने घरों की ओर चिलचिलाती धूप में लगातार चमचमाती सड़कों में दौड़ता-भागता हुआ चीत्कारें लगा रहा है। किसी को ट्रेन धड़ाधड़ रौंदती चली जाती है तो उसके चीथड़े उड़ जाते हैं तो कोई आधे रास्ते में दम तोड़े दे रहा है।

भला इससे बढ़िया लोकतंत्र कहां होगा? यह सब शहंशाही गिध्दों की बदौलत है इसलिए उनको शुक्रिया अदा करना चाहिए। यही विकास का कीर्तिमान है कि नवनिहालों के पैरों में फफोले और बेजान नारी शक्ति अपने लहुलुहान शरीर को लिए चले जा रहे हैं। आंख और कान बन्द कर लीजिए और सेलीब्रेट करिए।

क्योंकि लोकतंत्र के उत्साह का यह पर्व ही है जिसके लिए आजादी से लेकर अब तक रोडमैप बनाया जाता रहा है। जो अब सभी को देखने को मिल रहा है तथा इसके कार्यान्वयन की पूर्णता का प्रमाणपत्र शहंशाही गिध्दों को स्वत: ही प्राप्त हो रहा है।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रूमी को सिर्फ एक ठंडी जगह चाहिए थी… और एक गर्म हथेली