ईश्वर में मेरी बहुत आस्था है। मुझे लगता है वो सबका ख़्याल रखता है। उसने धूप बनाई। छांव भी। उसने हमारे जीने के लिए उजाला बनाया। हम अपनी खोह में अकेले बैठ सकें इसलिए उसने अंधेरा भी रचा। उसने मौसम दिए कि हमारे दिल उड़ सकें। बारिशें बनाई कि हमारे मन भीग सकें उसमें। तपती हुई दोपहरें दीं, इसलिए कि हम अपनी गंध को पहचान सकें, उसे बनाएं रखें। अपने नमक को याद रख सकें।
गहरी नदियां हैं। बहुत ऊंचे पहाड़। पूरी दुनिया अपने अनुपात में है। सबको सब-कुछ मिला है। थोड़ा कम या कुछ ज़्यादा।
लेकिन कुत्तों को उसने ज़्यादातर भोगने के लिए दुनिया में छोड़ दिया है। यह एक तरफा दुर्भाग्य है। कहीं कोई आसरा नहीं। विदाउट फूड एंड डेस्टिट्यूड।
अभिशप्त जीवन। हर दहलीज़ पर एक गाली है। हर सड़क पर एक दुत्कार।
ये बेज़ुबान जिंदगी किससे कहें, और क्या कहें। आंख एक भाषा है, लेकिन वो दुनिया में किसी को नहीं आती। मौन का कोई मोल नहीं। चुप्पी का कोई अर्थ नहीं होता। जो मंगाता है उसे भी नहीं मिलता, तो जो मांगता ही नहीं, उसे क्या मिले, कौन दे!
एक बेमतलब आवाज़ गूंजती रहती है इंसानी जिंदगी के इर्दगिर्द। एक गुर्राहट जीने के संघर्ष के लिए सुनाई आती रहती है।
तीन दिन पहले एक बेनाम कुत्ते को उसका मालिक मेरे घर के सामने छोड़ गया। मैंने उसे पानी दिया तो उसने मुझे अपने आंसू सौंप दिए।
दिल लगने के डर से मैंने उसे फिर कुछ नहीं दिया। मैं सबसे ज़्यादा दिल्लगी से ही डरता था।
मैंने उसे नाम देना चाहा। पहले उसे शेरू कहा। फिर टाइगर कहा। ब्रूनो कहा। टॉमी। मोती। लियो कहा।
इस तरह मैंने उसे 130 करोड़ नामों से पुकारा। इनमें से कोई भी नाम उसका नाम नहीं था। ये उसकी चुप्पी का एक्स्ट्रीम था कि वो अपने नाम पर अपनी गर्दन झुकाकर एक 'हां' भी नहीं कह सका।
मुझे लगा इस पुरवाई में पेड़ से गिरा कोई सूखा पत्ता उसका नाम होगा, वो पत्ते की खरखराहट पर डर जाता है।
मुझे लगा हवा का कोई झोंका होगा उसका नाम।
मुझे लगा गाड़ी का हॉर्न उसका नाम होगा, वो उसकी आवाज़ पर चौंक जाता है।
मुझे लगा कोई दरवाज़ा उसका नाम होगा, उसकी दस्तक पर वो हैरान है।
मुझे लगा कोई आहट उसका नाम होगी!
फिर लगा कोई गाली उसका नाम होगा, कोई लात, कोई ठोकर होगी उसका नाम।
अंततः मैंने उसका नाम रूमी रख दिया, यह सोचकर कि यह नाम जुड़ जाने से वो सुख-दुख से परे जा सकेगा। लेकिन अब उसे अपने भीतर अपना नाम मिटाकर रूमी नाम सुनना पड़ेगा। वो फिर से विस्थापित होगा। एक जगह से दूसरी जगह। एक नाम से दूसरे नाम तक। एक मन से दूसरे मन में।
इस तरह वो दुनिया में 130 करोड़ बार विस्थापित होता है। बाहर भी और अपने मन में भी।
जबकि उसे इस भरी-पूरी दुनिया में कहीं सिर्फ एक ठंडी जगह चाहिए थी, और एक गर्म हथेली। सिर्फ अपने नहीं होने की प्रतीक्षा तक। मृत्यु की प्रतीक्षा तक।
लेकिन जिस ईश्वर में मुझे असीम आस्था है, वो मेरे लिए या उसके लिए इतना भी नहीं कर सका।
नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।