मंदिरों में बुत दिन-रात खड़े हैं, वे न हिलते हैं, न डुलते हैं। वहां से कोई मुर्गा बांग नहीं मारता। कोई अलार्म नहीं बजता। लेकिन हजारों लोग हर सुबह उठकर वहां जाते हैं। दीप जलाते हैं। माथा टेकते हैं। उन्हें किसी ने नहीं बुलाया। वहां कोई चमत्कार नहीं होता है। शायद ही कभी बहुत स्पष्ट तौर पर ऐसा हुआ हो कि कोई अपनी तकलीफ लेकर मंदिर गया हो और ठीक उसी क्षण उसकी तकलीफ का निदान हो गया हो। किसी चमत्कार की तरह। फिर भी लोग वहां जाते हैं। जाते रहते हैं। महीनों तक। सालों तक। सिलसिला चलता रहता है, बावजूद इसके कि नई – नई तकलीफें इंसान को घेरे हुए हैं।
यह सब क्यों होता है। किस चमत्कार के चलते होता है। क्या मंदिरों में जाने वाले लोगों की जिंदगी रातों-रात बदलते देखी है किसी ने। शायद नहीं। लेकिन लोग जाते रहते हैं। इस सब सवालों का जवाब एक ही है। आस्था... एक सेल्फ फेथ। जो कारण और परिणाम से परे है।
एक अनुभूति। एक भाव। जो तर्क और बुद्धि से परे है। जाहिर है, जो तर्क और बुद्धि से परे है वो विज्ञान के भी परे है। जहां भाव है, वहां बुद्धि नहीं और जहां बुद्धि है, वहां भाव की कमी हो सकती है।
एक बुद्धि के लिए सूरज हाइड्रोजन और हीलियम का बना आग का एक विशाल गोला है। यह उसके लिए एक खगोलीय घटना है। लेकिन एक आम इंसान के लिए सूरज चमत्कार है। कवि के लिए एक उसकी कविता का उजाला और किसी संत के लिए एक ऐसी रोशनी जहां से वो अपनी आत्मा के लिए ताप ले सकता है। संसार में रह रहे तमाम हजारों-लाखों जीवों के लिए किसी सर्द रात में धूप का एक टुकड़ा है सूरज।
अगर सूरज सिर्फ आस्तिकों का ख्याल रखता तो शायद नास्तिक उससे वंचित रह जाते, और ठीक इसी तरह अगर वो नास्तिकों पर मेहरबान होता तो वो आस्तिकों से दूरी बना लेता। लेकिन वो आस्तिकों और नास्तिकों दोनों को समान रूप से मिला है। प्रकृति का लगभग हर हिस्सा इंसान को समान रूप से मिला है। प्रकृति की इसी समानता की वजह से ईश्वर के अस्तित्व में हमारा विश्वास जागता है। विश्वास से ही आस्था और भाव पैदा हुए।
जब हम किसी चीज में आस्था रखते हैं तो चमत्कार की उम्मीद से नहीं करते। हम बस आस्था रखते हैं। और ऐसा करने वाले पृथ्वी पर हजारों लाखों लोग हैं। विकसित देशों में भी विकासशील देशों में भी। मुद्दा ये नहीं है कि कोई ऊपर बैठा ईश्वर या नीचे बैठा कोई संत चमत्कार करता या वो कैसे चमत्कार करता है, बल्कि मुद्दा ये है कि आपकी नजर में चमत्कार क्या है। आप किस चीज को चमत्कार मानते हैं।
अगर आपके पास सिर्फ तर्क और बुद्धि है तो यह दुनिया आपके लिए इंसानों की बनाई हुई सिर्फ एक विशाल मशीन हैं, और आप मानव विकास के पहले की पूरी दुनिया को नकार देते हैं। अगर आपके पास आस्था है तो फिर पूरी दुनिया एक चमत्कार है, उस चमत्कार में मानव मस्तिष्क भी शामिल है।
आप चाहें तो खुद का होना भी एक चमत्कार मान सकते हैं। हर रात को चांद निकलता है, हर भोर सूरज उगता है। हवा चलती है। हम यह सब देख सकते हैं, क्योंकि हम जिंदा है, हमारी मृत्यु के बाद कुछ भी नहीं है। क्या यह सब एक चमत्कार नहीं है। शायद इसीलिए किसी ने कहा है चमत्कार की प्रतीक्षा मत करो, तुम्हारा जीवन खुद एक चमत्कार है।