नई दिल्ली। सफेद साड़ी में अपनी जिंदगी को बोझ मानकर दिन बिताती रहीं विधवाएं फैशन शो में रैंप पर भी चल सकती हैं। शायद आपको भरोसा ना हो, लेकिन राजधानी दिल्ली इस अनूठी और ऐतिहासिक घटना का गवाह बनी। जानी-मानी सामाजिक संस्था सुलभ इंटरनेशनल की पहल पर वृंदावन और वाराणसी से आई विधवाओं ने रैंप पर सज-धज कर कैटवॉक किया। इस अनूठे अंदाज में विधवाओं को देखकर पूरा मावलंकर हाल तालियों से गूंज उठा। इस मौके पर सिक्किम के पूर्व राज्यपाल बाल्मीकि प्रसाद सिंह और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य सरोज खन्ना भी मौजूद थीं।
रैंप वॉक के ठीक पहले सुलभ इंटरनेशनल की ओर से प्रकाशित तो महत्वपूर्ण पुस्तकों सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया एंड विडोज ऑफ वृंदावन और विडोज इन इंडिया का लोकार्पण महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किया।
पहली पुस्तक को जहां सुलभ इंटनरेशनल के संस्थापक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक ने संपादित किया है, वहीं दूसरी पुस्तक का लेखन उन्होंने किया है। पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए मेनका गांधी ने अपने विधवा जीवन को याद करते हुए माहौल को भावुक कर दिया। उन्होंने इस दौरान सुलभ इंटरनेशनल द्वारा विधवाओं के कल्याण के लिए किए जा रहे कामों की प्रशंसा की। इस दौरान उन्होंने अगले साल शुरुआत में विधवाओं के लिए एक हजार बिस्तरों के आश्रम बनाने का ऐलान भी किया।
इस मौके पर उन्होंने डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक से वादा किया कि विधवाओं के पुनर्वास के लिए किए जा रहे कार्यों में उनका मंत्रालय हर संभव मदद करेगा। विधवाओं के इस फैशन शो की खासियत यह रही कि इस दौरान बैकग्राउंड में भजन बजाया जा रहा था। 'हे गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवाय' की धुन पर प्रोफेशनल मॉडलों के साथ जब विधवाएं रैंप पर उतरी तो माहौल भावुक हो गया।
इस दौरान विधवा महिलाओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। रैंप वॉक के दौरान कुछ देर के लिए डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक भी मंच पर पहुंचे तो विधवाएं उत्साह से भर उठीं और भजनों पर उन्होंने जमकर ठुमके लगाए। उस नजारे को देखकर ऐसा लग रहा था, मानों ये महिलाएं अपनी जिंदगी का दर्द कहीं पीछे छोड़ आई हैं। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर विधवाओं के पुनर्वास और देखभाल में चार साल से जुटे सुलभ इंटरनेशनल ने कई अहम कदम उठाए हैं।
सुलभ के प्रयासों से सफेद साड़ी में रहने वाली ये विधवाएं अब हर साल होली के दौरान जहां रंग और फूलों की होली खेलती हैं, वहीं दीवाली में फुलझड़ी छोड़कर अपनी जिंदगी में नया रंग भरती हैं। डॉक्टर पाठक के सहयोग से ये विधवाएं हर साल जहां कोलकाता में दुर्गापूजा देखने जाती हैं, वहीं हाल ही में उन्हें उज्जैन कुंभ में भी पवित्र स्नान कराया गया था।
फैशन शो के ठीक पहले लोकार्पित दोनों किताबों में विधवा जीवन की सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन पेश किया गया है। इन पुस्तकों में पितृ सत्तात्मक हिंदू समाज में विधवाओं की हालत पर गंभीर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इन किताबों के मुताबिक प्राचीन काल से ही हिन्दू समाज में विधवा होते ही महिलाओं को ना सिर्फ भावनात्मक, बल्कि आर्थिक रूप से भी परिवार और समाज से अलग करके एक कोने में जीने के लिए मजबूर किया जाता रहा है।
इन किताबों के मुताबिक बंगाल में अब भी विधवा महिलाओं के साथ सामाजिक व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया है और अब भी उन्हें काशी और वृंदावन भेजा जा रहा है। वाराणसी और वृंदावन पहुंचाई गई विधवा महिलाओं की दारूण स्थिति पर भी इन पुस्तकों में मार्मिक और गंभीर अध्ययन दिया गया है। वैसे जब से सुलभ इंटरनेशनल ने दोनों जगहों पर विधवाओं के पुनर्वास और देखभाल का जिम्मा संभाला है, तब से हालात में काफी बदलाव नजर आ रहा है। विडोज ऑफ इंडिया में तो भारतीय समाज में बुजुर्ग हो रहे लोगों और उनकी आर्थिक और सामाजिक हालत पर भी खास तौर पर फोकस किया गया है।