Glass Beams psychedelic music band : जब आवाजों से नफरत हो जाती है तो हम चुप्पी की तरफ लौटते हैं, ठीक जैसे वोकल से इंस्ट्रूमेंट्स की तरफ जाना. ठीक जैसे लोगों को छोड़कर किताबों की तरफ जाना. ग्लास बीम्स बैंड के संगीत में वही सौंदर्य है. जो न सिर्फ हमें आवाजों से दूर करता है— एक हद में ले जाकर चुप भी कराता है. निस्संग और निरर्थक मौज. ग्लास बीम्स हमारे भीतर बजता है— लेकिन हमारी स्पेस में नहीं घुसता है. इसे सुनते हुए हम बेहद इत्मिनान से निर्मल वर्मा को पढ़ सकते हैं.
ग्लास बीम्स एक रहस्य है. वे प्ले करते हुए अपना चेहरा भी नहीं दिखाते. मुखौटे लगाकर वे बाहर और भीतर दोनों दुनियाओं को छिपा लेते हैं. तीनों मास्क लगाकर प्ले करते हैं. उनके वाद्यों में साइकेडेलिक वाइब्स है— जैसे हम अकेले हैं और जिप्सियों की तरह कहीं भटक रहे हैं- बेपरवाह और बेफिक्र. कोई रेगिस्तान है सामने और हम चले जा रहे हैं. बस चलते ही रहना है.
दिलचस्प है कि 2021 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में उदय हुए ग्लास बीम्स के पहले रिकॉर्ड का नाम मिराज है, यानी वही रेगिस्तानी भाव. इसमें कहीं- कहीं भारतीय सिनेमाई गीतों की ध्वनियों के इंप्रेशंस हैं. जब टॉरस बजना शुरू होता है तो अचानक आरडी का कैबरे दम मारो दम सुनाई आता है. कोंग अलग है. महल उससे अलग. असल में ग्लास बीम्स एक बेहद इंटेंस थॉट है, जो इंडियन कल्चरल हैरिटेज की समंदर पार बजने वाले पॉप और जैज के साथ संगत कराता है.
ग्लास बीम्स पर इंडियन हैरिटेज का प्रभाव है. बैंड का संस्थापक राजन सिल्वा ने पापुलर नंबर मिराज बनाने से पहले उस भारतीय शहर को खोजा और उसकी यात्रा की, जिसे उसके पिता ने 17 साल की उम्र में ऑस्ट्रेलिया में बसने के लिए छोड़ दिया था. यही वजह है कि इसमें 70 के दशक के भारतीय पॉप के साइकेडेलिक, क्लासिकल डिस्को और जैज़ का असर है.
ग्लास बीम्स के म्यूजिक में पिंक फ्लॉयड की तरह दार्शनिक सन्नाटे नहीं हैं. इसमें रेशमा के राजस्थानी मांड की तरह सूनापन नहीं है. यह अमेरिकी बैंड ख्रुआंगबिन को सुनने वालों को दीवाना बना रहा है. क्योंकि ग्लास बीम्स और ख्रुआंगबिन के जॉनर में समरसता खोजी जा रही है. इसमें लेड जैप्लिन की तरह रॉक की चीखें और उदासी नहीं है, बल्कि इसके इलेक्ट्रिक गिटार की स्ट्रिंग्स लगातार अपने रास्तों को खोलती है और एक रिदम बनाती है. जिस पर हम अपनी देह को हौले-हौले हिला सकते हैं.
मैं जब दुनिया के दोहराव से ऊब जाता हूं तो अनजान चीजों की तरफ जाने लगता हूं. अनजानी भाषाओं के पॉडकास्ट सुनता हूं. जहां मुझे कुछ भी समझ न आए. न आवाजें और न चेहरे. मैं उन अपरिचितों के साथ रहना चाहता हूं— जिनके बारे में मैं और जो मेरे बारे में कुछ न जानते हो. सबकुछ अज्ञात. यह अजनबियत एक थैरेपी की तरह काम करती है. मसलन, हम कुछ क्षणों के लिए उस दुनिया का हिस्सा नहीं हैं, जिसमें हम लगातार रहते आए हैं. अपनी ही दुनिया से छुटकारा लेना एक मुक्ति है.
ग्लास बीम्स कुछ देर के लिए अपनी दुनिया से एक मुक्ति है.
जब अपनी जानी-पहचानी दुनिया में जी घबराने लगे तो किसी अनजान गली में एक वॉक ले लेनी चाहिए.