Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

#Gulzar : किसे पता था जिसने ‘गोरा रंग लई ले’ लिखा वो ‘बीड़ी जलई’ भी लिखेगा

Advertiesment
हमें फॉलो करें Gulzar
webdunia

नवीन रांगियाल

गुलज़ार… जब यह नाम लिया जाता है तो शेर और शायरी के साथ ही हिंदी फिल्मों के सैकड़ों गीतों की एक फेहरि‍स्‍त ज़ेहन में तैर जाती है।

चाहे 60 और 70 का दशक हो या आज का दौर हो, गुलज़ार ने हर बार वक्‍त की नब्‍ज को पकड़ के रखा है। नहीं तो यह कैसे हो सकता है कि जिस गुलजार ने ‘मोरा गोरा रंग लई ले’ लिखा है वही गुलजार इस दौर में ‘बीड़ी जलई ले’ भी लिख लें।

18 अगस्त को गुलज़ार का जन्मदिन है। उनकी शायरी से तो हर किसी की जुबान पर है, लेकिन कम ही होंगे जो इस शख़्सियत की जिंदगी से वाकि‍फ हो। जानते हैं गुलजार के बारे में कुछ दिलचस्‍प बातें।

जो गुलज़ार पिछले कई दशकों से लोगों के हर इमोशन के लफ़्ज बने हुए हैं वो कभी गैराज में काम करते थे। दरअसल, गुलज़ार कारों पर टचिंग का काम करते थे। जो कारें हादसे में खराब हो जाती या जिन पर स्‍क्रैच आ जाते उन पर रंग लगाकर, टचिंग कर ठीक करते थे। एक तरह से रफू का काम।

ग्रीस, ऑइल और गैराज के हथोडों के साथ अपनी ज़िंदगी का सफर शुरू करने वाले गुलजार ने बाद में लफ्जों से खेलना शुरू कर दिया और शायरी के ऐसे कारीगर हुए कि हर कोई उनका कायल हो गया।

जब वे लि‍खते थे तो पिता और भाई उनकी आदत को ‘टाइम वेस्ट’ मानते और डांटते थे, लेकिन उन्‍होंने लि‍खना बंद नहीं कि‍या। कुछ वक्‍त बाद उन्‍हें आशीर्वाद नाम की एक फि‍ल्‍म में डायलॉग लिखने का काम मिला। इसके बाद उन्हे बड़ा ब्रेक मिला फिल्म बंदिनी में गाने लिखने का, लेकिन जिस गाने ने गुलज़ार को पहचान दिलाई वो गाना था ‘मोरा गोरा रंग लई ले’।

इस गाने के बाद गुलज़ार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्‍हें गीत, डायलॉग स्‍क्र‍िप्‍ट लिखी और फि‍ल्‍में भी बनाई। 18 अगस्त 1934 में पैदा हुए गुलज़ार का पूरा नाम संपूर्ण सिंह कालरा है, लेकिन बाद में उन्होंने बदलकर सिर्फ गुलज़ार कर लिया। गुलज़ार अपने पिता माखनसिंह की दूसरी पत्नी सुजान कौर के इकलौते बेटे हैं। गुलज़ार बहुत छोटे थे तभी मां का निधन हो गया। जब देश का बंटवारा हुआ तो परिवार पंजाब आकर बस गया, बाद में गुलज़ार मुंबई आ गए। यहीं उन्होंने मैकेनिक के तौर पर काम किया था। साथ में कविताएं भी लिखीं। मुंबई में ही उन्होंने बिमल राय, ह्रषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के असिस्टेंट के तौर पर काम किया।

1973 में गुलज़ार की फिल्म ‘कोशिश’ जो एक डेफ एंड डंब कपल की कहानी थी। गुलज़ार चाहते थे कि वे पूरी कहानी से कनैक्ट हो पाएं इसलिए कई दिनों तक उन्होंने साइन लैंग्वेज सीखी ताकि कहानी को बेहतर ढंग से जी सके और फिर उस पर काम कर सके। इसके बाद से ही गुलज़ार डेफ एंड डंब बच्चों के लिए भी काम करते रहे हैं।
गुलज़ार को निजी जिंदगी में काफी उतार-चढ़ाव रहे हैं। पहले उन्होंने तलाकशुदा एक्ट्रेस राखी से शादी की। ये रिश्ता ज्यादा वक्त तक नहीं रह सका। बेटी मेघना के जन्म से पहले ही वे अलग हो गए। दोनों की बेटी मेघना गुलजार एक फिल्म निर्देशक हैं। 84 साल के गुलज़ार को 2004 में भारत के सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण से नवाजा जा चुका है। 2009 में उन्हें ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गाने ‘जय हो’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर अवॉर्ड मिला। इसी गाने के लिए उन्हें ग्रैमी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।

गुलजार हमें हमेशा सफेद कफ़ लगे कड़क कपड़ों में नजर आते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे पॉपुलर होने के बाद सफेद कपड़े पहनने लगे। गुलज़ार अपने कॉलेज के दिनों से ही सफेद कपड़े पहन रहे हैं। एक कवि और गीतकार के अलावा गुलज़ार बेहद अच्छे टेनिस प्लेयर है। लिखने से वक्त मिलते ही वे टेनिस प्रैक्टिस करते हैं और रोजाना सुबह टेनिस कोर्ट पहुंच जाते हैं। बतौर डायरेक्टर गुलजार की पहली फिल्म ‘मेरे अपने’ (1971) थी, जो बंगाली फिल्म ‘अपनाजन’ की रीमेक थी। गुलजार की अधिकतर फिल्मों में फ्लैशबैक देखने को मिलता, उनका मानना है कि अतीत को दिखाए बिना फिल्म पूरी नहीं हो सकती। इसकी झलक, ‘किताब’, ‘आंधी’ और ‘इजाजत’ जैसी फिल्मों में देखने को मिल जाती है। गुलजार उर्दू में लिखना पसंद करते हैं। 1971 में उन्होंने ‘गुड्डी’ फिल्म के लिए ‘हमको मन की शक्ति’ गाना क्या लिखा ये गाना स्कूलों में प्रार्थना में सुनाई देने लगा। उन्होंने ‘हू तू तू’ के फ्लॉप होने के बाद फिल्में बनानी बंद कर दीं, इस झटके से उबरने के लिए उन्होंने अपना ध्यान लिखने पर लगा दिया। उनकी लोकप्रिय फिल्मों में ‘अचानक’, ‘कोशिश’ (1972), ‘आंधी’ (1975), ‘मीरा’, ‘लेकिन’, ‘किताब’ (1977) और ‘इजाजत’ (1987) के नाम आते हैं।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त‍ विचार लेखक की नि‍जी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)‍

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Delicious Modak : श्री गणेश को पसंद है चॉकलेटी मोदक, पढ़ें आसान विधि