Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पश्चिमी अंधानुकरण बनाम भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता

Advertiesment
हमें फॉलो करें India
webdunia

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

पाश्चात्यीकरण के अन्धानुकरण से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति उदासीनता ने हमारे अपने मूल स्वरूप को पहचानने से इंकार किया जिसकी परिणति यह हुई कि हम स्वयं को ही भूल गए।

जबकि वर्तमान समय में हमारे अर्थात भारतीय संस्कृति में सम्पूर्ण विश्व मानवता एवं बन्धुत्व का भविष्य देखता है,क्योंकि पश्चिमी जगत ने भौतिकवाद की चरम अवस्था पर जाकर यह जान लिया है कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य महज भौतिक संसाधनों की आपूर्ति के माध्यम से भौतिक सुखों की प्राप्ति ही नहीं है बल्कि अध्यात्मिकता को अपनाकर मनुष्यत्व व देवत्व की अनुभूति के माध्यम से आत्मिक संतुष्टि प्राप्त करने का बोध है।

इसी का उदाहरण है कि विदेशी हमारे भारतीय धर्म-दर्शन परम्परा एवं संस्कृति को जानने एवं अपनाने के लिए उत्सुक हैं हमारे यहां आयोजित होने वाले कुंभ महापर्व एवं भारतीय धार्मिक स्थलों में सैलानियों के तौर पर उनके आने वाले जत्थों के बीच उल्लासपूर्ण वातावरण से इसका साफ-साफ अंदाजा लगाया जा सकता है।

यहां तक कि विदेशों से पर्यटक के तौर पर आने वाले अधिकतर लोग भारतीय संस्कृति से इतना प्रभावित हुए कि वे यहीं के होकर रह गए यह बात यहां तक ही नहीं रूकी उन्होंने हिन्दुत्व की दीक्षा भले ही ग्रहण की हो या नहीं लेकिन वे हमारी संस्कृति के सभी नियमों के मुताबिक आचरण करते हुए देखने को मिल जाएंगें। त्रयकालिक संध्या भारतीय वस्त्र यथा-साड़ी, धोती-कुर्ता, माथे पर टीका एवं गले में माला पहनने में किसी भी प्रकार का हर्ज नहीं महसूस करते बल्कि चौगुनी इच्छाशक्ति एवं उत्साह से लबरेज होते हैं।

इस दौर में जब हम अपने बच्चों का नाम अंग्रेजी के नामों जैसे-जो, टाम, निक, हैप्पी इत्यादि रखकर अपने आधुनिक होने का प्रमाण देते हैं वहीं दूसरी ओर जब हम इस ओर नजर दौड़ाते हैं तो देखते हैं कि भारत में स्थायी तौर पर रहने वाले विदेशियों ने अपनी संतानों का नामकरण भी हमारे महापुरुषों,ऋषि-मुनि एवं अर्थबोध वाले नामों को रख रहे हैं।

क्योंकि उन्होंने यह देखा है कि बच्चों में नाम के अनुरूप प्रभाव पड़ता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर अमित ओमवीर भाटी ने अपने थाने के एक वाकिए को उल्लेखित करते हुए फेसबुक पर शेयर किया था कि दो गोरे बच्चे रघुनाथदास व मोहनदास जिनकी लगभग उम्र बारह व दस वर्ष ही रही होगी वे अपनी कोई शिकायत लेकर थाने आए हुए थे उन बच्चों की मातृभाषा हिन्दी थी जिस पर संवाद सुनकर एक झटके को वे अचंभित भी हुए बाद में उन बच्चों से पूछा तो पता चला कि बच्चों के माता-पिता यूरोप महाद्वीप के स्वीडन रहने वाले थे जिन्होंने कई वर्ष पूर्व भारत की नागरिकता ले ली थी।

यह सब संभव हो सका तो पश्चिमी जगत के भारतीय संस्कृति की ओर जीवन की सरसता की आशापूर्ण निगाहों से ऐसे कई उदाहरण हमारे यहां मौजूद हैं।

यहां तक कि हम आप हिन्दी बोलने में शर्म भी महसूस करते हैं और अंग्रेजी में बातचीत कर श्रेष्ठ होने के गर्व से भर जाते हैं क्योंकि हमने इसे बुध्दिमत्ता का पैमाना मान लिया है, जबकि यूरोप का टायलेट साफ करने वाला भी फर्राटेदार अंग्रेजी बोल लेता है यह सब दुर्गति यदि हुई है तो अपने इतिहास के विकृत स्वरूप के कारण उत्पन्न हुए अपराधबोध से ग्रस्त होकर स्वयं में हीनता के भावों के आने से।

इतिहास के विकृत करने के पीछे उन सभी विदेशी ताकतों का सीधा हाथ है जो भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करने के लिए वर्तमान एवं पूर्व के समय में पूर्ण रूप से संकल्पित रहे हैं:

"किसी भी राष्ट्र को नष्ट करने का यदि सबसे अच्छा कोई तरीका है तो वहां की शिक्षा-संस्कृति एवं इतिहास को विकृत कर जनसामान्य में हीनता एवं अपराधबोध का भाव उत्पन्न कर दिया जाए जिससे वहां की संस्कृति की जड़ें क्रमशः सूखती जाएंगी और वह राष्ट्र विनाश को प्राप्त होगा।"

भारतीय संस्कृति के साथ यह सब दीर्घकाल से चल रहा है किन्तु यहां की संस्कृति की जड़ें जमीन की अनंत गहराइयों में हैं जिसके कारण आज भी अपने स्वरूप को बरकरार रखने में सक्षम हैं।

पश्चिम एवं अरब से आने वाले बर्बर आतंकी लुटेरों ने चाहे वे मुगल- तुर्कों एवं अग्रेंजो के रूप में हो उन सभी ने हमारे यहां के शिक्षण संस्थानों यथा-नालंदा एवं तक्षशिला जैसे वैश्विक शिक्षा के मूर्धन्य ख्यातिलब्ध संस्थानो को नष्ट किया क्योंकि उनका उद्देश्य यहां की सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करने का था।

हमारे देश के आध्यात्मिक केन्द्रों, मन्दिरों को क्रमशः नष्ट किया एवं भारत के पारस्परिक बंधुत्व में अपने हिसाब से षड्यंत्रपूर्वक साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति के अनुरूप विभिन्न प्रकार के मतभेदों को दीर्घकालिक समय के हिसाब से उत्पन्न किया जिसमें उलझकर भारतीयता के भाव नष्ट हो जाएं।

अंग्रेजी हूकूमत के दौर में मैकाले ने इसी कुचक्र से हमारे शैक्षणिक वातावरण को कुत्सित भावना से ग्रस्त होकर दूषित किया था।

वर्तमान में इन्ही अवांछनीय हस्ताक्षेपों की परिणति है कि हम आज भी उन्हीं मतभेदों में उलझे हुए हैं जिससे देश की उन्नति एवं अखण्डता को चोट पहुंच रही है।

हम अर्थात भारतीयों में एक अजब सी होड़ इस बात को बढ़ाचढ़ाकर बताने की लगी है कि विदेशों में उच्चतम शिक्षा एवं तकनीकी के साथ-साथ वहां की व्यवस्थाएं सुदृढ़ हैं।

जबकि भारत में ऐसा कुछ नहीं है ऐसी चर्चाओं से देश के शक्तिबोध एवं सौन्दर्यबोध को हानि हम लगातार पहुंचा रहे हैं।

यह सब भी एक प्रकार से विदेशों की तुलना में हीनता का अनुभव करना है, जबकि हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमारा अतीत समृध्दिशाली था और वर्तमान भी है वर्तमान में थोड़ी बहुत विषमताएं हैं जो उपनिवेश एवं विभिन्न षड्यंत्रों के कारण के उत्पन्न हुई हैं।

हमें यह भी देखना होगा कि महाभारत एवं रामायण काल सहित वैदिक ज्ञान पूर्णतः वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक पध्दति पर आधारित है एवं यह समय भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति स्वर्णिम काल था जिन आविस्कारों को हम वर्तमान में उन्नति का श्रेष्ठ उदाहरण मानते हैं, वे सभी आविस्कार हमारे पूर्वजों ने हजारों लाखों वर्षों पहले ही कर लिया था।

महाभारत काल में ब्रम्हास्त्रों का प्रयोग वर्तमान के परमाणु हथियार नहीं तो और क्या हैं? इसी तरह टेलीविजन का आविस्कार संजय द्वारा महाभारत का लाइव टेलीकास्ट आखिर क्या है? रामायण काल में प्रयुक्त होने वाले युध्दक विमान हों या पुष्पक विमान यह सब आज के आयुध एवं यात्राविमान नहीं तो क्या?

ऐसा भी नहीं है कि यह सब काल्पनिक है इन सभी के प्रामाणिक बिन्दु एवं स्त्रोत वर्तमान में विद्यमान है जिस गति से अनुसंधानों में वृद्धि होती जा रही है ठीक उसी द्रुत गति से भारतीय धर्म-दर्शन एवं संस्कृति के प्रति वैश्विक झुकाव बढ़ता जा रहा एवं विश्व यह स्वीकार कर रहा है कि वर्तमान में आधुनिकता के सभी बिन्दु सहस्त्रों वर्ष पूर्व भारत ने पूर्ण कर लिए थे।

हमारे देश में एक चीज और भी है कि जब तक विश्व द्वारा भारत या यहां के मनीषी विद्वानों के बारे में सकारात्मक बात न की जाए तब तक हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं।

आज हम जिन स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानते हैं, यदि स्वामी विवेकानंद विदेश जाकर विश्वधर्म सभा में ख्याति एवं सर्वस्वीकृति न प्राप्त किए होते तो क्या हम आज उन्हें जान पाते?

पता नहीं भारतवर्ष की भूमि में ऐसे कितने विवेकानंद अनाम एवं अपरिचित जिन्दगी बिता चुके हैं, हम उनके ज्ञान एवं दर्शन का लाभ नहीं उठा पाए यह सब हमारे जागृत न होने का ही दुष्परिणाम है।

भारत ने विश्व को ज्ञान के अपरिमित कोष से परिचित करवाया किन्तु कभी भी अपने ज्ञान पर अधिकार नहीं जताया जबकि इसके इतर विदेशों ने उसी ज्ञान को सरल भाषा में कहें तो कापी- पेस्ट कर अपने नाम का पेटेंट करवा लिया।

हमने परमाणु विज्ञान में महर्षि कणाद, खगोल में आर्यभट्ट, वराहमिहिर, शल्यचिकित्सा में जिसे ऑपरेशन कहा जाता है, इसका प्रवर्तन महर्षि सुश्रुत ने किया इसी तरह सभी विधाओं में हमने अर्थात भारतवर्ष ने नेतृत्व करते हुए उत्कृष्टतम ज्ञानकोष को प्रतिपादित किया है।

आधुनिक जगत जिस पर गुमान करता है उसे हमने पाई, शून्य और दशमलव का ज्ञान दिया एवं इसके बदले में हमने किसी भी प्रकार की शर्तों को नहीं बांधा यदि हमने इस पर अपना सर्वाधिकार रखा होता तो विश्व कितनी उन्नति कर पाता यह सर्वविदित है।

हमारे यहां ऐसे अनगिनत ऋषि-महर्षि, वैज्ञानिक हुए जिन्होंने ज्ञान की अनंत पराकाष्ठा को समस्त क्षेत्रों में प्रतिपादित किया किन्तु हम आज भी उनके दर्शन से अनभिज्ञ एवं जानने के प्रति संजीदा नहीं दिखते हैं।

कल तक जिस देववाणी संस्कृत भाषा को उपेक्षित माना जाता रहा है आज जब उसी भाषा पर शोध हुए तो कम्प्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा के रुप में सामने आई।

संस्कृत के शब्दों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि मानव की उत्कृष्ट चेतना की अनुभूति कराती है किन्तु हमने अपनी संस्कृति को अंधानुकरण के मोहपाश में बंधते हुए भुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी इसीलिए हमें सबकुछ तभी याद आता है जब दूसरे उसे श्रेष्ठ मानकर ग्रहण करते हैं।

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा अर्थात भारतवर्ष का ज्ञान सबसे समृध्दिपूर्ण ,वैज्ञानिक, तार्किक, आध्यात्मिक होकर धार्मिक ऐक्यता के वृहद स्वरूप में समाहित था जिसका लोहा सम्पूर्ण जगत मानता था। वर्तमान में हमारे वैज्ञानिकों ने जिस गति से शोध कर विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए अविष्कार किए हैं वह सब विश्व की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है जिससे सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा है।

इसके बावजूद भी हम हीन भावना से ग्रस्त होकर पश्चिमी अन्धानुकरण को प्राथमिकता दे रहे हैं जबकि पश्चिमी गतिविधियां एवं कार्यकलाप वहां के वातावरण के हिसाब से है इसके इतर अपनी भारतीय संस्कृति की विशिष्टता रही है कि हमने श्रेष्ठतम सभ्य आचरणों के माध्यम से विश्व को सर्वोत्कृष्ट मार्ग दिखाकर अपनी परिपाटी निर्मित की है।

वर्तमान में विश्व के सभी शीर्षस्थ संस्थाओं में भारतीयों की अपनी एक अलग पहचान है यदि कहा जाए तो हम आज भी विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं, किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण वाकिया यह है कि देश के ज्यादातर नागरिक आज भी अपने गौरवशाली अतीत के बारे में अनभिज्ञता के साथ-साथ सभ्यता एवं संस्कृति के पुनर्जागरण, संवर्द्धन एवं संरक्षण के प्रति उदासीनता ही दिखला रहे हैं, जबकि हमारी संस्कृति की ओर सम्पूर्ण विश्व आशा भरी निगाहों से देख रहा है एवं हमारा अनुसरण करने के लिए आतुर है।

हम भौतिकवाद की अंधी दौड़ में भ्रमित होकर अपने अस्तित्व को ही खत्म करने के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर सहमत हो रहे हैं, आज हम सब अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं की अपनी हठधर्मिता के माध्यम से हत्या किए जा रहे हैं जिसकी निष्पत्ति आगे के समय में अपने को न पहचान पाने के रुप में होगी क्योंकि सभ्यता एवं संस्कृति का विकास एक व्यक्ति नहीं करता बल्कि यह दीर्घकालीन सतत प्रवाह होने वाली एक लम्बी प्रक्रिया होती है।
किन्तु लगातार हमारा अपने क्षणिक मिथ्या सुख की प्राप्ति एवं आडम्बरपूर्ण दिखावे की वजह से मूलस्वरुप को भूलते जाना भविष्य में खतरे की घण्टी ही है।

क्योंकि जिस देश के नागरिकों ने अपनी सभ्यताओं की जड़ों को काटा है,उनका नामोनिशान नहीं रह गया है।
रोम और यूनान रूपी देश जिनका केवल अब नाम रह गया है वे इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। आज हमारे घरों से सामान्य जीवनशैली के मूल सिध्दांतों में विशेष महत्व रखने वाले तुलसी का पौधा, त्रयकालिक भजन संध्या एवं बड़े-बुजुर्गों के मुखारविंद से सुनी जाने वाली पौराणिक एवं ऐतिहासिक कहानियां सुनने को नहीं मिलती जिनके सुनने से बच्चे में बचपन से शौर्य एवं अपनी संस्कृति के प्रति जिज्ञासु होने की प्रवृत्ति के साथ-साथ चारित्रिक एवं मानसिक श्रेष्ठता की भावना पुष्ट होती थी वर्तमान में इसका स्थान मोबाइल फोन में मनोरंजन वीडियो, कार्टून एवं फिल्मी गानों ने ले लिया है।

वर्तमान की आवश्यकता यही है कि जीजाबाई जैसी महान माँ हो जिससे प्रत्येक घर में वीर शिवाजी जैसा पुत्र हो जो अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर सके!!

हमारे पास अभी भी समय है कि इस पर हम सभी विचार-विमर्श करें एवं षड्यंत्रपूर्वक हमारे दृष्टिकोणों में घर कर गई हीनता एवं इतिहास के विकृतस्वरुप के कारण अपराधबोध की भावना से ऊपर उठकर स्वचिन्तन कर भारत के गौरव को विश्वपटल पर पुनर्स्थापित करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करें!!

(इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया डॉट कॉम का इससे कोई संबंध या लेना-देना नहीं है)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जन्मकुंडली से जानिए कब होता है सेहत को खतरा, मारकेश व षष्ठेश से रहें सावधान