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अब एडोनावायरस की दस्तक नई चिंता का सबब

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ऋतुपर्ण दवे

कोरोना की रफ्तार सुस्त पड़ते ही एक नए एडोनावायरस की धमक ने एक बार फिर चिंता बढ़ा दी है। इसका अब तक ज्यादा असर केवल प. बंगाल में ही दिखा है। लेकिन पुणे और दूसरी जगहों से ऐसे ही लक्षणों के मरीज मिलना मेडिकल विशेषज्ञों के लिए नई परेशानी का सबब बन सकता है। हालांकि यह सच है कि हर वक्त किसी न किसी वायरस के साथ जीना पड़ता है जो आम है, लेकिन जब ये खतरनाक रूप या महामारी में तब्दील होकर घातक हो जाते हैं तो स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन जाते हैं। 
 
हमने कोविड के दौरान वायरस के ऐसे ही रूप को देखा जिसने सौ साल में आने वाली महामारी बनकर कैसी तबाही मचाई। आगे चलकर यह कितना फैलेगा और कैसे रोक पाएंगे, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। लेकिन जैसा कि अमूमन हर संक्रामक बीमारी में होता है कि बचाव ही सुरक्षा है वाला तरीका अपनाना होगा। इसका असर सबसे ज्यादा बच्चों में पड़ता है, जिसकी एक खास वजह भी सामने आई लेकिन सभी उम्र के लोगों को भी प्रभावित करता है। 
 
हां, जद में छोटे-छोटे बच्चे इसलिए आसानी से आते हैं क्योंकि वो खुद दूसरे बड़े या छोटे के संपर्क में रहते हैं और मुंह में कुछ भी डाल लेना तथा हाथ न धोना ज्यादा तेज असर करता है। जन्म के समय कम वजन और हृदय रोग के पीड़ित भी जल्द शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा सांस की बीमारी वाले बच्चों पर भी एडोनावायरस का तेज असर देखा गया है। वैसे भी बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है इसीलिए उनके लिए घातक होता सकता है। 
 
एडोनावायरस के लक्षण भी कोरोना से काफी कुछ मिलते हैं लेकिन सुकून की बात है कि यह उसका वैरिएंट नहीं है। इसे वायरल फ्लू की तरह माना जाता है जिसका कोई विशेष इलाज नहीं है। जरा सी सतर्कता और सावधानी से इससे डरे बिना घर पर भी इसके हल्के लक्षणों का कोरोना की तरह इलाज किया जा सकता है। जीवन रक्षक घोल यानी ओआरएस और अच्छे, ताजे व स्वस्थ आहार के साथ इसके इलाज की सलाह दी जाती है। लेकिन सतर्कता ज्यादा जरूरी है। 
 
जब तीन दिनों तक बुखार न उतरे और रोगी में सुधार न दिखे, बल्कि जल्दी-जल्दी सांस लेने लगे, भूख भी कम हो जाए, पेशाब भी रोजाना की तुलना में कम लगे तो जरूर चिंता की बात है। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए मास्क बेहतर बचाव का साधन है। चिकित्सक भी मास्क के अलावा स्वच्छता संबंधी वो सारे उपाय के लिए कहते हैं जो कि कोविड के दौरान जरूरी थे। जैसे- बार-बार हाथ धोना, संक्रमण की स्थिति में दूरी बनाए रखना और प्रभावित होने पर क्वारंटीन होना। 
 
अब तक लक्षणों से जो सामने आया है उसमें 3 दिन से ज्यादा समय तक बुखार व खांसी चलते रहना, गले में खराश, नाक बहना, उल्टी, दस्त, पेट दर्द, तेज-तेज सांस लेना, गुलाबी आंखें हो जाना, कान के संक्रमण यानी ओटिटिस मीडिया जिसमें कान के परदे के पीछे हवा वाले स्थान जो कान के बीचों बीच होता है में संक्रमण होना, सूजी हुई लसीका ग्रंथियां, सीने में ठंड यानी ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया भी एडोनावायरस का कारण हो सकता है। इसका असर 3 से 5 दिनों तक दिखता है लेकिन दो सप्ताह तक भी मरीज बीमार रह सकता है। 
 
ऐसे में लगातार खांसी या किसी भी संभावित लक्षण की दशा में तुरंत चिकित्सक की सलाह लेना जरूरी है। एडोनावायरस संक्रमण के इलाज के लिए कोई सटीक एंटीवायरल दवा भी अब तक नहीं होने से इसको रोकने के लिए आम दवाएं ही दी जाती हैं। लेकिन गंभीरता की स्थिति में चिकित्सक तेज असरकारक दवाएं लक्षण के हिसाब से देते हैं। ऐसे में लक्षणों की अनदेखी भारी पड़ सकती है।
 
अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों की श्रृंखला में चौथे क्रम पर शुमार क्लीवलैंड क्लिनिक जिसे कोरोनरी धमनी बाईपास सर्जरी और पहले चेहरा प्रत्यारोपण करने का श्रेय भी प्राप्त है के अनुसार एडोनावायरस एक सामान्य वायरस है, जो कई प्रकार के सर्दी या फ्लू जैसे संक्रमण का कारण बनते हैं।

यह मध्यम आकार का एक अल्प विकसित वायरस है जो कई तरह के संक्रमण पैदा कर सकता है। इसमें एक आइकोसाहेड्रल न्यूक्लियोकैप्सिड यानी वायरल प्रोटीन का कोट है, जिससे जीनोम यानी आनुवांशिक संरचना का पता लग सकता है। इससे हम पता लगा सकते हैं कि आखिर उसका कैसा व्यवहार है?  
 
जब तक यह जानकारी नहीं होगी तब तक जांच, इलाज, टीका किसी की खोज नहीं हो सकती है। शोधकर्ताओं ने लगभग 50 ऐसे एडोनावायरस के वैरिएंट पहचाने हैं जो मनुष्यों को संक्रमित कर सकते है। उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि इस वायरस का संक्रमण यूं तो पूरे वर्ष होता है जो सर्दी और बसंत के दौरान ज्यादा होता है। 
लेकिन प. बंगाल में ही यह क्यों बढ़ रहा है? जबकि वहां का मौसम दूसरे राज्यों के मुकाबले गर्म होता है। इस पर अभी जानकारियां जुटाई जा रही हैं। 
 
इस बीच इसी 19 फरवरी को 6 महीने के लड़के व ढ़ाई साल की लड़की के अलावा 23 फरवरी को 13 साली की एक बच्ची की मौत के अलावा 11 अन्य शिशुओं की गैर आधिकारिक मौतों से वहां का स्वास्थ्य अमला हाई अलर्ट पर है। जिस तरह से शिशु रोगियों की संख्या और अस्पताल के शिशुवार्ड में मरीजों की भीड़ बढ़ रही है, वह चिंताजनक है। 
 
हालांकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की राष्ट्रीय हैजा और आंत्र रोग संस्थान में प्रभावित मरीजों के सैंपल भेजे गए हैं, जिनकी रिपोर्ट के बाद ही काफी कुछ साफ हो पाएगा। लेकिन प. बंगाल के धरातल पर इस वायरस को लेकर जो स्थितियां बन रही हैं, उससे समय रहते ही चेत जाने में बुराई क्या है? कोरोना के दौरान जिस तरह के हालातों का सामना कर देश वापस उठ खड़ा हुआ है, ऐसे में यदि कोई चुनौती जो बनती दिख रही है उससे चेतने और निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहना ही बड़ा बचाव दिखता है। 
 
वैसे भी कोविड-19 ने दुनिया को जो सीख दी है उसके बाद भी अगर लोग खुद भी आंखें मूंदकर लापरवाही बरतते हैं, तो सरकार कितना कर पाएगी। सरकार को भी जल्द ही कम से कम छोटे-छोटे स्कूली बच्चों के लिए खास गाइड लाइन जारी करनी चाहिए। यदि मास्क से ही किसी संभावित बड़ी मुसीबत को चुनौती दी जा सकती है, इसमें बुराई ही क्या है? एक बार फिर मास्क ही एडोनावायरस खातिर रामबाण बन जाए तो इससे सस्ता और अच्छा क्या हो सकता है।

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