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life in the times of corona : आपदा में आशीर्वाद, चहकती चिड़ियों का कलरव

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डॉ. किसलय पंचोली

life in the times of corona

कहावतें आसमान से नहीं टपकती। वे जिंदगी के अनुभवों से आसवित होती हैं। 'ए ब्लेसिंग इन डिसगाइज'/'अप्रत्यक्ष कृपादान'/ या कहूं 'आपदा में आशीर्वाद' को हम इन दिनों लॉकडाउन के समय में बखूबी महसूस कर सकते हैं। 
 
विशेषकर सुबह-सुबह। अभी जब मैं बगीचे के लान में बैठी यह पंक्तियां लिख रही हूं और मानव चलित गाड़ियां और लाउडस्पीकरों से ध्वनि प्रदूषण नगण्य है। मैं कम से कम 10-15 तरह के पक्षियों के कलरव से प्रसन्न और रोमांचित हो रही हूं। 
 
जैसे, चिं चीं चिं चीं...., ट्यु ट्यु ट्यु ट्यु.....,  क्यें क्यें क्यें क्यें….., च्यून चिं च्यून च्यून चिं…., कांव कांव कांव कांव…..,चींss चींss चींss चींss…, ह्वोक ह्वोक ह्वोक ह्वोक….., कों को कों कों….,  टिर्र  टिर्र टिर्र  टिर्र…..,त्युं त्युं त्युं  त्युं….  मोssओ मोssओ….आदि। 
 
सोच रही हूं कहां थे अब तक ये पक्षी? किस जगह सहमे बैठे थे? किधर दुबके पड़े थे? यकायक कैसे निकल आए? 
 
और कितना शहद घोल रहे हैं वातावरण में ! मानो उनका प्राकृतिक संगीत समारोह चल रहा हो। एक से एक तान। एक से एक जुगलबंदी। किसे अधिक मधुर कहूं किसे कम कहना मुश्किल है।
 
मुझे लगता है हमने दो और चार पहियों पर बेतहाशा दौड़ते हुए पक्षियों के जीवन से कुहकने को सहमा दिया है। हम उनके आवासों के महा दुश्मन बने बैठे हैं। वे हमारे शोर के अतिरेक से डर डर कर जीने को अभिशप्त हैं।
 
मुझे याद आया कि बारीक से बारीक ध्वनि को अधिकतम सुन पाने की अनुभूति हमें तब होती है जब हम कान नाक गला विशेषज्ञ डाक्टर से अपने कान में जमा अतिरिक्त वेक्स निकलवा कर घर आते हैं। तब चुन्नी की हलकी से हलकी सरसराहट हो या चम्मच कड़छी का चलना हर ध्वनि और आवाज हमें न सिर्फ स्पष्ट सुनाई देती है अपितु कर्ण प्रिय भी लगती है।
 
 हमने ही हमारी प्यारी पृथ्वी के कानों में हार्न की कर्कश ध्वनि का वेक्स खुद ही बाहर से कूढ़ा है। क्या हमें आज कोराना के बहाने उत्तर कोरोना समय में अनावश्यक हार्न और लाउड स्पीकर नहीं बजाने, धीमी आवाज में बोलने का प्रण नहीं लेना चाहिए?
 
काश कि हम ऐसा करें। पक्षियों का सुमधुर कलरव हमसे यही कह रहा है। आमीन।
 

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