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life in the times of corona : क्या सुख तो क्या दु:ख....

हमें फॉलो करें life in the times of corona : क्या सुख तो क्या दु:ख....

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तनु पुरोहित 
 
आज सवेरे यूं ही कुछ 5.15 के आस-पास आंख खुली। ध्यान गया तो बाहर चिड़िया के चहचहाने की आवाज़ सुनाई दी। बालकनी में जा कर खड़ा हो गया, बहुत देर तक आसमान में ही ताकता रहा, अंधेरा ही था, बादल भी थे जो बस बरसने को तैयार ही थे। बस ऐसा लग रहा था कि अगर आंखे बंद कर के महसूस करने की कोशिश करूँ तो किसी पहाड़ी के आस-पास ही खड़ा हूँ, ठंडी ठंडी हवा चेहरे को छूते हुए मदहोश कर रही हो। 
 
वैसे भी आजकल नींद का समय गड़बड़ाया हुआ ही है, आंखों में नींद भरी तो थी पर इस बाहर के माहौल में खड़े रहना ज्यादा सुहा रहा था। सोचा मोबाइल ले कर आता हूँ, छोटा-सा वीडियो रिकॉर्ड कर लूंगा, इंस्टाग्राम पोस्ट बन जाएगी आज के लिए। पलटने ही लगा था, कि नीचे सड़क पर नज़र गयी। लाइन से लोगों का एक जत्था जा रहा , किसी ने बैग कंधे पर लटका रखा था, किसी ने कमर पर, कोई कंधे या सिर पर चढ़ा के सामान ढोते हुआ बस चला जा रहा है।
 
 खाली हाथ तो कोई न था। हाँ, सबके चेहरे पर रूमाल बंधा हुआ और कदम ताल में भी सोशल डिस्टनसिंग दिख रही थी। यही कुछ 8-10 मिनट तक सड़क की और देखता रहा। पहले नज़र जब आसमान में थी तब एक अलग ही ज़ोन में जा चुका था, शरीर में चुस्ती महसूस हो रही थी, पर जब से सड़क का दृश्य देखना शुरू किया, ऐसा लगा हाथ-पैर ठंडे पड़ने हो। 
 
अंदाजे लगाने लगा कि न जाने कहाँ से चल के आ रहे होंगे, न जाने कहाँ को जाना होगा। इतने दिनों से कहाँ थे ये लोग, अब जब लॉक डाउन हुए 1 महीना होने आया फिर भी इन्हें कोई ठिकाना नहीं मिला, पता नहीं कब से पैदल ही चले जा रहे....वगैरह वगैरह । 
 
करीब आधे घंटे तक वही बालकनी में खड़े रहा , और इसी ख़यालों में उलझा रहा। वो तो बारिश शुरू हुई तो कुछ बूंदे चेहरे पर आ कर गिरी, तब कही बाहर निकल पाया। इतनी देर सबको जाते हुए ताकते रहा पर एक बार भी हिम्मत नही हुई कि इन लोगो का इस तरह भटकते हुए कोई तस्वीर या वीडियो निकाल सकूँ। निकाल भी लेता, तो आखिर क्या करता ?? जो लोग उनको अगर कोई शरण दे सके वहां तक पहुँच जाए, दुआ करूँगा वही काफी होगा।
 
वैसे देखा जाए तो कोई इतना भी मुश्किल नही होना चाहिए। कल ही एक खबर पड़ी थी, जिसमे राजस्थान के पलसाना कस्बे के एक स्कूल में कुछ प्रवासी क्वारंटाइन किये गए। इस दौरान उन्होंने उस स्कूल का काया-पलट ही कर डाला। उनके लिए किये गए इंतेज़ाम से खुश होते उन्होंने पूरी बिल्डिंग की साफ-सफाई करने के साथ रंगाई-पुताई भी कर डाली।
 
एक और खबर पढ़ी थी कहीँ कि एक मजदूर दंपति ने जहाँ वो रुके हुए थे, आस पास पानी की किल्लत को देखा तो कुआँ ही खोद डाला।
 
अंग्रेजी में कहते है ना Blessing in Disguise !!! शायद इस समय उसी की जरूरत हैं। मुश्किल में हमेशा गुंजाइश होती है। बस कोई होना चाहिए जो उस गुंजाइश की राह दिखा दे। फिलहाल स्थिति ऐसी है कि कोई किसी तरह की लक्ज़री नही चाहेगा, बस दो वक्त की रोटी मिलती रहे। जगह की कोई कमी नही होगी, जहां प्रवासियों को ठहराया नही जा सकता। ठिकाने तय करना ही काफी होगा, बाकी जो काया-पलट सालों में नही हो पाए, वो कुछ दिनों में हो सकते है। बस वो कैनवास ही दिखाना है, ब्रश और पेंट का भी इंतेज़ाम हो जाएगा, तस्वीर उभरते देर नही लगेगी।

 
आलेख -चित्र सौजन्य : तनु पुरोहित 

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