Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इस देश में 'गांधी' के बाद कुछ भी ‘ओरिजिनल’ नहीं घटा

हमें फॉलो करें Mahatma Gandhi
webdunia

नवीन रांगियाल

'महात्‍मा गांधी' पर लिखने के बारे में सोचता हूं तो जाहिर है उनके बारे में दशकों से चले आ रहे घिसे-पिटे विचार फ्लैशबैक की जेहन में कौंध जाते हैं। देश की आजादी से लेकर अहिंसावाद, असहयोग आंदोलन, आजादी की लड़ाई और सत्य के प्रयोग... यही सब गांधी के चिंतन के साथ आ जाते हैं।

इस दौर में गांधी पर लिखना-सोचना कुछ मुश्‍किल हो सकता है। क्‍योंकि गांधी पर हमारे पुरखों ने कहने और लिखने के लिए कुछ भी शेष नहीं छोड़ा है।

फि‍र भी गांधी वो व्‍यापक दृष्‍ट‍ि है जिसके बारे में बेहद इमानदारी से चिंतन करने पर उनके बारे में कुछ नया लिखा और कहा जा सकता है। ठीक उसी तरह जैसा हम उन्हें बेहद ईमानदारी के साथ जानते- बूझते और समझते हैं।

यह वो गांधी तो बिल्कुल नहीं होगा, जो सरकारी दफ्तरों की दीवारों पर तस्‍वीरों में दर्ज है। ये वो गांधी भी बिल्कुल नहीं होगा जो चौराहों, चबूतरों पर बुत की तरह खड़ा कर दिया गया है। और ये वो गांधी तो कतई नहीं होगा जो सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में दर्ज कर दिया गया है।

...तो फिर चौराहों और सरकारी दफ्तरों में सौम्य मुस्कान लिए दशकों से बुत बनकर खड़े गांधी आज के दौर में क्या मायने रखते हैं? वो आज क्या है? उसकी प्रासंगिकता क्या है?

बात एक फि‍ल्‍म से शुरू करते हैं, साल 2009 में एक फिल्म आई थी 'थ्री इडियट्स'। इस फिल्म का एक किरदार अति धार्मिक और अपनी कामयाबी के लिए गंडा-ताबीज और परीक्षा में नकल पर निर्भर रहने वाला था। हताशा के दौर में यह किरदार इमारत से कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश करता है, लेकिन भाग्य से बच जाता है। कुछ वक्त तक अस्पताल में रहने के बाद जब वो लौटता है तो उसका ट्रांसफॉर्मेशन हो चुका होता है। फिर नौकरी के लिए एक इंटरव्यू में वो साक्षात्कार लेने वालों के सामने अपनी सारी खामियों और गलतियों के बारे में खुलकर बात करता है। अपने आउटस्पोकन बिहेवियर के चलते इंटरव्यू कमेटी के सदस्य उसे नौकरी नहीं देने की बात करते हैं- लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि अगर वो अपने इस व्यवहार को थोड़ा काबू में रखे और उसमें नर्मी बरते तो उसे नौकरी पर रखा जा सकता है। इस शर्त पर उसका जवाब होता है,

लंबे वक्त के बाद बड़ी मुश्किल से उसमें यह एटीट्यूड आया है, मैं अपना एटीट्यूड रखता हूं, आपको आपकी नौकरी मुबारक

जब-जब मैं गांधी के बारे में सोचता हूं, मुझे एटीट्यूड का यही भाव याद आता है। मुझे लगता है गांधी वही एटीट्यूड है। सच बोलने का एटीट्यूड, अंग्रेजों को सहयोग नहीं करने का एटीट्यूड और अहिंसा का एटीट्यूड। दरअसल, बहुत मुश्किल से देश को यह एटीट्यूड हासिल हुआ था।

गांधी आज: अगर इस पर गौर करें तो मैं यह कहना चाहूंगा कि गांधी हमारे भीतर बाय डिफॉल्ट मौजूद है। गांधी भारतीय मानुष प्रवृति का सहज भाव है। बस, हमने उसे जाने या अनजाने में नज़रअंदाज कर रखा हैं। आज के दौर में हम गांधी को हमारे भीतर ‘एक्सप्लोर’ नहीं कर पा रहे हैं। जबकि असल में हमें उन्हें अपने ही अंदर देखने और महसूस करने की जरूरत है। जैसे खुद गांधी ने अपने भीतर गांधी को पैदा किया, अपने भीतर ‘गांधी भाव’ को एक्सप्लोर किया। इस एटीट्यूड को पैदा किया।

हालांकि खुद गांधी के लिए गांधी बनना बेहद मुश्किल था। एक पूरी प्रक्रिया के तहत गांधी खुद अपने आप से लड़े, अपनी आदतों, अपने भीतर छुपे अवगुणों से, अपनी सनक से लड़े-भिड़े और उन्हें दूर किया। जब हम गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़ेंगे तो हमें मिलेगा कि किस तरह बचपन से लेकर जवानी तक वे अपने भीतर की मानवीय प्रवृत्तियों और बुराइयों से लड़ते रहे, उठे, गिरे फिर लड़खड़ाए और फिर खड़े हुए।

दरअसल, गांधी होना एक पूरी प्रक्रिया है, एक पूरा प्रोसेस… गांधी बनने की इस प्रक्रिया में एक पूरा जीवन खप सकता है। इस प्रक्रिया के बाद ही हमारे सामने एक मोहनदास करमचंद गांधी खड़ा नज़र आएगा। महात्मा खड़ा नज़र आएगा। और अंत में एक बापू खड़ा नज़र आएगा। इस दौर में, यानी महात्मा गांधी के होने के इतने सालों बाद पैदा होकर हम खुशकिस्मत थे कि हमें एक गांधी विरासत में मिले थे। एक ब्लू प्रिंट के तौर पर गांधी पहले से हमारे पास मौजूद थे। इसलिए हमें गांधी को अपनाने के लिए पूरा जीवन खपाने की, उस पूरी प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत नहीं थी, लेकिन हम बावजूद इस सहूलियत के इस ब्लू प्रिंट का इस्तेमाल नहीं कर सके। या शायद नहीं करना चाहते। हम गांधी नहीं बनना चाहते। हम अपने भीतर पहले से मौजूद गांधी को एक्सप्लोर नहीं करना चाहते, क्योंकि हम सोचते हैं कि गांधी हमारे लिए, इस दौर, इस समय के लिए और हमारे जीवन के लिए कतई प्रासंगिक नहीं है। जबकि ठीक इसके उलट गांधी पहले से हमारे भीतर कम या ज्यादा रूप में मौजूद है, जिसे हम अपनी बंद आंखों से देखते रहे हैं। हम मानें या ना मानें, चाहें या ना चाहें, गांधी नाम का विचार आगे आने वाले अलग-अलग समय में असर करता रहेगा। सामाजिक और राजनीतिक मोर्चों पर दम भरता रहेगा। अगर कोई पूछे कि आज गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? तो मैं कहूंगा गांधी के नहीं होने के सात दशकों बाद भी उन्हें बिसराया नहीं जा सकता। यू मे लव हिम, यू मे हेट हिम, बट यू कैन नॉट इग्नौर हिम।

हमें आभार मानना चाहिए कि गांधी हमारे पहले पैदा हुए और मर गए। क्योंकि गांधी के बाद हमें सिर्फ गांधी को चुनना था। उन्हें चूज़ करना था। लेकिन गांधी के पास यह सहूलियत भी नहीं थी, उन्हें तो पता ही नहीं था कि उन्हें गांधी होना है। हमारे सामने गांधी होने का मार्ग अभी भी खुला पड़ा है।

जो लोग कहते हैं कि आज गांधी का क्या महत्व है? वो क्यों जरूरी हैं? उनके लिए जवाब है कि आज गांधी इसलिए प्रासंगिक है, क्योंकि देश में इस विचार का कोई विकल्प ही नहीं है। अगर सत्याग्रह का कोई विकल्प हो तो बताइये, अगर अहिंसा का कोई विकल्प हो तो बताइये? गांधी जी के ये सारे प्रयोग और सिद्धांत आखिरी प्रयोग और सिद्धांत थे।

समाजवादी और बुद्धिजीवी किशन पटनायक ने कहा थाइस देश में गांधी के बाद कुछ भी ओरिजिनल हुआ ही नहीं है

उनका सत्याग्रह, उनके आंदोलन का तरीका, उनके सोचने का तरीका सबकुछ नया और अनोखा था। उन्होंने वो सारे तरीके और प्रयोग किए जो राष्ट्र की समृद्धि के लिए हो सकते थे। उन्होंने ऐसे प्रयोग किए जो इतिहास के लिए गर्व का विषय हों। लेकिन इतिहास से चिपके नहीं रहे। राजनीतिक विचार पर, सामाजिक प्रयोग के स्तर पर और धार्मिक स्तर पर हमने क्या नया किया है? कुछ भी अब तक नया नहीं हो सका है गांधी के बाद। जो कुछ भी किया गया है वो गांधी का किया हुआ है। तो गांधी अप्रासंगिक कैसे हो गए? हम आज भी गांधी के उन्हीं सारे सिद्धांतों पर गर्व महसूस करते हैं, और उन्हीं को तोड़-मरोड़कर गांधी का नाम लिए बगैर उनका इस्तेमाल करते रहे हैं, क्योंकि हमारे पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है, गांधी के बाद देश में कुछ नया घटा ही नहीं है।

गांधी जी ने अपनी किताब हिंद स्वराज में कहा कि किसी भी सुधार के लिए हिंदुस्तानियों में असंतोष होना जरूरी है। यह असंतोष बहुत जरूरी चीज है, जब तक आदमी अपनी वर्तमान हालत में खुश रहता है, तब तक उसका कुछ नहीं हो सकता। असंतोष से ही अशांति होगी। उसी असंतोष और अशांति से कई लोग मरे। कई बर्बाद हुए। कई जेल गए और उसका नतीजा यह था कि देश को आजादी मिली। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में कहीं कोई असंतोष नहीं है, हर आदमी अपनी मौजूदा स्थिति में खुश है। और जब तक हम संतुष्ट हैं, खुश हैं, हमारा कुछ नहीं हो सकता। कोई बदलाव नहीं हो सकता, क्योंकि बदलाव के लिए एक गांधी चाहिए और गांधी होने के लिए एक असंतोष होना चाहिए, जीवन में एक अनरेस्ट होना जरूरी है।

आप इसे माने या चाहे न माने, चाहे बाहर की हो, या भीतर की कोई चीज, उसे हासिल करने के लिए एक अनरेस्‍ट, एक हासिल करने की छटपटाहट होना चाहिए, ठीक वैसी ही जैसी गांधी के पास थी, इस देश की आजादी के लिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

महात्मा गांधी : बापू के अनमोल विचार आपका जीवन बदल देंगे