ठुकराओ अब कि प्यार करो...शाहिद कबीर की यह ग़ज़ल कई लोगों को कई अन्यान्य कारणों से मुंह ज़ुबानी है। एक तो इसे जगजीत सिंह ने अपनी मखमली आवाज़ में गाया है, दूसरा कारण, इसकी आगे की पंक्ति है, जिसे वे सब जानते हैं, जो इस ग़ज़ल को जानते हैं।
व्यक्तिगत तौर पर न लें
इस ग़ज़ल को यहां लिखने का उद्देश्य यह है कि कोई आपको ठुकराता है या प्यार करता है, उसे आप कभी भी व्यक्तिगत तौर पर न लें। कोई आपको चाहता है या नहीं चाहता, यह पूरी तरह उसकी व्यक्तिगत इच्छा या उससे भी बढ़कर उसकी अपनी मर्ज़ी है। आप किसी पर ज़ोर-ज़बर्दस्ती नहीं कर सकते कि वो आपको पसंद करे ही।
तो आप क्या कर सकते हैं कि आपको लोग पसंद करें? अपने आपमें बदलाव लेकर आएं। ठुकराए जाने की भावना किसी दूसरी दुनिया से नहीं आती है, यह आपके भीतर ही होती है जो परावर्तित होती है। इस मर्ज़ का इलाज भी आपके ही पास है। यदि आपको लगता है कि फलां-फलां लोग आपसे अच्छे से व्यवहार करें, यदि वे आपको पसंद नहीं करते हैं तो पसंद करने लगें तो सबसे पहले अपने दिल पर हाथ रखकर सच-सच बताइए क्या आप भी उन्हें पसंद या प्यार करते हैं, जिनसे आपको प्यार की उम्मीद है?
सामाजिक ताना-बाना
इस सच को आप झूठला नहीं सकते कि जो लोग आपको पसंद नहीं करते, उन्हें आप भी पसंद नहीं कर रहे होते हैं। आप जान सकते हैं कि आपका ही परावर्तन या रिफ़्लैकशन है, जो आपके सामने आता है। सामाजिक ताना-बाना या सामाजिक तौर-तरीका आपको अनुमति नहीं देता इसलिए आप ऐसा दिखाते हैं, कि आप उन्हें पसंद करते हैं या उन लोगों के साथ कुछ औपचारिकताएं हैं, जो आप सालों से याकि अपने बचपन से ही निभाते आ रहे हैं। इस वजह से आपके मन पर हमेशा बोझ रहता है। ऐसे रिश्तों को निभाते हुए उन्हें भी ऐसा ही लगता होगा। आप अपनी ओर से उन तक यह बात लेकर पहुँच नहीं पाते, उन्हें बता नहीं पाते।
शून्य अपेक्षाएं
जब आप उनके प्रति अपनी भावनाओं को स्वीकार कर लेते हैं तो आप उनसे अपेक्षाएं रखना या तो बंद कर देते हैं या आपकी उनसे अपेक्षाएं शून्य हो जाती हैं। दूसरा आपका उनसे कभी साबका भी पड़ता है या वास्ता भी रखना होता है तो वह केवल औपचारिक आदान-प्रदान होता है और कुछ भी आप अपने दिल पर नहीं लगा बैठते।
यदि आप उनसे इस तरह व्यवहार नहीं कर पाते हैं तो उसे भी स्वीकारिए। यदि आप गुस्से में आकर व्यवहार करते हैं तो उसे भी स्वीकारिए। यदि आप ग्लानि या शर्म-हया के लिहाज़ से व्यवहार करते हैं तो वह भी स्वीकारिए। आपको लगता है कि आपको चोट पहुंची है, स्वीकार कीजिए। यदि आप उनसे विद्वेष करते हैं या हमेशा उन्हें परखते रहते हैं तो उसे भी स्वीकारिए। अपनी अच्छी-बुरी हर भावना स्वीकार कीजिए। ऐसा केवल अपनी ज़रूरत के लिए मत कीजिए बल्कि यह समझने की कोशिश कीजिए कि जैसे आप किन्हीं लोगों को पसंद नहीं करते हैं, वैसे वे भी आपको पसंद नहीं करते होंगे।
स्वीकार कीजिए
इसके बाद यह स्वीकार कीजिए कि आप किसे पसंद करते हैं, न केवल व्यक्तियों में से बल्कि पशु-पक्षी, अन्य प्राणी, पेड़-पौधे, बच्चे...आपको क्या पसंद आता है? अब अपने आपसे पूछिए क्या आप उन्हें निःस्वार्थ भाव से चाहते हैं या इस चाह के पीछे कोई ख़ास वजह है? पूछिए क्या वे भी एकदम सही, परफ़ेक्ट हैं? या आप उन्हें उनकी कमियों के साथ स्वीकार करते हैं या उनकी कमियों से ज़्यादा आपका ध्यान उनकी ख़ूबियों की ओर जाता है?
यह पूरी कवायद करने का उद्देश्य इतना है कि आप सिक्के के दूसरे पहलू को भी जानें। न केवल अपने दूसरे पक्ष को समझें, बल्कि आपके चेहरे के पीछे कौन-सा चेहरा छिपा है, और आप दूसरों को कौन-सा चेहरा दिखाते हैं, दोनों चेहरों को खुद पहचानें। साहिर लुधियानवी सत्तर के दशक में लिखकर गए हैं एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग...सुनिए- समझिए उसी गीत से- जीने के लिए सब कुछ भुला लेते हैं लोग...