बात जब भी महिलाओं की सुरक्षा की आती है तब राज्य कोई हो, देश कोई भी हो.... हम सब एक कदम आगे बढ़ाकर फिर 100 कदम पीछे चले जाते हैं जब कोई एक घटना हमारे तमाम सुरक्षा दावों पर झन्नाट तमाचे की तरह पड़ती है...
सफाई में नंबर वन का लगातार खिताब हासिल करने वाले इंदौर की यह 'पिकनिक घटना' दहला देगी जब आप इसके डिटेल्स पर गौर करेंगे....साथ की सहेली पर भरोसा, अजनबी पर विश्वास, घर में संवाद का अभाव और स्वयं पर अति आत्मविश्वास.... कुछ भी हो सकते हैं कारण...सवाल यह है कि हम किस दिशा की तरफ बढ़ रहे हैं... अपने बच्चों को विश्वास में लेना हम कब शुरू करेंगे... उनके मित्रों की पड़ताल, उनकी हरकतों पर नजर कब रखेंगे....
ऐसा क्या हुआ है कि हम परिवार की परिभाषा को ही विस्मृत कर बैठे हैं। जब दोस्त परिवार बनते हैं और परिवार दोस्त बनता है तब जाकर आप आश्वस्त हो सकते हैं कि हमारे बच्चे सुरक्षित हैं...पीड़ित हो या आरोपी... दोनों के ही परिवार हैं... लेकिन क्या वहां संवाद और संस्कार की वह स्थिति थी जो आज की महती जरूरत है? यकीनन नहीं...
बात शहर की... शहर में ना जाने कितने चौराहों पर न जाने कितने संदिग्ध रोज टकराते हैं मगर क्या हम पहल करते हैं पुलिस या प्रशासन तक अपनी बात पंहुचाने की... क्या पुलिस सख्ती से अपने दायित्व निभा रही है... ? स्वच्छता को लेकर मुहिम चलाने वाले इंदौर के मानस में पैठ बनाती गंदगी को साफ करने का जिम्मा कौन लेगा?
सोच, विचार, संस्कार, व्यवहार और व्यक्तित्व में शुचिता का सवाल सिर्फ एक शहर का नहीं है यह हर उस व्यक्ति का है जो इस समाज का अंग है....
हमें अपने बच्चों से बात करने का अभियान आरंभ करना चाहिए... आखिर कुंठा और विकृति का यह अंजाम सामने आने पर ही हम क्यों जागते हैं.... सवाल हर बच्चे के हर अभिभावक से है... सवाल अब जवाब नहीं कार्यवाही चाहता है... तुरंत और तत्काल ... वरना एक खूबसूरत शहर को दीमक लगने से कोई नहीं बचा सकेगा...