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निकाय चुनाव तय करेंगे मप्र के कई दिग्गज नेताओं का भविष्य

राजवाड़ा 2 रेसीडेंसी

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अरविन्द तिवारी

बात यहां से शुरू करते हैं : 'सरकार' चाहते हैं कि नगरीय निकाय के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हों, जबकि संगठन का जोर इस बात पर है कि चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होना चाहिए। हालांकि संगठन के दबाव में सरकार ने फिलहाल तो प्रत्यक्ष चुनाव का अध्यादेश राजभवन से वापस बुलवा लिया है और अप्रत्यक्ष चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन संगठन अड़ा हुआ है कि चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से हो। सरकार के साथ मंत्री और विधायक हैं तो संगठन के साथ पार्टी के दिग्गज। देखते हैं पलड़ा किसके पक्ष में झुकता है, लेकिन संगठन ने एक बार तो अपना वजन दिखा ही दिया। 
 
'सरकार' की प्राथमिकता अब चुनाव : ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार के पास अब चुनाव कराने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा है। ये चुनाव 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले सरकार के लिए लिटमस टेस्ट है। इन चुनावों के नतीजे प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं के राजनीतिक भविष्य का फैसला कर देंगे। यही कारण है कि 'सरकार' की पहली प्राथमिकता अब यह चुनाव हो गए हैं और इसमें बाजी अपनी पार्टी के पक्ष में करने के लिए वे कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं। 
 
आखिर कुछ बात तो है : यूं देखा जाए तो गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पटरी बिल्कुल नहीं बैठ रही है। लेकिन जब भी सरकार पर संकट के बादल छाते हैं मुख्यमंत्री पहला संवाद इन्हीं दो दिग्गजों से करते हैं। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और एटॉर्नी जनरल तुषार मेहता से मिलने के लिए मुख्यमंत्री दिल्ली गए तब उनके हमराह यही दो मंत्री बने। आखिर कुछ बात तो है।
 
अब कांग्रेस क्या करेगी? : कमलनाथ 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगे थे कि अचानक पंचायत और नगर निगम चुनाव का मामला टपक पड़ा। चुनाव हर हालत में होना है और कांग्रेस को मैदान में भी रहना है। अब दिक्कत यह है कि भाजपा ने तो ताबड़तोड़ तैयारी शुरू कर दी है और पार्टी के नेटवर्क का भी उसे फायदा मिलना है। कांग्रेस ने अभी इन चुनावों के बारे में सोचा ही नहीं था। पार्टी की कोई तैयारी नहीं है। ऐसे में कैसे पार्टी मजबूती से मैदान संभाल पाएगी इसी में संशय है।
 
भारी तो इंजीनियर ही है : प्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस अभी जहां रह रहे हैं, वहां तक पहुंचने की सड़क सिर्फ इस कारण नहीं बन पा रही है कि जिस ठेकेदार ने सड़क निर्माण का ठेका लिया है, वह कमीशन देने के लिए तैयार नहीं और जिस इंजीनियर के अधीन यह काम होना है वह बिना कमीशन के मान नहीं रहा है इसलिए काम रुका पड़ा है। जानकारी मुख्य सचिव तक भी पहुंची होगी, पर अभी तक तो इंजीनियर ही भारी पड़ रहा है। ऐसा क्यों यह पता करना भी जरूरी है...।
 
तीसरे सदस्य पर भी संघ की नजर : म.प्र. लोक सेवा आयोग के सदस्य पद से डॉ. रमन सिंह सिकरवार की सेवानिवृत्ति के बाद आयोग के सदस्य का यह पद भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खाते में जाता दिख रहा है। वर्तमान में आयोग के अध्यक्ष और दो सदस्य संघ के पसंदीदा ही हैं और अब सिकरवार के स्थान पर नियुक्त होने वाले तीसरे सदस्य पर भी संघ की नजर है। वैसे दो सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी भगवतसिंह चौहान और अविनाश शर्मा की नजर भी इस पद पर है।
 
चलते-चलते : कांग्रेस के एक विधायक से जब पूछा गया कि नगर निगम चुनाव को लेकर क्या तैयारी है, तो उन्होंने बस इतना कहा कि इंदौर में 12-13 वार्ड ऐसे हैं, जहां हमारे सामने योग्य उम्मीदवारों का अभाव है।
 
पुछल्ला : इंदौर से भाजपा के टिकट पर चुनाव कौन लड़ेगा? जवाब भाजपा के प्रदेश नेतृत्व द्वारा तय की जा रही पॉलिसी से मिल सकता है कि जहां जरूरत होगी वहां हम विधायकों को भी मैदान में लाएंगे।

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