चारों तरफ सन्नाटा है। आजादी के दीवानों को सांप सूघ गया है। सारी जबानों पर ताले लटक गए हैं। सारे चूहे बिलों में जा छिपे हैं। जबकि बयान यह आया है कि ‘बीवी का कत्ल करने से बेहतर है तीन तलाक।’
यह बयान किसी छोटी मोटी संस्था या किसी टुच्चे नेता का नहीं है। यह बात किसी टीवी चैनल की ठलुआगीरी वाली पैनल चर्चा में भी नहीं कही गई है। यह बयान है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का। और बोर्ड ने इसे बाकायदा एक हलफनामे के जरिए सुप्रीम कोर्ट में दर्ज कराया है। उसने कहा है कि- ‘बीवी से छुटकारा पाने के लिए शौहर उसका कत्ल कर दे, इससे बेहतर है कि उसे तीन बार तलाक कहने दिया जाए।’ कोर्ट तीन तलाक और चार शादी मामले की सुनवाई कर रहा है। और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अथॉरिटी को ही चुनौती देते हुए कहा है कि वह मुस्लिम समाज के धार्मिक मामलों में दखल नहीं दे सकता। धार्मिक आधार पर बने नियम संविधान के आधार पर नहीं परखे जा सकते।
उम्मीद तो यह थी कि बोर्ड के इस बयान पर पूरे देश में बहस खड़ी होती। आखिर यह कैसी सामाजिक व्यवस्था की बात की जा रही है जिसमें महिला के लिए सिर्फ दो ही विकल्प मौजूद हैं- या तो वह दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो या फिर कत्ल कर दी जाए। और इसके लिए सहारा भी धर्म का लिया गया है।
जरा जरा-सी बात पर हल्ला मचाने वाले और सहिष्णुता/असहिष्णुता की बहस खड़ी करने वाले बुद्धिमान और विवेकशील लोगों को इस समय देश तलाश रहा है। देश को इंतजार है कि कब इस बयान पर सम्मान वापसी की बाढ़ आती है। दूसरों के कुल-शील का पता पूछने वाले उन सारे लोगों के मुंह अब क्यों सिल गए हैं जिन लोगों को अपने सामाजिक और बौद्धिक कुल-शील पर बड़ा नाज रहा है। कहां है जेएनयू की वह टोली जो धार्मिक हस्तक्षेप की बखिया उधेड़ते हुए मनु स्मृति के पन्ने जलाने में फख्र महसूस करती है? कहां हैं उनकी आजादी के वे नारे? जेएनयू परिसर में अब ये नारे क्यों नहीं लग रहे- ‘हमें चाहिए आजादी पर्सनल लॉ से आजादी।’ हो सकता है अरुंधती रॉय कश्मीर मामले पर भाषण देने के लिए पाकिस्तान जाने का समय निकाल लें लेकिन देश यह जानना चाहता है कि इस मामले पर थोड़ा बहुत बोलने के लिए उन्हें समय मिलेगा या नहीं?
सवाल यह भी है कि दलित और अल्पसंख्यक अत्याचार को लेकर आसमान सिर पर उठा लेने वाले मुलायमसिंह यादव, मायावती, आजम खां, लालू यादव और कांग्रेस के राहुल गांधी का इस मामले में क्या स्टैंड है? हर फटे में अपनी टांग फंसाने वाले क्रांतिकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कोई वीडियो संदेश अब तक क्यों जारी नहीं हुआ? और यदि इतने गंभीर मामले पर भी चुप्पी ही इन सारे लोगों का स्टैंड है, तो फिर आप किस मुंह से भाजपा पर आरोप लगा सकते हैं कि वह हिन्दूवादी सांप्रदायिक राजनीति कर रही है। राहुल गांधी इस मामले पर तो सीना ठोक कर सामने आते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या में आरएसएस का हाथ है। लेकिन देश में लाखों मुस्लिम महिलाओं को बदतर जीवन जीने या फिर मौत में से एक विकल्प चुनने के मामले में वे पता नहीं किस गली में चले जाते हैं।
मैं पशोपेश में हूं। अब सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा? दही हांडी के गोविंदाओं पर कानूनी हंटर चलने के बाद अब देश इंतजार कर रहा है कि महिलाओं के सिर कलम कर दिए जाने को तलाक का विकल्प बताने वालों पर सुप्रीम कोर्ट क्या कार्रवाई करता है। देश के लिए यह मामला वैसा ही टर्निंग पाइंट है जैसा शाहबानो केस था। उस मामले ने भी देश की दिशा बदल दी थी और इस मामले में होने वाला फैसला भी देश की दिशा बदलने वाला साबित होगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि कोई फैसला आएगा भी या नहीं? और यदि आ भी गया तो वह शाहबानो केस की तरह संसद की सुरंग में समा तो नहीं जाएगा?