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चिंता मुक्त माहौल से ही खिलाड़ी आएंगे आगे

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वैभव पुरोहित

किसी ने मजाक में कहा की भारतीय ओलम्पिक संगठन को विश्व ओलम्पिक संगठन से चौथे नम्बर के लिए भी लोहे के पदक की शुरुआत करने की मांग करना चाहिए, जिससे कुछ भारतीय खिलाडी पदक तालिका में स्थान प्राप्त कर पाए, तो किसी ने कहा अरे मुझे भी ब्राजील भेज देते, किसी भी टीम का हिस्सा बना कर, मैंने भी ब्राजील नहीं देखा। वैसे, भारत जैसे देश में ये चौथे स्थान वाले भी किसी स्वर्ण पदक विजेता से कम नहीं हैं, इन्हें बहुत-बहुत बधाई।

भारत की शून्य उपलब्धि को ले कर मजाक बनाया जा रहा है, वैसे भारत ने ही शून्य की खोज भी की है और 125 करोड़ की संख्या भी भारतीयों ने ही दी है, जिसमें आप, हम सभी शामिल हैं। मैं इसमें भारतीयों का उतना दोष नहीं मानता क्योंकि जिस देश के नागरिक की प्राथमिकता ही रोजी रोटी है, जिसकी सबसे बड़ी चिंता उसका कल है और जिसे मालुम नहीं खेलकूद से क्या हासिल होगा तो वो क्यों खेले? वो पढ़ लिख कर आईआईटी या आईआईएम क्यों ना करे?
 
आज अगर आईआईटी या आईआईएम के पीछे लोग भाग रहे हैं तो इसकी बड़ी वजह विद्यार्थियों का इससे लगाव नहीं बल्कि मिलने वाले बड़े-बड़े पैकेज हैं। अगर कल को आईआईटी या आईआईएम के बाद मिलने वाले बड़े पैकेज बंद हो जाए, तो लोग इसकी तैयारी करना भी बंद कर दे। 
 
इन कोर्स की तैयारी करना भी किसी ओलम्पिक की तैयारी से कम नहीं है। चार-पांच वर्ष बच्चे और उनके माता-पिता के तैयारी में ही लग जाते हैं। तैयारी कैसे करना है, कहां प्रशिक्षण लेना है, कैसे आगे बढ़ना है, सब कुछ स्पष्ट होता है। लेकिन खेलकूद के लिए ऐसा माहौल या सुविधाएं नहीं है। आज कोई जिम्नास्ट बनना चाहता है तो उसे समझ ही नहीं आएगा कि वह कहां जाए और क्या करें। ऊपर से खेल में व्याप्त राजनीति भी माहौल को प्रदूषित करती है। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को इसीलिए खेलकूद में आगे बढ़ने से रोकते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे खेलों की राजनीति का मुकाबला नहीं कर सकते। पल में सारी तैयारी व्यर्थ साबित हो जाती है। जब तक खेल के प्रति भविष्य की चिंता से मुक्त नहीं होंगे, तब तक लोग खेलने के लिए आगे नहीं आएंगे।


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