सकारात्मकता वह भी नकारात्मक परिस्थिति में अर्थात कष्टकारी यात्रा में उत्साह को बनाये रखना। इस उत्साह से यात्रा में आने वाले कष्ट तो कम नहीं होते किन्तु कष्टों को सहने का साहस बना रहता है। जीवन यात्रा हमारी इच्छा से न तो चलती है न रूकती है किन्तु इस प्रवास का सुखकर होना सर्वस्व हमारी जिम्मेदारी होती है।
कोरोना के लॉक डाउन में हम आसपास की आवाजों को भी महसूस कर पा रहे हैं। पक्षियों का चहचहाना, नन्हें बालकों का शोरगुल, किसी के आपसी मतभेद तो कभी किसी के टीवी की आवाज। सारा कुछ जब नया लगता है तब इसे सकारात्मकता ही कहेंगे क्यूंकि नकारात्मकता का बादल क्या होता ये अब हम अच्छी तरह समझ गए हैं।
अपने गुरु से सुना एक सुन्दर विचार आज साझा करने का मन है। वे कहते हैं पवित्र गीता मनुष्य से कर्म को ऐसा ही करें वैसा ही करें ऐसा कोई आदेश नहीं देती वरन गीता बोध कराती है कि अपने कर्म का चिंतन व मनन कर मनुष्य हर प्रकार से उसकी जिम्मेदारी लेना सीखें। वे आगे बताते हैं किस प्रकार स्वामी विवेकांनद लिखित एक पुस्तक भगवान श्री कृष्ण और भगवत गीता में उत्थान एवं पतन पर विवेचना की गई है।
यह पुस्तक आज की परिस्थिति से निपटने के लिए गीता को उत्तम मार्गदर्शक भी बताती है। वहीं इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि विश्व गतिमान चक्राकार तरंगों से युक्त है। एक बार ये सारी तरंगें अपने सर्वोच्च स्थान को प्राप्त कर लेती हैं तो पतन का प्रारम्भ होता है। नियम बड़ा ही सरल है किसी तरंग का उठना जैसे निर्धारित है तो उसका नीचे की तरफ आना भी तय है। अब ये तथ्य व्यावसायिक, सामाजिक या व्यक्तिगत स्वरूप में भी सत्य सिद्ध होता है।
उदाहरण के लिए हमारी शारीरिक अवस्था को ही लें तो पंद्रह वर्ष पूर्व का हमारा शारीरिक स्थैर्य या शक्ति में निश्चित ही अंतर है। उत्थान और पतन के इस चक्र में महासागर की लहरों जैसा सृष्टि का डोलायमान होना नियम है। स्वामी विवेकानंद आगे लिखते हैं किसी का भी बहुत काल पतन में रहना पुनरुत्थान के लिए स्वयं को तैयार करना होता है। फिर मानव तो सृष्टि का अविभाज्य अंग है और ये नियम मानवजाति के लिए सटीक बैठता है।
अब इस पर कुछ इस तरह से विचार करते हैं……..हम कई बार कठिन परिस्थिति के आघात झेल चुके होंगे या कहें नकारात्मक परिस्थिति से सामना भी कर चुके हैं। तब क्या किया था याद करें? रोए होंगे परन्तु हिम्मत से काम लिया होगा, डरें होंगे तो मन को संभाल लिया होगा, टूट जाएंगे अब.. ऐसा लगा होगा तब संकल्प लेकर खुद को जोड़े रखा होगा।
इसका अर्थ है संकट से दो दो हाथ करना और उत्तम परिस्थिति की ओर अग्रसर होना हमें पता है। बड़े बड़े देश राज्य धूल में मिल गए परन्तु पुनरुत्थान से अपने अस्तित्व को प्राप्त भी कर गए। हिरोशिमा नागासाकी किस परिस्थिति में थे ओर उससे निकल कर अब अपनी तकनीकों के लिए हर किसी का सलाम लेते हैं।
इजराइल आज शक्तिमान लगता है कभी अरब देश उसे तबाह कर देना चाहते थे। इस सभी का अर्थ यही कि जब कभी विपरीत परिस्थिति होती है तो हिम्मत से स्थिरता को प्राप्त करना अलिखित नियम या अनिवार्य है।
आज ये सब कहने का हेतु क्या है ???? तो लॉक डाउन में भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक या व्यक्तिगत पतन दिख भी रहा हो तो भी पुनरुत्थान के विश्वास को नकार नहीं सकते। भारत सनातन धर्म और संस्कार से परिपूर्ण भूमि है। फिर नई सुबह के इंतज़ार में इस रात का गुजर जाना आवश्यक भी है।
जैसे शुक्ल पक्ष सदा नहीं रहता वैसे ही कृष्ण पक्ष का गुजर जाना भी नियति का एक नियम ही तो है। तो ये कठिन समय जल्द ही भूतकाल हो जाएगा और इस तरंगमयी सृष्टि को नए भविष्य की प्राप्ति होगी। कहते हैं अक्षय तृतीया पर किए गए दान या सत्कर्म का कभी क्षय यानि नाश नहीं होता।
पर्व गुजर गया पर उस पवित्र मुहूर्त को स्मरण कर हिम्मत या ढाढस बंधाने का सत्कर्म करते हैं। जिससे आने वाले दिनों में हमारे साहस और संकल्प का बिलकुल क्षय न हो। शुभम भवतु…….