लंदन के वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट न्यायालय द्वारा नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को हरी झंडी मिलना कितना महत्वपूर्ण है यह बताने की आवश्यकता नहीं। निश्चित रूप से यह भारत की ओर से किए गए प्रयासों, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए तथ्यों और तर्कों तथा सक्रिय रहकर मुकदमा लड़ने का ही परिणाम है।
फैसले में न्यायाधीश ने इसका जिक्र करते हुए कहा है कि उन्होंने भारत सरकार द्वारा 16 खंडों में प्रस्तुत किए गए सबूतों, विशेषज्ञों की रिपोर्ट एवं अन्य साक्ष्यों का अवलोकन किया है। हालांकि इससे तुरंत उसके भारत लाने की संभावना नहीं बनती क्योंकि पहले तो मामला ब्रिटेन के गृह मंत्रालय में जाएगा और गृह मंत्री प्रीति पटेल को निर्णय लेना है।
प्रत्यर्पण कानून 2003 के अनुसार संबंधित कैबिनेट मंत्री को सारे पहलुओं पर विचार करने के बाद वांछित व्यक्ति के प्रत्यर्पण का आदेश देने का अधिकार प्राप्त है।
इस कानून के प्रावधानों के अंतर्गत विदेश मंत्री को भी विचार करना होता है कि आरोपी को मृत्युदंड दिए जाने की संभावना है या नहीं। अगर है तो फिर प्रत्यर्पण का आदेश नहीं दिया जा सकता। इस मामले में नीरज को मृत्युदंड दिए जाने की कोई संभावना नहीं है।
न्यायालय के फैसले और भारत के प्रयासों को देखते हुए ब्रिटिश गृह मंत्री प्रीति पटेल इसमें किसी प्रकार का अड़ंगा नहीं डालेंगी। लेकिन नीरव मोदी के पास अभी उच्च न्यायालय जाने का भी रास्ता खुला हुआ है। गृह मंत्री के आदेश के 14 दिनों के अंदर उसे उच्च न्यायालय में अपील करनी होगी। उच्च न्यायालय जो फैसला देगा उसी पर उसके प्रत्यर्पण का भविष्य निर्भर है।
तो यह किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक न्यायिक प्रक्रिया है जिसका सामना हमें करना है। लेकिन जितनी सफलता मिल रही है उसके अनुसार नीरज को भारत लाए जाने की संभावना ज्यादा प्रबल होती जा रही है। वास्तव में न्यायालय ने 83 पृष्ठ के फैसले में प्रत्यर्पण का आदेश देते हुए उसके जिन दलीलों को खारिज किया, उसके लिए जो तर्क दिए, जो टिप्पणियां कीं वो भी न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
इससे उम्मीद बनती है कि ऊपरी न्यायालयों में भी भारत को विजय मिलेगी। नीरव मोदी ने अपने को निर्दोष बताने के अलावा मुख्यतः चार तर्क दिए थे। एक, भारत में उसे निष्पक्ष न्याय मिलने की संभावना नहीं है। इस मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना ज्यादा है। दो, मुंबई का आर्थर रोड जेल उसके लिए उपयुक्त नहीं है। तीन, उनके स्वास्थ्य को देखते हुए वहां निजी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं हो सकती। और चार, उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।
उनके अंदर आत्महत्या की प्रवृत्ति है। न्यायालय ने इन सारी दलीलों को खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि उन्हें नहीं लगता कि भारत में उन्हें न्याय नहीं मिलेगा। ऑर्थर रोड जेल उनके लिए उपयुक्त होगा तथा उनकी मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है जिससे कि आत्महत्या की प्रवृत्ति को स्वीकार किया जाए।
न्यायाधीश ने फैसला में लिखा है कि नीरव मोदी को मुंबई के आर्थर रोड जेल में पर्याप्त चिकित्सा दी जाएगी और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल भी की जाएगी। इसमें साफ लिखा है कि नीरव मोदी को भारत भेजने पर आत्महत्या का कोई खतरा नहीं है क्योंकि पर्याप्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराया जाएगा। भारत ने न्यायालय को आश्वस्त किया है कि हमारे यहां हिरासती और कैदियों के स्वास्थ्य की पर्याप्त देखभाल का कानूनी प्रावधान और व्यवस्था है तथा न्यायालय ही इस बारे में फैसला करती है। सरकार न्यायालय के आदेश का पालन करती है
इसका अर्थ है कि न्यायालय ने नीरव मोदी को परोक्ष रूप से बहानेबाज और झूठा मान लिया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि आपने जो कुछ भी कहा है उसमें उन आरोपों का स्वीकारने योग्य खंडन नहीं है जो भारत की ओर से लगाए गए। आपको बहुत सारे प्रश्नों का के जवाब भारत में देने हैं।
ध्यान रखने की बात है कि लंदन के न्यायालय को पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में नीरव दोषी है नहीं है इस पर अंतिम फैसला नहीं करना था। उसे यह देखना था कि नीरव पर लगे आरोपों के संदर्भ में भारत ने जो कुछ तथ्य रखा है उनके आधार पर नीरव के प्रत्यर्पण की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। निस्संदेह, उसमें घोटाले में नीरव की भूमिका, उसमें अब तक हुई कार्रवाई, मामले को साबित करने के लिए उससे पूछताछ की आवश्यकता आदि को रेखांकित किया गया था।
जाहिर है, न्यायालय इससे सहमत हुआ तभी उसने आदेश दिया है। फैसले में न्यायाधीश ने कहा भी कि लाइन ऑफ क्रेडिट को भुनाने में बैंक के अधिकारियों समेत अन्य आरोपियों की मिलीभगत के पुख्ता सबूत मौजूद हैं। इसमें स्वयं नीरव मोदी के उस पत्र का भी जिक्र किया गया जिसमें उसने पंजाब नेशनल बैंक को बकाया होने और उसे चुकता करने का वायदा किया है। यहां तक कि न्यायालय ने उसके व्यवसाय के बिल्कुल जायज होने के दावे पर भी संदेह व्यक्त किया।
उच्च न्यायालय के सामने भी मामले की तह तक जाकर नीरव मोदी को अंतिम रूप में दोषी या निर्दाेष करार देने का विषय नहीं होगा। वहां भी प्रत्यर्पण का मामला है या नहीं इसी आधार पर इसका फैसला होगा। हां, वह भी फैसला देने के पहले आरोपों और उनसे जुड़े तथ्यों का अवलोकन करेगा।
जैसा हम जानते हैं भारतीय एजेंसियों की ओर से क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस या सीपीएस पैरवी कर रहा है। न्यायालय में सीपीएस के बैरिस्टर ने मामले को बिल्कुल स्पष्ट बताते हुए कहा था कि नीरव ने तीन साझेदारों वाली अपनी कंपनी एवं शेल कंपनियों के नाम से अरबों रुपए का बैंक घोटाला किया।
नीरव पर मुख्य आरोप यही है कि उसने अपने मामा मेहुल चोकसी और बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर पंजाब नेशनल बैंक में करीब 14 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक के कर्ज की धोखाधड़ी की। उस पर सीबीआई और ईडी बैंक घोटाला और मनी लॉन्ड्रिंग के अपराधों के मामले दर्ज कर कार्रवाई कर रही है। वैसे उसके खिलाफ कई और मामले दर्ज हो चुके हैं।
उसकी अनेक संपत्तियों को जब्त भी किया जा चुका है। उसके खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी हुआ। फोर्ब्स ने 2017 में नीरव मोदी की कुल संपत्ति 180 करोड़ डॉलर (करीब 11, 700 करोड़ रुपए) आंका था। पता नहीं इसमें कितना अंश लूट और घोटालों का था। पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में जब अनेक अधिकारी- कर्मचारी नप चुके हैं तो इसके मुख्य आरोपी को किसी तरह देश के अंदर कानून के कठघरे में खड़ा करना ही होगा।
भारत के पक्ष की सबलता का ही प्रमाण था कि नीरव मोदी को 19 मार्च 2019 को गिरफ्तार कर लंदन की वांड्सवर्थ जेल में डाला गया। उसने जमानत की नीचे से ऊपर तक के न्यायालयों में लगातार कोशिश की। न्यायालय से 40 लाख पाउंड की जमानत पर घर में नजरबंद करने का आग्रह किया इसे भी अस्वीकार कर दिया गया। कल्पना कीजिए अभी भी उसके पास कितनी संपत्ति है। भारत ने जमकर लड़ाई लड़ी। इसका परिणाम है कि उसे जमानत नहीं मिली।
हालाँकि यह सब आसान नहीं था। उसे बचाने की इतनी कोशिशें हुई जिनकी हम आप कल्पना भी नहीं कर सकते। उसके गवाह के तौर पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू और उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभय थिप्से तक पेश हुए। उन्होंने पूरे मामले को राजनीतिक रंग देते हुए यह साबित करने का प्रयास किया था कि सत्तारूढ़ पार्टी ने एजेंडा के तहत मीडिया में लीक कर इसे बड़ा बनाया।
नीरव मोदी के साथ भारत में न्याय नहीं हो सकता इसे साबित करने के लिए इन दोनों पूर्व न्यायाधीशों ने भारतीय न्यायिक प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा कर दिया था। वेस्टमिंस्टर न्यायाधीश ने इन दोनों पूर्व भारतीय न्यायाधीशों की कड़ी निंदा की। उन्होंने लिखा कि मैं न्यायमूर्ति काटजू की विशेषज्ञ राय को काफी कम तवज्जो देता हूं। वे अपने पूर्व वरिष्ठ न्यायिक सहकर्मियों के प्रति असंतोष से भरे थे।
उनकी गवाही के कुछ हिस्से हैरान करने वाले, अनुचित और पूरी तरह और असंवेदनशील हैं। उनकी बातचीत में निजी एजेंडा झलक रहा था। थिप्से के बारे में न्यायाधीश ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद वे कांग्रेस से संबद्ध हो गए जिसके कारण उनकी आलोचना भी हुई। कल्पना की जा सकती है कि भारतीय एजेंसियों को कितनी चुनौतियां मिली होंगी। ये सब अभी भी नीरव के भारत के उच्च वर्ग में व्याप्त प्रभाव का साक्षात प्रमाण है।
किन्तु अंततः यह सब भारत के पक्ष में जाता है। न्यायालय ने यह भी माना है कि नीरव मोदी ने सबूतों को नष्ट करने और गवाहों को डराने की साजिश रची। यह किसी भी आरोपी की अपराध में संलिप्तता के संदेहों को पुख्ता करता है। आरोपी को जेल में रखने का भी यह सबसे बड़ा आधार होता है। हर ईमानदार भारतीय चाहता है कि नीरव और उसके जैसे विदेश भागे घोटालेबाजों को भारत लाकर सजा दिलाई जाए। भारत की दृढ़ता तथा योजनापूर्वक मुकदमा लड़ने से धीरे-धीरे ज्यादातर भगोड़ों को भारत लाए जाने की संभावना प्रबल हो रही है।
एंटीगुआ से प्रत्यर्पण संधि न होने के बावजूद मेहुल चौकसी पर शिकंजा कस चुका है। विजय माल्या का मामला काफी आगे बढ़ चुका है। संदेसरा बंधुओं से लेकर वीडियोकॉन के कोचर आदि भी भारत के कानूनी लड़ाई में पस्त हो रहे हैं।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अनुभति और राय है, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)