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पीएम मोदी ने भारतवासियों में राष्ट्र और संस्कृति के प्रति गौरव बोध पैदा किया

हमें फॉलो करें पीएम मोदी ने भारतवासियों में राष्ट्र और संस्कृति के प्रति गौरव बोध पैदा किया

अवधेश कुमार

, शनिवार, 28 मई 2022 (11:55 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के इतिहास में पहले नेता हैं, जिन्होंने एक राज्य का मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री बनने की तैयारी की, इसके लिए अपनी एक बड़ी टीम बनाई, स्वयं राष्ट्रीय स्तर पर बात रखने का अभियान आरंभ किया, धीरे-धीरे ऐसी स्थिति निर्मित की, जिसे देखकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार किया और अंततः अपनी बदौलत पहली बार भाजपा ने लोकसभा में बहुमत प्राप्त किया।

जाहिर है, इस तरह के नेता के नेतृत्व में चलने वाली सरकार का मूल्यांकन परंपरागत लीक और खांचे से अलग हटकर किया जाएगा। मोदी-2 सरकार का 3 वर्ष हर दृष्टि से असाधारण माना जाएगा। 2014 के चुनाव में 283 सीटें और 5 साल सत्ता में रहने के बाद 303 सीटें। भारतीय राजनीति की पृष्ठभूमि को देखते हुए यह सामान्य स्थिति नहीं है।

सामान्यतः माना जाता है कि 5 साल सत्ता में रहने के बाद लोगों के अंदर नेतृत्व और सरकार को लेकर कई प्रकार के असंतोष पैदा होते हैं और उसी से सत्ता विरोधी रुझान की स्थिति उत्पन्न होती है। मोदी के 5 साल के कार्यकाल में उल्टी स्थिति पैदा हुई। यानी सत्ता समर्थन का रुझान। क्या 2019 से 2022 के इन 3 वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐसा कुछ किया है, जिससे समर्थन विस्तृत होने के रुझान का क्रम जारी है?

वस्तुतः पिछले 3 वर्ष के कार्यकाल को पूर्व के 5 वर्ष के कार्यकाल का ही विस्तार कह सकते हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी को लेकर उम्मीदों के साथ-साथ कौतूहल भी था। यूपीए सरकार के कार्यकाल मैं भारत शीर्ष स्तर पर ऐसे चेहरे के लिए तरस गया था, जिसे देश का नेता कहा जा सके। डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री अवश्य थे, लेकिन कभी लगा नहीं कि वे देश का नेतृत्व कर रहे हैं।

भारत राष्ट्रीय स्तर पर एक नेता के लिए छटपटा रहा था। नरेंद्र मोदी ने इस दयनीय स्थिति को खत्म करने की उम्मीद पैदा की। इसके साथ लोगों के अंदर यह भी उत्कंठा थी कि मोदी करता क्या है। मोदी ने अपने भाषणों एवं कदमों से केवल नवीनता का ही एहसास नहीं कराया, यह भी विश्वास दिला दिया की देश को सही दिशा देने और उसके अनुरूप निर्णय कर उसे लागू करने तथा समय-समय पर जोखिम उठाने का माद्दा उनमें मौजूद है।

विश्वस्तर पर भारतवंशियों के बीच भव्य कार्यक्रमों एवं भाषणों से भारत के प्रति आकर्षण पैदा करने का अभियान चलाया। उनके 5 वर्षों में एक वैश्विक नेता की भी साख स्थापित हो गई। पहले कार्यकाल में मोदी ने सबसे महत्वपूर्ण काम ऐतिहासिक अवसरों का उपयोग कर भारतवासियों के अंदर अपने राष्ट्र, महान संस्कृति व सभ्यता, धर्म आदि के प्रति गर्व का भाव पैदा किया। एक बड़े नेता की पहचान इसी से होती है कि वह अपने लोगों के भीतर देश के प्रति गौरव बोध पैदा कर पाता है या नहीं। एक बार आपने लोगों के अंदर अपने देश, सभ्यता, संस्कृति, समाज को लेकर गौरव बोध पैदा किया तो आप इतिहास के कई अध्याय लिख सकते हैं।

मोदी के चाहे आप कितने भी बड़े आलोचक हों, लेकिन इस कसौटी पर वे काफी हद तक खरे उतरते हैं। इतनी विविधताओं वाले देश में, जहां राजनीति के बीच गहरा तीखा विभाजन तथा स्वयं मोदी को लेकर विरोध की जगह घृणा और दुश्मनी की सीमा तक जाने वाला व्यापक समूह है, उसमें जनता के बड़े वर्ग को वैचारिक रूप से आलोड़ित करना आसान काम नहीं था। आज का परिदृश्य आप देख लीजिए। देश, धर्म, सभ्यता- संस्कृति को लेकर व्यापक स्तर पर बदले हुए मनोविज्ञान का भारत आपको दिखाई देगा।

वर्तमान राजनीतिक ढांचे में कोई भी सरकार अचानक हर स्तर पर चमत्कार नहीं कर सकती। सरकार के बहुत सारे फैसले उसी रूप में जमीन पर नहीं पहुंचते जैसी कल्पना होती है। प्रशासन का ढांचा और व्यवहार आसानी से नहीं बदलता। मोदी की सफलता इसमें है कि उन्होंने इन सारी कमियों के रहते हुए भी अपने निर्णयों से यह विश्वास बनाए रखा कि देश बदल रहा है। अर्थव्यवस्था से लेकर आम आदमी की सत्ता तक पहुंच या उनकी शिकायतों के निवारण, जीविकोपार्जन आदि के आधार पर अलग-अलग मत प्रकट हो सकते हैं। यह सब जीवन के आवश्यक पहलू हैं। किंतु यही मनुष्य के जीवन का सर्वस्व नहीं है। अगर यही सर्वस्व हो तो फिर समाज में इतने साधु सन्यासी क्यों पैदा होते हैं? हजारों की संख्या में लोग देश और समाज के लिए अपना जीवन क्यों लगाते हैं?

अगर देश को सही दिशा मिल जाए तो जीवन को लेकर व्यक्ति की सोच धीरे-धीरे बदलती है तथा उसे एहसास होता है कि मनुष्य के रूप में हमारी प्राथमिकताएं क्या है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीसरे वर्ष में आप देख लीजिए कि देश के एक बड़ा वर्ग की इस समय मांगें क्या है?  हमारे ध्वस्त किए गए धर्म स्थलों और मान बिंदुओं की मुक्ति हो? शिक्षा व्यवस्था के भारतीयरण की मांग आपको संपूर्ण देश में दिखाई दे देगी।

उत्तर प्रदेश चुनाव में छुट्टा पशुओं की समस्या सरकार के विरुद्ध जा रही थी, लेकिन अंततः गोवंश की रक्षा का भाव हावी हुआ और वह मुद्दा योगी सरकार की पराजय का कारण नहीं बना। संपूर्ण देश में हिंदू, सिख, बौद्ध ,जैन सबके अंदर यह भाव है कि किसी सूरत में अब मुसलमानों का तुष्टीकरण नहीं हो। उन्हें विशेष तरजीह किसी तरह ना मिले तथा जिस तरह से हम हैं उसी रूप में वे भी इस देश में रहें। एक वर्ग इससे आगे जाकर यह भी कह रहा है कि उन्हें बताया जाए कि जब हमारे पूर्वज एक थे, हमारा खून एक है तो क्यों ना धीरे-धीरे वे अब उस मूल धर्म में वापस आएं जहां से धर्मांतरण कर उन्हें मुसलमान बनाया गया। पहले समान नागरिक नागरिक संहिता की बात होती थी तो लोग उसका उपहास उड़ाते थे। किसी को लगता ही नहीं था कि देश में समान नागरिक संहिता को गंभीरता से लाने और लागू करने की कोशिश होगी।

इस समय जैसे ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने समान नागरिक संहिता की बात की चारों और उसकी प्रतिध्वनि गूंजने लगी और गृहमंत्री के इस बयान के बाद कि अगली बारी समान आचार संहिता की है यह मान लिया गया है कि अगले कुछ महीनों में यह मूर्त रूप ले लेगा। यानी सभी समुदायों के लिए एक समान नागरिक कानून इस देश में लागू हो जाएगी। अतीत को देखें तो इस तरह की सोच को चमत्कारिक बदलाव कहना ही होगा। तो यह सब हुआ कैसे?

वास्तव में जिसे भाजपा या संघ परिवार का कोर एजेंडा कहते हैं उसमें से ज्यादातर इस दूसरे कार्यकाल में ही साकार हुआ है। कश्मीर से धारा 370 हटेगा इसकी कल्पना तक नहीं थी। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में जिस तरह मोर्चा संभालकर पहले राज्यसभा और बाद में लोकसभा में कुछ घंटों के अंदर ही इसके अंत का विधेयक पारित करवा लिया वह अद्भुत था। इसके पहले तीन तलाक के विरुद्ध कानून के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। यह सब बदलते हुए भारत का साक्षात प्रमाण था और इसका स्फुलिंग प्रभाव देश के मानस पर हुआ। कई बार व्यक्ति के प्रभाव से ही बदलाव आने लगता है। कहा जाता है कि नियति भी उसी का साथ देती है जो सही दिशा में सोच कर कुछ करने की कोशिश करता है।

अयोध्या का मसला इतने लंबे समय से लटका हुआ था और उसका फैसला आया तो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ही। दूसरी सरकार होती तो उस फैसले को साकार करने से बचने की कोशिश करती। संभव था कि मंदिर निर्माण का आदेश वैसे ही पड़ा रह जाता। नरेंद्र मोदी ने आदेश आते ही संघ और अन्य संगठनों से विचार- विमर्श कर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र का गठन किया तथा पूरी स्थिति ऐसी बनाई जिसमें राम मंदिर का निर्माण तेजी से आरंभ हो गया।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसा अनुकूल मुख्यमंत्री के होते यह काम और आसान हुआ। कोरोना का प्रकोप कम होते ही मुहूर्त पर भूमि पूजन किया। कोई दूसरा प्रधानमंत्री होता तो क्या करता यह अलग बात है, लेकिन मोदी के कारण उस कार्यक्रम को जो भव्यता मिली, भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में फैले हिंदुओं के अंदर उसका गहरा मनोवैज्ञानिक असर हुआ। उसके बाद काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण का कई सौ वर्षों का सपना साकार हुआ। जब नरेंद्र मोदी सरकार ने इसकी कल्पना सामने रखी तो किसी ने भी नहीं सोचा कि वाकई ऐसा हो सकता है। 400 से अधिक मकानों व व्यावसायिक संपत्तियों के मालिकों से खरीदना व उन्हें हटाना मामूली काम नहीं था।

आज आप देख सकते हैं कि 2021 के पूर्व और उसके बाद के विश्वनाथ धाम और आसपास के जगहों की क्या स्थिति है। आप इसकी चर्चा करके देखिए, लोगों पर इसका अद्भुत प्रभाव दिखाई देगा। किसी ने कल्पना की थी काशी विश्वनाथ धाम इस तरह उद्धार हो सकता है जिससे वह प्राचीन गौरव और गरिमा को प्राप्त कर सके? इन सबसे अहसास हुआ है कि हिंदू समाज जागृत होकर अपने धर्म और संस्कृति के गौरव को पुनः प्राप्त कर रहा है।
अयोध्या के मसले को जनता तक पहुंचाने में कितनी मेहनत करनी पड़ी इसे याद रखते हुए आज की तुलना करिए। ज्ञानवापी से लेकर मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि या कुतुब मीनार आदि के लिए भाजपा, संघ या दूसरे हिंदू संगठनों को अलग से अभियान चलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। आम लोगों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और उसी से यह मुद्दा इतना बड़ा बन चुका है कि इन पर निर्णायक फैसला आना निश्चित लग रहा है। अगर इन स्थानों की मुक्ति हो गई तो इतिहास में नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ऐसे उच्च शिखर पर स्थान पा जाएगी जहां तक शायद ही कोई दूसरी सरकार पहुंच पाए।

आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।

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