भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी प्रधानमंत्री के काफिले को किसी राज्य सरकार ने सभी प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया हो। राजनीति में दल, मत, विचार, अभिव्यक्ति में अंतर हो सकता है, लेकिन क्या वह राष्ट्रीयता के विरुद्ध होना चाहिए?
पंजाब के बठिंडा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले को प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने लगभग 20 मिनट तक फ्लाईओवर में रोके रखा। राज्य की पुलिस का सुरक्षा के लिए कहीं अता-पता नहीं था।
ऐसा क्यों? यह सब कैसे संभव हुआ? नरेन्द्र मोदी से राजनैतिक खुन्नस, ईर्ष्या हो सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को ताक पर रख देना क्या यह साजिश नहीं है?
वे भारत के प्रधानमंत्री हैं। और उनकी सुरक्षा से हाय-तौबा करके मदान्ध रहना यह राष्ट्रघात है। न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार प्रधानमंत्री ने जब यह कहा अपने मुख्यमन्त्री को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक वापस जिन्दा लौट आया
क्या प्रधानमंत्री का यह बयान अपने आप में कंपा देने वाला नहीं है। अपने विभिन्न दौरों में प्रोटोकॉल को तोड़कर सभी लोगों से मिलने वाले मोदी को अपने कार्यकाल में पहली बार इस प्रकार का बयान देना पड़ा। जब उन्हें अपनी जान खतरे में महसूस हुई। यह बेहद गम्भीर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा में सुनियोजित ढंग से की गई सेंधमारी है।
सोचिए, यदि प्रधानमंत्री को कुछ हो गया होता, तब क्या हुआ होता? किसी भी राज्य सरकार के पास क्या इतनी शक्ति होती है कि वह भारत के प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को ताक पर रख दे?
सवाल यह है कि ऐसा करने वाले कौन और किस विचारधारा के लोग हैं? आखिरकार उनकी मंशा क्या है? वे कौन लोग हैं? जब वे राजनीति में हार गए तब षड्यन्त्र रचने लगे। उन्हें लगता था कि वे प्रधानमंत्री की हत्या करवाकर सत्ता की गद्दी पा लेंगे।
मगर, उन्हें यह नहीं पता कि जिसके साथ समूचा राष्ट्र खड़ा हो,उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। सत्ता की गद्दी ऐसे नहीं पाई जाती है। उसके लिए स्वयं को खपाकर राष्ट्र की रगों में घुल मिल जाना पड़ता है। और उसी शक्ति का नाम नरेन्द्र मोदी है।
दोषियों को क्षमा करना न्यायोचित नहीं है। पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाना व उसे केन्द्र शासित राज्य के रुप में परिवर्तित करना समय की मांग है। पंजाब के घटनाक्रम बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं। राज्य सरकार कठपुतली बनकर रह गई है। ये सत्ता के लिए किसी भी स्तर की सीमा लांघ सकते हैं।
बस, बहुत हुआ। अब राष्ट्ररक्षा, आन्तरिक सुरक्षा के संकल्प के लिए पतित राजनीति का समूलनाश करना ही होगा। हमनें कुन्नूर हादसे में ही सीडीएस विपिन रावत सहित बहुत कुछ गवां दिया है। अब हम और कुछ गवांने का सोच भी नहीं सकते।
चीन, पाकिस्तान और आतंकवादियों के प्रश्रय में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करने वालों के साथ 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' का व्यवहार करना ही उचित होगा। ये सब केवल प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश ही नहीं रच रहे थे।
बल्कि वे भारत की सम्प्रभुता को खण्डित करने का षड्यन्त्र रच रहे थे। सत्ता के लोभी पापी दंगा, गृहयुद्ध, हत्याएं और न जाने क्या कुछ करवा सकते हैं। इसीलिए सतर्कता के साथ राष्ट्र के लिए सबको एक साथ खड़े होना होगा।
प्रधानमंत्री मोदी के काफिले को लगभग बीस मिनट तक भीड़ के हवाले करना यह संयोग नहीं था। यह प्रयोग था।
वे षड्यन्त्र के तहत उतरे थे। सोचिए! उन बीस मिनटों में षड्यन्त्रकारी क्या कुछ नहीं कर सकते थे? यह कोई चूक या बहानेबाजी नहीं थी। यह उनकी ओर से तय कार्रवाई थी। सौभाग्य से हमारे सुरक्षाबलों ने उनकी सुरक्षा में कोई आंच नहीं आने दी।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)